Firozabad Famous Jain Temple: मुहम्मद गौरी भी नहीं तोड़ सका था यहां की अद्भुत प्रतिमा, भगवान चंद्रप्रभु से जुड़ा है इतिहास

Firozabad Famous Jain Temple फिरोजाबाद के सदर बाजार के निकट है चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर। तीन सौ साल पुराना है मंदिर का इतिहास पूरे देश में नहीं है यहां के जैसी मूर्ति। मुहम्मद गौरी ने 14वीं सदी में इस मंदिर पर भी किया था आक्रमण

By Abhishek SaxenaEdited By: Publish:Mon, 08 Aug 2022 06:09 PM (IST) Updated:Mon, 08 Aug 2022 06:09 PM (IST)
Firozabad Famous Jain Temple: मुहम्मद गौरी भी नहीं तोड़ सका था यहां की अद्भुत प्रतिमा, भगवान चंद्रप्रभु से जुड़ा है इतिहास
फिरोजाबाद चंद्रप्रभु मंदिर में है स्फटिक की तीन सौ साल पुरानी चमत्कारी प्रतिमा, दर्शन से होते हैं पाप नष्ट

आगरा, जागरण टीम। यूपी के हर शहर में मंदिर की एक विशेष मान्यता है। ऐसा ही एक जैन मंदिर फिरोजाबाद में है। फिरोजाबाद में सदर बाजार के निकट स्थित चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास काफी गौरवमयी है। इसमें विराजमान भगवान चंद्रप्रभु की स्फटिक (क्वार्ट्ज) की अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करने से पाप कर्मों का नाश हो जाता है। ऐसी मान्यता है।

भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा से जुड़ी हैं कईं किवदंतियां

इतिहास के अनुसार करीब तीन सौ साल पुराने मंदिर में स्थापित भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा से कई चमत्कार और किवदंतियां जुड़ी हैं। फिरोजाबाद बसने से पूर्व यमुना किनारे स्थित चंद्रवाड़ मुख्य शहर हुआ करता था। यहां के राजा चंद्रसेन जैन धर्म के अनुयायी थे।

मुहम्मद गौरी ने किया था चंद्रवाड़ पर हमला

इतिहास में दर्ज है कि 14वीं सदी में मुगल शासक मुहम्मद गौरी की सेना ने जब चंद्रवाड़ पर हमला करते हुए मंदिरों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया था तो राजा ने भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा बचाने के लिए यमुना में प्रवाहित किया था। प्रतिमा प्रवाहित करने के कई साल बाद एक माली को सपना आया कि यमुना नदी में भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा है।

सपने की जानकारी जैन समाज को दी

माली ने अपने स्वपन की जानकारी समाज को जानकारी दी, इसके बाद सब पहुंचे। यमुना नदी में प्रतिमा की खोज करना आसान नहीं था। माली को अगली बार स्वप्न आया कि नदी में फूल डाले तो अपने आप पता चल जाएगा। माली ने टोकरी भरकर पुष्प यमुना के जल में छोड़े। फूल एक स्थान पर ठहर गए और उतनी जगह पानी घट गया। इसके बाद नदी से यह प्रतिमा निकालकर मंदिर में स्थापित कराई गई।

संतों ने मंदिर में वर्षायोग 1933 में आचार्य शांतिसागर महाराज 1956 में आचार्य महावीर कीर्ति 1965 में आचार्य विद्यानंद 1975 में आचार्य विद्या सागर 1986 में आचार्य विमल सागर जैसे ख्यातिप्राप्त संत मंदिर में वर्षायोग कर चुके हैं।

देश में नहीं है इस तरह की प्रतिमा

मंदिर समिति अध्यक्ष ललतेश जैन ने का कहना है कि आचार्य शांति सागर महाराज ने कहा था कि यह नगर धन्य है। भारत भर में इस प्रकार की दूसरी मूर्ति नहीं है। 

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