मतों के गुणा-भाग में कलाकार फिट नहीं बैठते

ख्यातिलब्ध ख्याल गायक पद्मभूषण पं. राजन-साजन मिश्र का मानना है कि चुनाव का दौर है सो राजनीतिक दलों का मतदाताओं की उम्मीदों में सपनों के बौर लगाने पर जोर है। हर लोकसभा की वोटर आबादी में मतों की गुणा-गणित के हिसाब से 'वाद' आबाद किए जा रहे। आखिर कलाकार भी तो अल्पसंख्यक हो आए लेकिन किसी को इनकी याद नहीं आती। वोटों के ग

By Edited By: Publish:Mon, 24 Feb 2014 02:53 PM (IST) Updated:Mon, 24 Feb 2014 02:53 PM (IST)
मतों के गुणा-भाग में कलाकार फिट नहीं बैठते

ख्यातिलब्ध ख्याल गायक पद्मभूषण पं. राजन-साजन मिश्र का मानना है कि चुनाव का दौर है सो राजनीतिक दलों का मतदाताओं की उम्मीदों में सपनों के बौर लगाने पर जोर है। हर लोकसभा की वोटर आबादी में मतों की गुणा-गणित के हिसाब से 'वाद' आबाद किए जा रहे। आखिर कलाकार भी तो अल्पसंख्यक हो आए लेकिन किसी को इनकी याद नहीं आती। वोटों के गुणा गणित में शास्त्रीय संगीत के कलाकार फिट नहीं बैठते। गायक बंधु से प्रमोद यादव की बातचीत के प्रमुख अंश।

चुनावी घोषणा पत्रों में संगीतज्ञों व साहित्यकारों को क्या अपेक्षाएं हैं?

यह दुखद सत्य है कि चाहे कोई भी दल हो, सभी के घोषणा पत्र संस्कृति विहीन होते हैं। उसमें खासकर शास्त्रीय संगीत व कलाकारों के लिए तो कुछ भी नहीं होता। सच मानिए, चाहे जितनी भी विकास की बात कर लें लेकिन संस्कृति के बिना देश रसातल में चला जाएगा।

इस माहौल में कलाकार समाज अपने आप को कहां पाता है?

राजनीतिक दलों ने कलाकारों को कहीं का नहीं छोड़ा। अपनी कला के बूते जो कमा लें और कला का संरक्षण कर लें अन्यथा राजनीति की उपज जनप्रतिनिधियों ने केवल वादे के सिवा कुछ नहीं किया।

संगीत खास तो आम से भी जुड़ा मसला है फिर अनदेखी क्यों?

अब पार्टियां और नेता हर चीज को वोट के नजरिए से देखते हैं। उसे कलाकार वोट बैंक नहीं लगता इसलिए भला कोई फिक्त्र करे भी तो क्यों। रेडियो में कलाकारों को संविदा पर जॉब मिलती थी, अब उससे भी वंचित। अल्पसंख्यक हो गए हैं कलाकार, अगर सभी दल इस बिरादरी को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया जाए ताकि कुछ कल्याण हो जाए।

बड़ा जनमानस कलाकारों के साथ होता है, उनके जरिए बात क्यों नहीं उठाते?

वास्तव में कलाकारों को छल कपट नहीं आता। हम कला के पुजारी हैं तालियां मिल गईं तो मुराद मिल गई, खुश हो लिए लेकिन दर्द होता है उन तमाम कलाकारों की उपेक्षा से जो बुढ़ापे में कराहते दम तोड़ देते हैं। न तो चिकित्सा व्यवस्था और न रहने का ठिकाना। दलों से अपील है इन मुद्दों को घोषणा पत्र का हिस्सा बनाएं।

क्या उम्मीदें हैं अगले चुनाव से कला और कलाकारों को?

किससे क्या उम्मीद करें। अभी कुछ ही महीने पहले बनारस में सपा प्रमुख को कलाधाम निर्माण का प्रस्ताव किया। उनकी हां भी मिली। उन्होंने इसके लिए भूमि बताने को कहा, हमने अधिकारियों को ऐसी सरकारी जमीनें तक बता दीं लेकिन बात धरी की धरी रह गई। रही बात हमारी तो कला को उसका हक दे दो और कुछ नहीं चाहिए। युवा कलाकारों को मौका मिले और पुरनियों को सम्मान।

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