रक्षाबंधन पर यहां हर गांव हो जाता है खेलगांव, जानिए क्‍या है खासियत Agra News

अनोखी खेल भावना रक्षाबंधन पर गांव में होती है कबड्डी दंगल कुश्ती। इस प्राचीन परंपरा के पीछे हैं कई वैज्ञानिक व सामाजिक कारण।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Thu, 15 Aug 2019 11:11 AM (IST) Updated:Thu, 15 Aug 2019 08:12 PM (IST)
रक्षाबंधन पर यहां हर गांव हो जाता है खेलगांव, जानिए क्‍या है खासियत Agra News
रक्षाबंधन पर यहां हर गांव हो जाता है खेलगांव, जानिए क्‍या है खासियत Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। हाथों पर बहनों की राखी, बदन पर गांव की मिट्टी। गबरू जवान जब गांव के किनारे खेत में बने मैदान में हुंकार भरते हैं तो रक्षाबंधन का पर्व पूर्ण माना जाता है। कुछ ऐसी ही है भारत के गांवों की रक्षाबंधन पर खेल संस्कृति। जिसके पीछे सामाजिक कारण भी है, वैज्ञानिक कारण भी हैं। 

रक्षाबंधन का त्योहार यूं तो भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए है पर गांवों में इस त्योहार को ग्रामीण युवाओं की खेल शक्ति प्रदर्शन के रूप में भी जाना जाता है। भारत में शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां रक्षाबंधन पर्व पर खेलकूद प्रतियोगिताएं न होती हों। आगरा-फतेहपुर सीकरी रोड स्थित गांव सहारा के सात पहलवान बेटियों के पिता विसंबर सिंह बताते हैं कि यह परंपरा यूं ही नहीं है। इसके पीछे ठोस सामाजिक व वैज्ञानिक कारण हैं। उन्होंने इसे कुछ यूं बयां किया।

बहनों को भरोसा दिलाते हैं भाई

विसंबर कहते हैं कि रक्षाबंधन पर जब बहनें अपने मायके आती हैं तो भाई खेलकूद प्रतियोगिताओं में भाग लेकर उन्हें यह अहसास कराते हैं कि माता-पिता जरूर बूढ़े हो गए हैं पर उनकी सुरक्षा और मान सम्मान के लिए उनका भाई स्वस्थ हैं। उनका भाई उनके लिए किसी भी मुसीबत से लडऩे के लिए तैयार है। खेल प्रदर्शन से भाई ऐसा एहसास कराने का प्रयत्न करता है।

दामादों के सम्मान के लिए होता है आयोजन

गांवों में रक्षाबंधन पर खेलकूद प्रतियोगिताएं आयोजित कराने का एक कारण यह भी है कि इस दिन विवाहिताओं के साथ उनके पति ससुराल आते हैं तो यहां खेल आयोजन कराकर उन्हें उसमें भाग दिलाया जाता है। यह सम्मान का सूचक होता है। इससे दामाद की ससुराल में युवाओं से जान पहचान भी बढ़ती है। गांवों में दामाद को सम्मान देने की परंपरा होती है।

आसान होता है खेल मैदान बनाना 

राष्ट्रीय स्तर के एथलीट वीरू शर्मा कहते हैं कि रक्षाबंधन पर्व भादौ में बरसात के दिनों में आता है। इस दौरान अधिकांश खेत खाली होते हैं व खेतों की मिट्टी भीगकर मुलायम हो चुकी होती है। ग्रामीणों को यहां खेल का मैदान बनाने में आसानी होती है। वहीं पर्व पर गांव के नौकरीपेशा वाले नौजवान भी गांव आते हैं जिससे आयोजन में भाग लेने वालों की संख्या कम नहीं होती।

chat bot
आपका साथी