जोधपुर से पलायन में एंब्रोडिंग का हुनर हुआ Lockdown, अब घर पर ही तराशेंगे जिंदगी

शानदार एंब्रोडिंग से बेजान लकड़ी में जान फूंकते कारीगर लौट गए अपने शहर सहारनपुर अब नहीं लौटेंगे जोधपुर।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Tue, 07 Apr 2020 03:08 PM (IST) Updated:Tue, 07 Apr 2020 03:08 PM (IST)
जोधपुर से पलायन में एंब्रोडिंग का हुनर हुआ Lockdown, अब घर पर ही तराशेंगे जिंदगी
जोधपुर से पलायन में एंब्रोडिंग का हुनर हुआ Lockdown, अब घर पर ही तराशेंगे जिंदगी

आगरा, राजेश मिश्रा। कोरोना वायरस के खौफ ने तमाम हुनर को भी 'लॉकडाउन' कर दिया है। विभिन्न शहरों में काम रहे हुनरमंद वायरस के संक्रमण से दहशतजदा होकर रोजी-रोटी को छोड़कर अपने घर लौट आए हैं। जिंदगी की सलामती की फिक्र इतनी कि 'लॉकडाउन' खत्म होने के बाद भी लौटने की सोच भी नहीं पा रहे हैं। जोधपुर में लकड़ी की एंब्रोडिंग का बड़ा कारोबार है। रंदा, छैनी, बसूली, हथौड़ी से लकड़ी में इतनी खूबसूरत एंब्रोडिंग करते हैं कि बेजान लकड़ी भी बोलने लगती है। ऐसे कारीगर जोधपुर से पलायन कर अपने सहारनपुर स्थित घर लौट गए हैं। कहते हैं कि अब अपनी जिंदगी को तराशेंगे।

देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित होते ही दूसरे शहरों में पेट पाल रहे लोगों में खलबली मच गई। सुरक्षित घर लौटने की आपाधापी मच गई थी। इन लोगों ने घर तक लौटने में क्या-क्या दुश्वारियां नहीं झेलीं? आगरा में टोयटा रेलवे पुल के नीचे तपती दोपहरी में करीब एक दर्जन युवा बैग, पोटरी लिए छांव में सुस्ता रहे थे। ये बेहद थके हुए थे। पैरों में छाले पड़ गए थे। 'जागरण' ने इनका हालचाल लिया तो व्यथा सुनाते-सुनाते सिसकने लगे। अफजल, हां यही नाम बताया था युवक ने। अफजल ने बताया कि वो सहारनपुर का है, उसके साथ शहर के कई लड़के भी जोधपुर में लकड़ी पर एंब्रोडिंग का काम करते हैं। मोबाइल फोन के कैमरे में कैद किए गए अपनी कारीगरी के नमूने दिखाए भी। वाकई, ये कारीगरी बेहद सराहनीय थी। बेजान लकड़ी में ऐसी-ऐसी कलाकारी दिखाई थी कि हर नमूना जीवंत नजर आ रहा था। खूबसूरत नक्काशी की डिजाइन से बना पिलर हो या शीशे का शोकस, मयूर-मयूरी के जोड़े और उनके पंखों से शोकेस तो बनाया ही था, इसे रंगों से ऐसा सजाया था कि मानो मयूर युगल प्रणय कर रहे हों। इसी तरह की कारीगरी से तैयार खिड़की, दरवाजों से नजर ही नहीं हटती। ये नमूने आलीशान इमारतों की शोभा बढ़ाते हैं।

आगरा तक कैसे पहुंचे? अफजल ने बताया कि जोधपुर में मालिक ने स्लीपर बस कर दी थी। बस को सहारनपुर तक आना था मगर बस चालक ने भरतपुर से करीब छह-सात किलोमीटर पहले ही ये कहकर उतार दिया कि आगे जाकर यूपी बॉर्डर पर रोडवेज बस मिल जाएगी। बॉर्डर पर बस नहीं मिली और वहां से करीब 60-70 किमी पैदल चलकर आगरा तक पहुंचे हैं। पीछे आ रहे दो साथियों की हालत बिगड़ गई थी, अभी फोन पर जानकारी मिली है। अब वे कहां हैं, पता नहीं।

'जागरण' ने तलाशे इनके साथी

मुसीबत की इस घड़ी में 'जागरण' ने सहयोग का प्रयास किया। अफजल को कार में बैठाकर उसके साथियों को तलाशा। शास्‍त्रीपुरम से लेकर दहतौरा, जयपुर रोड, पश्चिमपुरी क्षेत्र, आवास विकास कॉलोनी, बोदला आदि में चक्‍कर काटते रहे। अफजल के साथी का फोन तो लग गया मगर वे अपनी लोकेशन नहीं बता पा रहे थे। लॉकडाउन के कारण आम लोग बाहर नहीं थे, ऐसे में उनकी लोकेशन नहीं मिल पा रही थी। कभी उनसे फोन पर उनकी वीडियो लोकेशन लेते तो कभी इधर-उधर की बडी इमारत या प्रतिष्‍ठान पर लगे बोर्ड को पढकर बताने की कहते। करीब एक घंटे के चक्कर काटने के बाद आखिर दोनों साथी मिल गए।

भाई, हम पहुंच गए अपने घर

आगरा से रवाना होने के बाद भी 'जागरण लगातार उनके संपर्क में रहा। सभी साथी मिलने के बाद ये दल आगे बढ़ा ही था कि आगरा प्रशासन ने हाईवे पर रोक लिया। एहतियातन एक क्वारंटाइन सेंटर पर रखा। यहां खाना भी दिया गया। रात में प्रशासन ने किसी वाहन से गंतव्य के लिए रवाना किया। अगले दिन बुलंदशहर तक पहुंचे और वहां से परिजनों को फोन किया। परिजन वाहन लेकर आए और सभी लोगों को गांव ले गए। अपने घर पहुंचकर 'अफजलÓ ने 'जागरणÓ को फोन किया- भाई, हम लोग अपने घर आ गए। अब क्या इरादा है? जागरण के सवाल पर अफजल बोले, जोधपुर से घर तक के सफर ने जिंदगी का फलसफा ही बदल दिया है। पता होता कि इतनी दुश्वारियां सहनी पड़ेंगी तो जोधपुर से आते ही नहीं। मगर, वहां से धोखे में रख रुख्सत कर दिया गया। व्यथा जारी थी। हम तो बेजान लकड़ी में भी जान फूंकने का हुनर रखते हैं, मगर हमें तो अपनी ही जान के लाले पड़ गए थे। लॉकडाउन खत्म हो भी जाए, तब भी जोधपुर जाने के बारे में एक बार सोचना पड़ेगा। फिलवक्त तो हम यहीं पर अपनों के बीच जिंदगी को तराशने की प्लानिंग कर रहे हैं। 

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