अलीगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बंग्लादेशयिों ने की घुसपैठ

केंद्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट को हल्के में ले रहा अलीगढ़ का खुफिया विभाग।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Aug 2018 03:50 PM (IST) Updated:Thu, 02 Aug 2018 04:58 PM (IST)
अलीगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बंग्लादेशयिों ने की घुसपैठ
अलीगढ़ में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बंग्लादेशयिों ने की घुसपैठ

अलीगढ़ : अलीगढ़ में रोहिंग्याओं की तादात बढ़ती ही जा रही है। खुफिया आकड़ों के अनुसार 250 रोहिंग्या वर्क परमिट या शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। मगर मौके पर इनकी संख्या 500 से भी ज्यादा है। वहीं रोहिंग्या दावा कर रहे हैं कि उनके बीच काफी संख्या में बंग्लादेशी भी रोहिंग्या बनकर रह रहे हैं। केंद्रीय व स्थानीय खुफिया पैनी नजर रख रही हैं। मुद्दा सुर्खियों में आने के बाद केंद्रीय व स्थानीय खुफिया एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। स्थानीय अपडेट लेना शुरू कर दिया है। अब नए सिरे से शरणार्थियों के रिकॉर्ड और उनके कार्ड का सत्यापन शुरू हो रहा है। गुरुवार को खुफिया टीमों ने इनसे संबंधित इलाकों में घूमकर अपडेट लिया।

कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान : म्यामार में बौद्ध आबादी बहुसंख्यक हैं। इनमें करीब 11 लाख रोहिंग्या मुसलमान भी हैं। इनके बारे कहा जाता है कि ये मुख्य रूप से अवैध बाग्लादेशी प्रवासी हैं और ये कई सालों से वहा रह रहे हैं। म्यामार की सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया। पिछले पाच-छह सालों से वहा साप्रदायितक हिंसा देखने को मिली। इसके अलावा लाखों लोग बाग्लादेश में आ गए हैं। मौजूदा हालात यह हैं कि म्यामार में रोहिंग्या मुसलमानों को बड़े पैमाने पर भेदभाव और दुव्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।

अलीगढ़ में केंद्रीय खुफिया रिपोर्ट को लिया हल्के में : पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लापता 893 रो¨हग्या मुसलमानों की केंद्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट को स्थानीय जांच एजेंसियों ने हल्के से ही लिया। ये एजेंसियां पुराने रिकार्ड का ही हवाला देती रहीं, जबकि यहां आकर बसे रो¨हग्या की संख्या कहीं ज्यादा है। सर्वे रिपोर्ट में 63 परिवारों के 245 लोगों का जिक्र है, जबकि शहर के मकदूम नगर इलाके में ही 73 परिवारों में 312 लोग रह रहे हैं। बाकी 67 लोग कहां से आ बसे। असम पर छिड़ी बहस के बाद नए सिरे से सर्वे कराया जा रहा है। म्यांमार, वर्मा से विस्थापित रो¨हग्या मुसलमानों में से करीब 40 हजार ¨हदुस्तान में हैं। इनमें 16 हजार शरणार्थी रूप में हैं। बाकी कहां हैं, कुछ पता नहीं। केंद्रीय खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 1200 रो¨हग्या हैं। इनमें से 307 की ही खबर है। बाकी 893 लापता हैं। पश्चिम उप्र में सर्वाधिक लापता अलीगढ़ (217) में बताए गए। केंद्रीय एजेंसियों ने स्थानीय प्रशासन से इनकी रिपोर्ट तलब की थी। जो रिपोर्ट यहां तैयार की गई है, उसमें 63 रो¨हग्या परिवारों के 245 लोगों का जिक्र है, जो शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। इन्हें यूनाइटेड नेशन हाई कमीशन ऑफ रिफ्यूजी द्वारा आइडी कार्ड दिए गए हैं। जबकि, इन लोगों का कहना है कि यहां 73 परिवारों में 312 महिला, पुरुष और बच्चे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 67 लोग किसकी अनुमति से यहां बसे हुए हैं, ये कौन हैं? कहीं ये बंग्लादेशी तो नहीं हैं?

