षष्टम देवी कात्यायनी का ध्यान मंत्र

मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप का ध्यान नवरात्र के छठे दिन किया जाता है, जो हमारे भीतर कर्म की महत्ता प्रतिपादित करता है। कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठोर तपस्या की थी। कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। स्वर्ण के समान दैदीप्यमान मुख वाली मां का वाहन सि

By Edited By: Publish:Tue, 30 Sep 2014 08:06 AM (IST) Updated:Tue, 30 Sep 2014 11:44 AM (IST)
षष्टम देवी कात्यायनी का ध्यान मंत्र

मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप का ध्यान नवरात्र के छठे दिन किया जाता है, जो हमारे भीतर कर्म की महत्ता प्रतिपादित करता है। कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठोर तपस्या की थी। कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। स्वर्ण के समान दैदीप्यमान मुख वाली मां का वाहन सिंह है। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमें अपने कर्मो द्वारा अज्ञान के तमस, असंतोष, जड़ता आदि दुर्गुणों से खुद को उबार लेने की प्रेरणा देता है। उनके दैदीप्यमान मुख का ध्यान हमें कर्म व ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा अपने जीवन पथ को आलोकित करने की प्रेरणा प्रदान करता है। मान्यता है कि ब्रज की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां के इसी रूप की पूजा की थी। यही कारण है कि उन्हें ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है।

आज का विचार

हम अपने अच्छे कर्मो के द्वारा ही अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं।

ध्यान मंत्र

ओम् ऐं हृीं क्लीं चामुंडायै विच्चे

ओम् कात्यायनी देव्यै नम:।।

[पं. अजय कुमार द्विवेदी]

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