बेनूर जिंदगियों में सुरों से 'नूर' भर रहे निखिल, मिल रही हर जगह शाबासी

दिव्यांग निखिल चौधरी कर रहे मां के सपने को साकार। अपने हुनर से कर रहे शिष्यों के भविष्य को रोशन।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Thu, 10 Jan 2019 01:50 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jan 2019 05:30 PM (IST)
बेनूर जिंदगियों में सुरों से 'नूर' भर रहे निखिल, मिल रही हर जगह शाबासी
बेनूर जिंदगियों में सुरों से 'नूर' भर रहे निखिल, मिल रही हर जगह शाबासी

आगरा, सुबान खान। ऊपर वाले ने उसकी आंखों से नूर छीन लिया लेकिन गले में ऐसा सुर दिया कि वे खुद अपनी और अपने जैसे बच्चों की जिंदगी रोशन कर रहे हैं। वे उन लोगों के लिए रोशनी की किरण हंै, जो यह समझते हैं कि दृष्टि बाधित होने के कारण उनकी जिदंगी बेनूर हो गई है। हम बात कर रहे हैं अवधपुुरी के रामजीत नगर में रहने वाले निखिल चौधरी की।

कुदरत के सितम को हराकर मां के सपनों को निखिल साकार कर रहे हैं। बेनूर जिंदगी में सुरों का 'नूरÓ भर रहे हैं। निखिल की जिंदगी भले ही अंधेरे से भरी हो, लेकिन वह दूसरों के जहां को रोशन करने की तालीम दे रहे हैं। शब्द-शब्द चुनकर वह जोड़कर सुरों की ताकत बयां करते हैं।

अवधपुरी के रामजीत नगर में रहने वाले निखिल चौधरी के सिर से पिता राजकुमार सिंह का साया बचपन में ही उठ गया था। 50 फीसद नेत्रों से दिव्यांग निखिल की मां मधु चौधरी की आस उसे मंच पर देखने की बंधी थी। अपने बुढ़ापे के सपने त्यागकर उसकी जिंदगी में रंग भरने लगीं। टीवी, रोडियो, मोबाइल से उन्हें गाने सुनाए और गायन में निखिल का रुझान बढ़ाया और अवधपुरी स्थित स्नेह मंदबुद्धि संस्थान में दाखिला दिलाया। फिर क्या था निखिल भी मां के सपने को साकार करने में जुट गए। निखिल की उम्र करीब सोलह वर्ष है। संगीत उनके रोम-रोम बस गया है। शहर के ताज महोत्सव सहित कई बड़े बॉलीवुड गायकों के साथ गायन प्रदर्शित कर चुके हैं। अब जहां भी संगीत की आवाज सुनते हैं, उसी जगह अपनी आवाज के जादू के बिखरने लग जाते हैं।

ये थी मुश्किल

पिता का बचपन में ही और मां का 2016 में निखिल के सिर से साया उठ गया। इसके बाद से नाना व नानी उसका पालन पोषण कर रहे हैं। नाना-नानी अर्जुन नगर से आकर निखिल के आवास पर ही रहने लगे हैं।

शब्द-शब्द याद करके तैयार गाना

निखिल के शिक्षिका ने बताया कि वह निखिल को एक-एक शब्द याद कराती हैं। एक गाना करीब एक महीने में तैयार होता है। इस प्रकार लय व संगीत के साथ सामंजस्य बिठाने में वक्त लगता है। अब वह उसी संस्थान में अन्य बच्चों को भी गायन सिखाते हैं।

ऐसे हुई संस्थान की शुरुआत

स्नेह संस्थान की निदेशक अनुपमा गोयल ने बताया कि उनकी बहन रुपाली गोयल भी जन्म से दिव्यांग थी। उसकी प्रारंभिक शिक्षा तो हो गई, लेकिन उच्च शिक्षा में लड़की होने के नाते बहुत दिक्कत आईं। उनके पापा ने वर्ष 2004 में संस्थान की शुरुआत की और घर पर ही बच्चों को पढ़ाने लगे। कुछ वक्त गुजरा 2007 मेें अवधपुरी में पूरा संस्थान कायम कर दिया।

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