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Mahabharat Karna: महाभारत के कर्ण से जुड़ी ये बातें नहीं जानते होंगे आप

कर्ण महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण महाभारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से भी एक हैं। यह बात को अधिकतर लोग जानते हैं कि कर्ण छ पांडवों में सबसे बड़े भाई थे लेकिन पांडवों की माता कुंती ने ये बात सभी से छुपाई थी जिस कारण कर्ण को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। उन्हें महाभारत के युद्ध में अर्जुन की टक्कर का योद्धा माना जाता है।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Mon, 29 Apr 2024 03:50 PM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2024 03:50 PM (IST)
Mahabharat Karna: कर्ण से जुड़ी खास बातें।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Facts about karan in hindi: महाभारत एक ऐसा ग्रंथ हैं, जो मनुष्य को सिखाता है कि जीवन में कौन-सी गलतियां नहीं करनी चाहिए। महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में से एक कर्ण की श्रेष्ठता को भगवान परशुराम ने भी स्वीकार किया। कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कर्ण से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जिन्हें कम ही लोग जानते होंगे।

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कर्ण का परिवार

बहुत कम ही लोग यह जानते होंगे कि कर्ण का विवाह हुआ था। कर्ण की एक नहीं बल्कि दो पत्नियां थीं। कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था और दूसरी पत्नी का नाम सुप्रिया। दोनों पत्नियों से कर्ण की नौ संतानें हुईं।

मांगे ये वरदान

एक बार भगवान कृष्ण ने कर्ण की दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही। तब उन्होंने कर्ण के अंतिम समय में उससे सोने का दान मांगा। तब कर्ण के पास केवल सोने के दांत ही थे, तो उसने अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए। इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को वरदान मांगने को कहा।

तब कर्ण ने वरदान मांगा कि मेरे वर्ग में जन्मे लोगों का कल्याण हो। दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण को अपने राज्य में जन्म लेने को कहा और तीसरा वरदान यह मांगा कि मेरा अंतिम संस्कार ऐसा कोई व्यक्ति करें, जो पाप मुक्त हो। भगवान कृष्ण ने कर्ण के सभी वचन मानते हुए स्वयं उसका अंतिम संस्कार किया।  

पिछले जन्म की कथा

कर्ण पूर्वजन्म में एक असुर राजा दंभोद्भवा था, जो सूर्यदेव के परम भक्त था। सूर्य देव की भक्ति के कारण ही वह अगले जन्म में कवच और कुंडल के साथ, कर्ण के रूप में पैदा हुए थे। लेकिन अपने पूर्व जन्म के कारण ही उन्हें जीवनभर यातनाएं भोगनी पड़ी। कथा के अनुसार, दंभोद्भवा को यह वरदान मिला हुआ था कि उसका वध वही कर सकता है, जिसने एक हजार साल तप किया हो। नर और नारायण भगवान विष्णु के अंशावतार थे। जब दुरदुम्भ को यह पता चला कि नर-नारायण एक हजार साल से तपस्या कर रहे हैं, तो उसे अपनी मृत्यु का भय सताने लगा।

तब नर और नारायण ने बारी-बारी से तपस्या करके दंभोद्भवा के कवच को 999 कवच तोड़ा। जब एक कवच बच गया तो असुर सूर्य लोक में जाकर छुप गया। तब नर और नारायण ने उसे ये श्राप दिया कि अगले जन्म में भी तेरा इसी कवच के साथ जन्म होगा, लेकिय यह भी तेरी मृत्यु से रक्षा नहीं कर सकेगा। 

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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