500 रो¨हग्याओं ने डाला था डेरा : 2012 में म्यांमार से 500 रो¨हग्या शरणार्थियों के रूप में यहां आकर बसे थे, इसके बाद इनकी संख्या 700 हो गई। इनमें ज्यादातर लोग मीट फैक्ट्रियों में मजदूरी करने लगे। बाकी लोग शहर के विभिन्न इलाकों में बस गए और मजदूरी करने लगे। जबकि, प्रशासनिक आंकड़े कहते हैं कि शुरुआत में इनकी संख्या 271 थी। इनमें 26 लोग हैदराबाद जाकर बस गए। बाकी मीट फैक्ट्रियों के आसपास रहने लगे। वर्ष 2016 में रो¨हग्या, बांग्लादेशियों की संख्या पता करने के लिए यहां की सातों मीट फैक्ट्रियों में खोजबीन की गई थी। तब, जिला प्रशासन सटीक संख्या तय नहीं कर सका था। पर, बांग्लादेश, म्यांमार व कुछ पाकिस्तान के मजदूरों के यहां कार्यरत होने की जानकारी मिली थी। इनके जो नाम-पते फैक्ट्रियों ने बताए, वहां जाने पर कोई नहीं मिला। पता चला कि बिना शरणार्थी कार्ड का नवीनीकरण कराए ही ये लोग यहां रह रहे थे।

मकदूम नगर में बसे हैं ज्यादातर

अलीगढ़ में 2010-12 के आसपास मीट एक्सपोर्ट इंडस्ट्री में आए उछाल के बाद शहर में रोहिंग्या परिवारों का आना शुरू हुआ था। धीरे-धीरे मीट एक्सपोर्ट इंडस्ट्री के हब कहे जाने वाले मकदूम नगर में इन्हें ठिकाना मिलने लगा और स्थानीय लोगों ने इन्हें अपने घरों में किराये पर रखना शुरू कर दिया। अब तक मकदूम नगर में तकरीबन 300 से 400 लोग बस गए।

शहर के भुजपुरा व शाहजमाल में बढ़ रही संख्या

इसी तरह करीब एक-एक दर्जन परिवार भुजपुरा व शाहजमाल में भी हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। रोहिंग्याओं के अगुवा मो. बिलाल के अनुसार वर्तमान में 80 से 85 परिवारों में 400 से 500 लोग यहा हैं, जिनमें 300 बालिग रोहिंग्या शरणार्थी कार्ड या वर्क परमिट के सहारे हैं। बाकी 100 या उससे अधिक नाबालिग व बच्चे हैं, जिनका कार्ड नहीं होगा।

आखिरकार कहा गए पश्चिमी उप्र से 900 रोहिंग्या मुसलमान ?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से करीब 900 रोहिंग्या मुसलमान लापता हो गए हैं। यह सनसनीखेज रपट खुद खुफिया सुरक्षा एजेंसियों ने सर्वे के बाद तैयार की है। इनमें से सर्वाधिक 217 अलीगढ़ से लापता हैं। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी उप्र को कुल 1200 रोहिंग्या ने ठिकाना बना रखा है। इनमें से सिर्फ 307 के बारे में ही सुरक्षा एजेंसिया जानकारी जुटा पाई हैं। वर्ष 2016 में हुए सर्वे में एजेंसिया कोई सटीक आकड़ा तक पता नहीं कर सकी थीं। अब केंद्र सरकार के कड़े रुख के बाद रोहिंग्या की हर जिले में तलाश हो रही है।

