पानी का नौकर, भंवर का जंगजू

विनीत मिश्र, आगरा: बचपन में मुहल्ले की पोखर में हाथ-पैर मारने के शौक में नदी की लहरें चीरने लगा। पानी की नौकरी मिलने पर भंवर का ऐसा जंगजू बना कि 38 वर्ष की नौकरी में अब तक 100 से ज्यादा जिंदगियां बचा चुक हैं। सतीशचंद्र।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Sep 2018 10:00 AM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 10:00 AM (IST)
पानी का नौकर, भंवर का जंगजू
पानी का नौकर, भंवर का जंगजू

विनीत मिश्र, आगरा: बचपन में मुहल्ले की पोखर में हाथ-पैर मारने के शौक में नदी की लहरें चीरने लगे। पानी की नौकरी मिलने पर भंवर का ऐसा जंगजू बना कि 38 वर्ष की नौकरी के दरम्यान अब तक करीब सौ जिंदगियां बचा चुके हैं।

ये कहानी है केंद्रीय जल आयोग में कार्यरत ग्रेड टू वर्कर सतीश चंद्र की। आगरा के चक्की पाट निवासी सतीश चंद्र बताते हैं कि हींग की मंडी के तालाब में 11 साल की उम्र में तैराकी सीख गए थे। युवावस्था की बात है। परिजनों से रूठ कर घर छोड़ दिया। 1979 में केंद्रीय जल आयोग चित्तौड़गढ़ में चतुर्थश्रेणी कर्मचारी के रूप में नौकरी मिल गई। बस यहीं से नदियों में डूबते लोगों की जिंदगी बचाना उनका मकसद बन गया। किसी को भी पानी में डूबता देख छलांग लगा देते हैं। भंवर से जूझते हुए उसे बाहर निकाल ही लाते हैं। झालावाड़ में नौ लोगों को बचाया:: सतीश को वर्ष 1983 का वो वाकया अब तक याद है। झालावाड़ जिले की परवन नदी के तट पर सतीश नहा रहे थे। तभी ग्रामीणों से भरा एक ट्रैक्टर नदी में गिर गया। उसमें सवार लोग पानी में बहने लगे। सतीश ने नदी में छलांग लगा दी। एक-एक कर नौ लोगों को बाहर निकाल लिया। हालांकि कुछ ग्रामीण डूब गए थे। बॉक्स

बिना हाथ-पैर चलाए नापी यमुना: सतीश यमुना नदी में बिना हाथ-पैर चलाए तैरते हैं। 15 अगस्त को वह हाथ में तिरंगा लेकर यमुना में पोइया घाट से बहादुरपुर होते हुए बल्केश्वर पहुंचे थे। कोई पीठ थपथपाए तो चौड़ा हो जाए सीना

सतीश कहते हैं कि डूबते लोगों की जिंदगी बचाकर मन को सुकून मिलता है। दूसरों को बचाने में कई बार खुद भंवरों में फंस गया, चोटिल भी हुआ। लेकिन उसकी परवाह नहीं की। मलाल बस इस बात का है कि कभी कोई अवार्ड नहीं मिला।

chat bot
आपका साथी