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Ram Mandir: 'कभी बाराती तो कभी वानर बनकर लक्ष्य में जुटे रहे', साहित्‍य परिषद के राष्‍ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य याद करते हुए भावुक

अखिल भारतीय सहित्‍य परिषद के राष्‍ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य संस्मरण करते हुए भावुक हो उठते हैं। वह बताते हैं कि लखनऊ से छिपते-छिपाते अयोध्‍या के लिए निकल पड़े। हमें अधिकारियों ने जानकारी दी थी कि मनकापुर स्टेशन से निकलने के बाद ट्रेन की स्‍पीड कम हो जाएगी तो चलती ट्रेन से छलांग लगानी है। मैंने प्रभु श्रीराम का नाम लेकर अंधेरे में ही छलांग लगा दी।

By Jagran News Edited By: Sonu SumanPublished: Wed, 03 Jan 2024 04:43 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jan 2024 04:43 PM (IST)
अखिल भारतीय सहित्‍य परिषद के राष्‍ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने बीते दिनों को किया याद।

मनु त्‍यागी, नई दिल्ली। पांच सौ वर्ष के संघर्षकाल में यह सौभाग्य ही था कि दो बार श्रीराम कारसेवा में गिलहरी जैसा योगदान देने का अवसर मिला। तीन सौ से अधिक त्रिशूलधारी बजरंगी श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा के संकल्प के साथ तैयार थे।

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1990 में पहली कारसेवा में अपने 37 बजरंगियों के साथ दूल्हे सहित बरातियों का स्वांग रच गोमती एक्सप्रेस में नई दिल्ली से चल पड़े। पूरी ट्रेन छद्म यात्रियों के रूप में कारसेवकों से भरी थी। खुफिया तंत्र भी सक्रिय था। कभी जय श्रीराम का नारा लगता तो  उत्साही कारसेवक नारे में साथ देते और धर लिए जाते। अंततोगत्वा लखनऊ पंहुचने तक दूल्‍हे की टोली में आठ लोग ही बचे थे। मैं भी उनमें था। 

अपना यह संस्मरण सुनाते हुए अखिल भारतीय सहित्‍य परिषद के राष्‍ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य भावुक हो उठते हैं। वह बताते हैं कि लखनऊ से छिपते-छिपाते अयोध्‍या के लिए निकल पड़े। हमें अधिकारियों ने जानकारी दी थी कि मनकापुर स्टेशन से निकलने के बाद ट्रेन की स्‍पीड कम हो जाएगी तो चलती ट्रेन से छलांग लगानी है।

अप्रत्‍यक्ष रूप से रेलवे भी हमारा सहयोग कर रहा था। लेकिन, दुर्भाग्‍य से उस जगह पर ट्रेन की गति अपेक्षाकृत कम नहीं हुई, सो मैंने प्रभु श्रीराम का नाम लेकर अंधेरे में ही छलांग लगा दी। सौभाग्य से मात्र खरोंच भर आई, क्‍योंकि नम जमीन पर गिरा था। डेढ़ किमी तक पैदल चलने के बाद रात 11 बजे के आसपास कच्‍चे घरों में उम्‍मीद की जली रोशनी दिखी। 

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वह कहते हैं कि दरवाजा खटखटाकर श्रीराम का नाम लेते ही आसरा मिल गया। उस समय मानो पूरी अयोध्‍या में हर घर श्रीराम के लिए समर्पित था। सुबह होते ही पता चला वहां आसपास 100 से अधिक कारसेवक थे, जो सुबह होते ही तितर-बितर हो गए। इनमें एक सेवानिवृत्‍त मेजर भी थे।

उन्‍होंने कारसेवकों को निर्देश देना शुरू किया। समूह में सड़क मार्ग छोड़ पानी लगे खेतों की मेड़ों के रास्ते दिनभर और पूस की उस रात में चले। भोर में मेजर साहब ने सबको आवाज लगाई कि अब हम बिलकुल अयोध्या में हैं और सरयू नदी के पल के मुहाने के नजदीक हैं। आगे पुलिस ने चारों तरफ पूरा क्षेत्र कब्‍जे में लिया हुआ था। पुलिस रोकती तो रामधुन कीर्तन करने लगते।

पुलिस के षड्यंत्र में गच्‍चा खा गए

उन्होंने बताया कि मेजर साहब की युक्ति के तहत आगे बढ़ते गए। और लक्ष्‍य यानी विवादित ढांचे के एकदम करीब पहुंच गए। खुद को विजयी मानने लगे। लेकिन ये भ्रम था। पुलिस प्रशासन का षड्यंत्र था ताकि सब वहां तक पहुंच जाएं तब कारसेवकों को घेरा जाए। पुलिस बल ने यहां पहले तो चेतावनी दी उसके बाद रबड़ की गोली से फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली मेरे बाएं पैर के घुटने के नीचे लगी। भयंकर पीड़ा के बावजूद लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ता रहा। तभी पुलिस ने आगे पीछे से असली गोलियां चलानी शुरू कर दीं कमर से ऊपर निशाना लेकर। मेरे साथ चल रहे एक राजस्थानी कारसेवक को गले में गोली लगी, वहीं गिर गया। यह देख मुझे कुछ नहीं सूझा और मैं भी बलिदानी साथी के साथ जमीन पर कटे वृक्ष की तरह गिर पड़ा।  पुलिस मुझे भी मृत समझ आगे गुजर गई। मौका पाते ही छलांग लगाई और सरयू नदी के पास दलदल में गिरा। पुल से बलिदानी कारसेवकों और घायलों को हटाया जा चुका था।  सब वापसी के मार्ग पर थे।  

