Skandamata, Chaitra Navratri 2019: नवरात्रि के पांचवे दिन कार्तिकेय की मातृ स्वरूप स्कंदमाता का होता है पूजन
Chaitra Navratri 2019 में पांचवे दिन स्कंदमाता का पूजन होता है वे कुमार कार्तिकेय की माता मानी जाती हैं।
इच्छा की करती हैं पूर्ति
पंडित दीपक पांडे के अनुसार नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। इन्हें मोक्ष के द्वार खोलने वाली परम सुखदायी माना जाता है। ये भी कहा जाता है कि स्कंदमाता के रूप में वे अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में अत्यंत महत्व बताया गया है। कहते हैं इस चक्र में अवस्थित मन वाले भक्तों की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।
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कार्तिकेय की माता
भगवान स्कंद को कुमार कार्तिकेय नाम से भी पहचाना जाता हैं। कार्तिकेय प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा में निम्न श्लोक का जाप अनिवार्य रूप से करना चाहिए। बाकी सभी पूजा विधियों का सामान्य रूप से पालन करें।
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किस प्रकार करें पूजा
देवी स्कंदमाता को गुड़हल का पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में इसे अवश्य अर्पित करें, फल मिष्ठान का भोग लगाएं। कपूर से आरती करें और इस मंत्र का जाप करें ‘सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥’ साथ ही इस श्लोक का भी पाठ करें, देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। इसका अर्थ है, हे मां सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। स्कंदमाता की मूर्ति भगवान स्कंदजी के बालरूप को गोद में बिठा कर बनाई जाती है।
ऐसा है इनका स्वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। वे दायीं तरफ की एक भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं, और दूसरी भुजा में कमल का पुष्प है। वहीं बायीं तरफ ऊपर वाली एक भुजा वरदमुद्रा में हैं और दूसरी भुजा में यहां भी कमल पुष्प है। मां स्कंदमाता पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं मानी जाती हैं। मान्यता है कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। इनका वर्ण शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। ऐसा भी कहा जाता है कि इन्हीं की प्रेणना से कालिदास रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं संभव हुईं।