Electric Crematorium: धर्माचार्यों की मुहिम कर गई काम, पर्यावरण को मिला जीवनदान

Electric Crematorium ताजनगरी में विद्युत शवदाह गृह के प्रति लोगों में आ रही जागरूकता। ताजमहल को पर्यावरण से बचाने की खातिर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिए थे आदेश। जो काम सरकार नहीं करा पाई वह क्षेत्र बजाजा कमेटी की मुहिम में जुड़कर लोगों ने कर दिखाया।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Wed, 07 Oct 2020 01:40 PM (IST) Updated:Wed, 07 Oct 2020 01:40 PM (IST)
Electric Crematorium: धर्माचार्यों की मुहिम कर गई काम, पर्यावरण को मिला जीवनदान
आगरा का विद्युत शवदाह गृह। फाइल फोटो

आगरा, प्रभजोत कौर। ताजनगरी में पिछले दस सालों से एक अनोखी मुहिम चल रही है। इस मुहिम में शहर के 100 से ज्यादा धर्माचार्य, धर्म गुरु, सामाजिक और महिला संगठन लोगों को विद्युत शवदाह गृह के लिए जागरूक कर रहे हैं। सामाजिक संस्‍था क्षेत्र बजाजा कमेटी द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का असर यह हुआ है कि जिस विद्युत शवदाह गृह में दस साल पहले तक सिर्फ लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया जाता था, अब वहां आने वाले शवों में से 50 फीसद अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में हो रहे हैं। इसका सीधा लाभ विश्‍व धरोहर ताजमहल को भी मिला है। ताज को प्रदूषण से बचाने की खातिर सुप्रीम कोर्ट ने भी यही सिफारिश की थी लेकिन सरकारी मुहिम ज्‍यादा रंग नहीं ला सकी थी, जबकि वही कार्य अब धर्माचार्यों ने कर दिखाया है।

2010 से मिली जिम्मेदारी

उप्र सरकार ने 1996 में पूरे प्रदेश के 12 शहरों में विद्युत शवदाह गृह बनाए थे। 1996 से 2010 तक ताजनगरी के विद्युत शवदाह गृह की स्थिति काफी खराब रही। लोगों की स्वीकार्यता भी नहीं मिली। 2010 में शासन के निर्देशों पर क्षेत्र बजाजा कमेटी ने इसकी जिम्मेदारी ली। 2010 से ही कमेटी द्वारा लोगों को जागरुक करने की मुहिम शुरू की गई। 2016 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे निश्शुल्क कर दिया गया।

पांच पेड़ बचाने को करते हैं जागरूक

सरकार पांच पेड़ लगाने का नारा दे चुकी है, कमेटी पांच पेड़ बचाने के उद्देश्य से काम कर रही है। पारंपरिक अंतिम संस्कार में दो से तीन क्विंटल लकड़ी यानी लगभग पांच पेड़ इस्तेमाल होते हैं। कमेटी ने लोगों को जागरूक करना शुरू किया कि अगर वे विद्युत शवदाह गृह का इस्तेमाल करेंगे तो पर्यावरण संरक्षण में सहयोग देंगे और पांच पेड़ कटने से बचाएंगे।

शोकसभा में करते हैं अपील

कमेटी ने शहर के 100 से ज्यादा धर्माचार्यों से संपर्क किया है। ये सभी धर्माचार्य शोकसभाओं में उपस्थित लोगों से अपील करते हैं कि विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने से परंपराओं से दूर नहीं हो रहे बल्कि प्रकृति के नजदीक आ रहे हैं। जिन परिवारों ने विद्युत शवदाह गृह में अपने स्वजनों का अंतिम संस्कार किया होता है, उन्हें कमेटी द्वारा एक पत्र भी दिया जाता है। इस पत्र में परिवार द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाए गए कदम की जानकारी होती है। यह पत्र धर्माचार्यों द्वारा शोकसभा में पढ़ा जाता है, जिससे दूसरे लोग भी इस दिशा में प्रेरित हो सकें।

कोरोना काल में बढ़ा प्रतिशत

पिछले वित्तीय वर्ष में नौ हजार अंतिम संस्कार लकड़ी और 3000 अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में हुए थे। इस साल एक अप्रैल से 30 सितंबर तक लकड़ी वाले परंपरागत अंदाज में अंतिम संस्कार 2000 और विद्युत शवदाह गृह में 2500 हो चुके हैं।

हमारी इस मुहिम में शहर के सभी धर्मगुरुओं और सामाजिक व महिला संगठनों का सहयोग मिला है। पिछले दस सालों में विद्युत शवदाह गृह के प्रति लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है, हमारा उद्देश्य संस्कारों के साथ ही प्रकृति को भी सहेजना है।

- सुशील सरित, अध्यक्ष, क्षेत्र बजाजा कमेटी

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