तोताराम की पक्की पैरवी पर अदालत में 'बोल' उठी हिंदी, ऐसे किया संघर्ष

नगला मानसिंह में ज्ञानचंद के यहां 1847 में तोताराम का जन्‍म हुआ। जवानी की दहलीज पर कदम रखने के साथ ही उनके मन में हिंदी व देशप्रेम जागा। उन्‍होंने भाारत बंधु पत्र निकाला। इसके बाद रसलगंज चौराहा स्‍थित मालवीय पुस्‍तकालय की स्‍थापना की।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Wed, 26 Jan 2022 11:08 AM (IST) Updated:Wed, 26 Jan 2022 11:14 AM (IST)
तोताराम की पक्की पैरवी पर अदालत में 'बोल' उठी हिंदी, ऐसे किया संघर्ष
नगला मानसिंह में हिंदी के विद्वान ज्ञानचंद के यहां 1847 में तोताराम वर्मा का जन्म हुआ।

विनोद भारती, अलीगढ़ । साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं होता, बल्कि सामाजिक व राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए महती भूमिका निभाता है। अलीगढ़ के साहित्यकार, हिंदी के प्रचारक, अधिवक्ता बाबू तोताराम वर्मा के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। तोताराम ही थे, जिन्होंने अदालतों में आंदोलन खड़ा करके उर्दू के साथ हिंदी की पैरवी कर उसे मान्यता दिलाई। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए 'भारत-बंधु' पत्र निकाला। रसलगंज चौराहा पर स्थित मालवीय पुस्तकालय की स्थापना की, जहां पर स्वतंत्रता सेनानियों ने आकर लोगों में देशभक्ति की अलख जगाई।

तोताराम का जन्‍म 1847 में हुआ था

नगला मानसिंह में हिंदी के विद्वान ज्ञानचंद के यहां 1847 में तोताराम वर्मा का जन्म हुआ। स्नातक के बाद फतेहगढ़, बनारस व देहरादून में प्रधानाध्यापक रहे। बनारस में एलएलबी की। 1875 में कोर्ट-कचहरी में उर्दू में काम होता था। इसे समझना हिंदी भाषी लोगों के लिए सहज नहीं था। तोताराम नौकरी छोड़कर अलीगढ़ आए और वकालत करने लगे। पहले दिन ही हिंदी के लिए बिगुल फूंक दिया। अदालतों में उस समय 80 फीसद मुंशी व मुख्तार कायस्थ ही थे। तोताराम भी कायस्थ थे। उन्होंने सभी को एकजुट किया। पंडित मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन गवर्नर एंटोनी मैक्डानल से मिला। 60 हजार हस्ताक्षरों से युक्त प्रतिवेदन सौंपा। 15 अगस्त 1900 को अदालतों में हिंदी को मान्यता मिल गई।

पुस्तकालय की पड़ी नींव

1878 में तोताराम वर्मा ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए भाषा संवर्धिनी सभा की स्थापना की। भारतवर्षीय नेशनल एसोसिएशन का गठन किया। संस्था के माध्यम से 1894 में सार्वजनिक पुस्तकालय की नींव पड़ी। तत्कालीन गवर्नर अल्फ्रेट लायल का सहयोग मिलने के कारण पुस्तकालय का नाम लायल लाइब्रेरी रखा गया। आजादी के बाद इसे मालवीय पुस्तकालय नाम दिया गया। यह पुस्तकालय स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा। महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक यहां सभाएं कर चुके हैं। वर्तमान में यहां 80 हजार से अधिक पुस्तकें हैं। साहित्यकार व लेखकों की पुस्तकों के अलावा शोधार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक व रोचक सामग्री उपलब्ध है।

भारतेंदुयुगीन साहित्यकार

साहित्यकार डा. वेद प्रकाश अमिताभ ने बताया कि बाबू तोताराम को भारतेंदु युगीन साहित्यकारों में जाना जाता है। हरिश्चंद्र मैग्जीन में तोताराम का लिखा अद्भुत अपूर्व स्वप्न नामक लेख प्रकाशित हुआ। भारत-बंधु पत्र में तोताराम ने मद्यपान, स्त्री शिक्षा, सामाजिक कुरीतियों आदि विषयों पर लेख लिखे। 11 ग्रंथों की रचना की। उपदेश रत्नावली, नीति रत्नाकर, विवाह विडंबना नाटक, स्त्री धर्मबोधिनी, ब्रजविनोद, राम-रामायण बालकांड, नीतिसार, रामायण रत्नावली आदि शामिल हैं। सात दिसंबर 1902 में तोताराम का निधन हो गया।

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