Fear of Corona: चीन से लौटे दंपती बोले, काला पानी की सजा सुनी थी, हमने तो भुगत भी ली

भारत आकर सुनाई वुहान की आपबीती। 38 दिनों से वुहान शहर में फंसे थे जलेसर के प्रोफेसर दंपती।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Thu, 27 Feb 2020 08:50 PM (IST) Updated:Fri, 28 Feb 2020 09:02 AM (IST)
Fear of Corona: चीन से लौटे दंपती बोले, काला पानी की सजा सुनी थी, हमने तो भुगत भी ली
Fear of Corona: चीन से लौटे दंपती बोले, काला पानी की सजा सुनी थी, हमने तो भुगत भी ली

आगरा, हरीश वार्ष्‍णेय। कोरोना वायरस के संक्रमण की दहशत में चीन के वुहान शहर में अपने फ्लैट में 'कैद' रहने के बाद जलेसर की दंपती ने गुरुवार सुबह भारत की धरती पर कदम रखते ही 'आजादी' महसूस की। यहां आकर सुकून भरी सांस ली। दंपती ने कहा कि उन्होंने काला पानी की सजा के बारे में सिर्फ सुना था मगर, वुहान शहर में गुजारे 38 दिन उनके लिए काला पानी की सजा से कम भी नहीं थे। उन्होंने इस दौरान मानसिक प्रताडऩा झेली है।

वुहान की टैक्सटाइल्स यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशीष यादव और उनकी पत्नी नेहा यूनिवर्सिटी कैंपस में ही फ्लैट में रहते थे। कोरोना वायरस फैलने पर वह 20 जनवरी से अपने फ्लैट में थे। भारत से विशेष विमान उन्हें लेकर गुरुवार सुबह करीब सात बजे दिल्ली में उतरा। जांच आदि की प्रक्रिया के बीच डा.आशीष ने 'जागरण' से फोन पर बात की। वुहान शहर के हालातों के बारे में बताया कि हर ओर खौफनाक सन्नाटा पसरा था। पुलिस के गूंजते हूटर कभी-कभी इस सन्नाटे को चीरते थे। सूरज की किरणें दिन का अहसास कराती थीं वरना रातभर घुप अंधेरा छाया रहता था। कभी काला पानी की सजा को देखा तो नहीं लेकिन, शायद हमारी स्थिति उससे कम बुरी नहीं थी।

शुरू में कोरोना वायरस फैलने की खबरें आईं आसपास के लोग एक-एक कर घर छोड़कर चले गए थे। 20 जनवरी को जब हमें फ्लैट से बाहर न निकलने की हिदायत दी गई तो इस बीमारी की भयावहता का अहसास हुआ। फ्लैट में बंद रहते-रहते हम दोनों मानसिक तनाव में आ गए। बात-बात पर चिड़चड़ाहट होने लगती थी।

डा. आशीष की बात जारी थी। बताया कि अस्पतालों में संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के चलते 23 फरवरी को उनकी बिल्डिंग के सामने बने बॉयज हॉस्टल में आइसोलेशन वार्ड बनाकर संक्रमित लोगों को रखा गया, तब दहशत और बढ़ गई। लगा कि हम भी किसी भी पल इस वायरस के शिकार हो सकते हैं। खिड़की खोलने में भी डर लगता था। बार-बार परिजनों के फोन आते थे कि जान खतरे में आ जाए, ऐसी नौकरी से क्या फायदा? छोड़कर भारत लौट आओ। लेकिन, आते भी तो कैसे? कोई रास्ता भी तो नहीं था।

बकौल डा. आशीष, अपने देश और सरकार पर ही जीवन और वापसी की उम्मीद टिकी हुई थी। हर गुजरता दिन जीवन की संभावनाओं को कम कर देता था। 26 फरवरी को भारतीय दूतावास से आए फोन ने उम्मीदें जगा दीं। रात को जब विमान में बैठे तो लगा कि अब आजादी मिलने वाली है। और गुरुवार सुबह देश की धरती पर उतरते ही हम दोनों ने सुकून भरी सांस ली।

कम खाया, कम पानी पीया

डा. आशीष ने बताया कि हमारे लिए यह 38 दिन किसी मानसिक प्रताडऩा से कम नहीं थे। बहुत थोड़े भोजन और थोड़े पानी में हमने यह लंबा समय गुजारा है। अंतिम दो सप्ताह में स्वयंसेवी संगठनों ने निश्शुल्क राशन-पानी उपलब्ध कराया। नहीं तो हमारे पास इतना भोजन-पानी खत्म हो गया था।

थैंक यू मोदी

डॉ. आशीष यादव ने सकुशल भारत वापसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यसभा सदस्य हरनाथ ङ्क्षसह यादव और सांसद एसपी सिंह बघेल का शुक्रिया अदा किया।

आइटीबीपी बेस कैंप में हो रही जांच

डा. आशीष और उनकी पत्नी नेहा को दिल्ली में इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आइटीबीपी) के बेस कैंप में ले जाया गया। वहां गुरुवार शाम या शुक्रवार को उनका चिकित्सकीय परीक्षण किया जाएगा।

स्वजन नहीं पहुंच पाए

डा. आशीष के पिता भंवर सिंह अस्वस्थ्य हैं। इस वजह से वे दिल्ली अपने बेटे की वापसी पर पहुंच नहीं पाए। 

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