अलीगढ़ के डेरों में खोजे जा रहे रो¨हग्या मुसलमान

म्यामार से विस्थापित रोहिंग्या मुसलमानों में से करीब 40 हजार ¨हदुस्तान में हैं। इनमें 16 हजार शरणार्थी रूप में हैं। बाकी कहा हैं, कुछ पता नहीं। खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 1200 रोहिंग्या हैं। इनमें से 307 की ही खबर है। बाकी 893 लापता हैं। पश्चिम उप्र में सर्वाधिक लापता अलीगढ़ (217) के हैं। केंद्रीय जाच एजेंसियों ने स्थानीय प्रशासन से इनकी रिपोर्ट तलब की है।

मीट एक्सपोर्ट की धुरी हैं रोहिंग्या

पीएम नरेंद्र मोदी ने बर्मा म्यामार के जिन रोहिंग्या लोगों का मुद्दा ब्रिक्स सम्मेलन में उठाया है, वह रोहिंग्या अलीगढ़ के मीट एक्सपोर्ट की धुरी हैं। वर्क परमिट व शरणार्थी के रूप में सैकड़ों की संख्या में रोहिंग्या अलीगढ़ की मीट इंडस्ट्री में रोजगार पा रहे हैं। अब यहा के रोहिंग्या मुसलमानों की निगरानी आदि के लिए खुफिया तंत्र सक्त्रिय हो गया है। इनके विषय में ताजा अपडेट लिया जा रहा है।

रोहिंग्या मीट कटिंग में माहिर

मीट एक्सपोर्ट इंडस्ट्री की मजबूरी यह है कि दुनिया में रोहिंग्या कटिंग मीट की डिमाड सबसे अधिक रहती है। यह मीट कटिंग में माहिर होते हैं। इनके हाथ से कटे हुए मीट की विदेशी बाजार में बेहद माग रहती है।

मीट फैक्ट्रियों का सर्वे

वर्ष 2016 में भी रोहिंग्या की संख्या पता करने के लिए यहा की सातों मीट फैक्ट्रियों में खोजबीन की गई थी। तब, जिला प्रशासन सटीक संख्या तय नहीं कर सका था। पर, बाग्लादेश, म्यामार व कुछ पाकिस्तान के मजदूरों के यहा कार्यरत होने की जानकारी मिली थी। इनके जो नाम-पते फैक्ट्रियों ने बताए, वहा जाने पर कोई न मिला। पता चला कि बिना शरणार्थी कार्ड का नवीनीकरण कराए ही ये लोग यहा रह रहे थे। आगे एजेंसिया कुछ पता न लगा पाईं। पिछले साल तलाश का आदेश आया, पर अभियान चला नहीं। वहीं, स्थानीय अभिसूचना इकाई (एलआइयू) के सीओ सतीश चंद्र पाडेय बताते हैं कि अलीगढ़ में 62 रोहिंग्या शरणार्थी चिह्नित हैं। बाकी को खोज रहे हैं।

सुरक्षा के लिए खतरा

केंद्र सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि रोहिंग्या मुसलमान न सिर्फ अवैध अप्रवासी हैं, बल्कि इनसे देश की सुरक्षा को भी खतरा है। इन्हें रहने की अनुमति देने से अपने देश के नागरिकों के हित प्रभावित होंगे, तनाव पैदा होगा। कट्टरपंथी रोहिंग्या बौद्धों के खिलाफ ¨हसा भी फैला सकते हैं। जाच एजेंसियों का मानना है कि इनके संबंध पाकिस्तान समेत अन्य देशों के आतंकी संगठनों से भी हैं।

विदेश मंत्रालय की अनुमति पर 63 परिवारों के 245 रो¨हग्या यहां रहकर मजदूरी कर रहे हैं। पहले इनकी संख्या 271 थी। इनमें कुछ हैदराबाद चले गए। इनकी संख्या बढ़ने और राशन, आधार कार्ड बनवाने की बात सामने नहीं आई है। फिर भी मैंने लोकल इंटेलिजेंस के अफसरों से जानकारी मांगी है।

-अतुल श्रीवास्तव, एसपी सिटी

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