'श्रीराम की  वानर सेना ही मानता हूं'

प्रवीण आर्य ने बताया कि कारसेवा-2 को प्रवीण आर्य अपना सौभाग्य मानते हैं। उन दिनों स्‍कूल में कार्यरत थे तो वहां से अवकाश नहीं मिलने पर पोस्‍टकार्ड पर लिखकर ही अपना त्‍यागपत्र भेज दिया था।

बताते हैं कि बैकुंठलाल शर्मा प्रेम के नेतृत्व में 110 बलिदानी कारसेवकों का जत्था अयोध्या गया। हम लोगों को राम मंदिर परिसर के समीप अस्थायी कारसेवकपुरम में टेंटों में ठहराया गया।  हम 10 दिन पूर्व ही पहुंच गए थे।  परिसर के  निकट के मकान की छत को मंच का रूप दे दिया गया था।  रोज साधु-संतों और विहिप पदाधिकारियों के भाषण होते थे।  एक ही लक्ष्‍य था कि प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि 'असली' कारसेवा करनी है। 

'ढ़ांचा कारसेवकों के बीच पिंजरा लग रहा था'

उन्होंने बताया कि प्रमुख वक्ताओं में आचार्य धर्मेंद्र, पूज्य साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, अशोक सिंहल, डॉ. मुरली मनोहर जोशी नित्य रोज लाखों कारसेवकों को प्रेरित करते थे।  बकौल प्रवीण रोज सरयू नदी में स्नान कर प्रभु श्रीराम के बाल रूप दर्शन करके आगे के कार्य शुरू होते थे।

कुछ प्रतीकात्‍मक कारसेवा के पक्षधरों की बात सुनकर खून खौलता था। हम तो बलिदान होने आए थे रामलीला के मंच पर अभिनय करने नहीं। यदि उस समय के दृश्‍यों को कोई देखता तो हम सभी को प्रभु श्रीराम की  वानर सेना ही मानता।  वो घड़ी नजदीक आ चुकी थी।

विवादित ढांचा लाखों कारसेवकों के बीच पिंजरा नजर आ रहा था। तभी गुंबद पर ओडिशा के कारसेवक चढ़ गए  और कुछ लोहे के छोटे औजार से कारसेवा करने लगे और उस पर भगवा ध्वज फहरा दिया। फिर एक पुलिस का सिपाही भी ढांचे पर चढ़ गया उसने अपनी वर्दी उतार कर हवा में उड़ा दी।  यह सब देखकर वहां तैनात हजारों सुरक्षाकर्मी भाग खड़े हुए। 

'उमा भारती ने बताया कहां चोट करना है'

उन्होंने बताया कि हमारे हाथ एक लोहे का लंबा गार्डर लगा, जो हमे रोकने के लिए घेराबंदी में लगा हुआ था। सामूहिक रूप से उसे उखाड़ लिया था। ढांचे को गिराने के लिए उसी गार्डर का उपयोग कर रहे थे। हम सभी कारसेकवकों के बीच प्रेम एवं उमा भारती कारसेवकों के बीच समझा रहे थे कि किस जगह चोट मार-मार कर ढांचे को क्षतिग्रस्त करना है। 

अंतत: गुंबद गिरा, उस पर चढ़े अनेक कारसेवक जय श्रीराम बोलते हुए बलिदान हो गए। ढांचे ध्वस्त के साथ साथ हमें अति ऐतिहासिक पत्थर वस्तुए मलबे में से मिल रहीं थीं उनको हम मंच के समीप सौंपते जा रहे थे जो कि आगे ऐतिहासिक दृष्टि से कोर्ट में निर्णायक साक्ष्य बनीं। शाम होने तक सब शांत। लेकिन कुछ देर बाद ही घोषणा हुई कि रात भर कारसेवा  चलेगी। कोई विश्राम नहीं करेगा। सभी अपने अपने घरों में चार-चार ईंट और एक-एक थैली मिट्टी प्रसाद स्वरूप लेकर जाएंगे। 

'तड़के ही अस्थायी राम मंदिर बना दिया गया'

उन्होंने आगे बताया कि कारसेवकों की कतारें लग गईं। सब भरकर ले जाने लगे। तड़के अस्थायी राम मंदिर बनाकर रामलला को प्रतिष्ठापित कर दिया गया। सब सेवक अयोध्‍या स्‍टेशन की ओर पैदल चल पड़े थे। हुजूम था, ट्रेन में जिसे जहां जगह मिली, वहां बैठे। छतों पर बैठे, ट्रेन की बोगियों के बीच में जो जगह होती है उसी पर बैठकर आए। लंबा सफर था।

ट्रेन की गति बहुत धीमी थी और बीच-बीच में मुस्लिम आबादी के बीच हम पर भारी पथराव हो रहा था।  लेकिन प्रभु राम की कृपा से हमारा बाल भी बांका नहीं हुआ। किसी प्रकार लखनऊ पहुंचे और फिर घर पहुंच कर ईंटें और मिट्टी सुरक्षित रख दी।  आगे समय आने पर भवन निर्माण के समय वह ईंट और मिट्टी हमने नींव में पूजन कर स्थापित की।

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