प्राण त्यागने पर ही छूटा था लक्ष्मण के हाथ से तिरंगे का साथ

शहीद लक्ष्मण ने निकाली थी वृंदावन में तिरंगा यात्रा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 13 Aug 2018 02:17 PM (IST) Updated:Mon, 13 Aug 2018 02:17 PM (IST)
प्राण त्यागने पर ही छूटा था लक्ष्मण के हाथ से तिरंगे का साथ
प्राण त्यागने पर ही छूटा था लक्ष्मण के हाथ से तिरंगे का साथ

आगरा(विपिन पाराशर): श्रीकृष्ण की लीला भूमि को देश के वीर सपूतों ने अपना खून देकर गौरवान्वित करने में भी कसर नहीं छोड़ी। 28 अगस्त 1942 को एक नौजवान देश के स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष में खुशी-खुशी प्राणों का बलिदान देकर चला गया। आज भी वृंदावन के आसमान पर शहीद लक्ष्मण नाम का सितारा नगर के लिए गौरव बना हुआ है।

जिस दिन अंग्रेजों की गोली ने उनका सीना छलनी किया, वह तिरंगा लिए कोतवाली की ओर प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे थे। गोली लगने के बाद वह जमीन पर गिर पड़े, लेकिन अपने हाथ से न तो तिरंगा गिरने दिया और न झुकने दिया।

राजस्थान के बीकानेर निवासी हेतराम सिंह के पुत्र लक्ष्मण का जन्म राजस्थान में हुआ। उनके माता-पिता का 1933 में निधन हो गया। इसके बाद वह अपने तीर्थ पुरोहित गोवर्धन निवासी देवकीनंदन के यहा आकर रहने लगे। देवकीनंदन भी स्वतंत्रता आदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। आए दिन जेल जाना हो जाता था सो उन्होंने लक्ष्मण को किशोर अनाथालय में दाखिल करवा दिया। बाद में वह शिक्षा के साथ एक प्याऊ पर पानी पिलाकर जीवनयापन करने लगे, लेकिन आजादी की खातिर समय-समय पर आदोलन में भी अपनी सहभागिता कर रहे थे। 1942 में उनके पुरोहित देवकीनंदन स्वतंत्रता की लड़ाई में जेलयात्रा कर लौटे तो गोवर्धन में उन्हें पुलिस परेशान करने लगी। वह वृंदावन आ गए तो लक्ष्मण भी वृंदावन आकर रहने लगे। यहा आदोलन के दौरान वह कई बार जेल गए। वीरता उनके रग-रग में भरी थी। कहा जाता है कि जेल काटने के दौरान वह अक्सर नीम के पेड़ पर ही बैठे रहते थे। दोपहर को भोजन के समय ही उतरते। भोजन करने के बाद फिर पेड़ पर चढ़ जाते और रात को जेल बंद होने के समय ही उतरते थे।

लक्ष्मण ने 28 अगस्त 42 को वृंदावन में अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ जंग छेड़ते हुए तिरंगा यात्र शुरू कर दी। सैकड़ों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ जुलूस कोतवाली की ओर बढ़ रहा था तो अंग्रेज सिपाहियों ने नगर पालिका के सामने फायरिंग शुरू कर दी। इसमें लक्ष्मण के सीने पर एक गोली लगी और वह शहीद हो गए। लक्ष्मण के शहीद होते ही स्वाधीनता सेनानियों में आक्रोश फैल गया। इस संघर्ष में कई सेनानियों के गोली लगी, लेकिन शहीद का तमगा सिर्फ वीर लक्ष्मण को ही मिला। शहीद ब्रजनंदन के परिवार के पूर्व सभासद विष्णुदान शर्मा बताते हैं कि उनके चाचा अक्सर शहीद लक्ष्मण के जीवट के किस्से सुनाया करते थे। उनकी माने तो शहीद लक्ष्मण अक्सर अंग्रेज सिपाहियों से भिड़ जाते और किसी असहाय पर जुल्म होता देखते तो उसका जोरदारी से प्रतिकार करते।

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