Rajasthan: गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ा कर दिया जीवन, एम्स जोधपुर में हुआ राजस्थान का पहला इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन

AIIMS Jodhpur मेडिकल में इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन कहलाने वाले इस प्रोसीजर में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिये गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Fri, 04 Sep 2020 05:28 PM (IST) Updated:Fri, 04 Sep 2020 05:30 PM (IST)
Rajasthan: गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ा कर दिया जीवन, एम्स जोधपुर में हुआ राजस्थान का पहला इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन
Rajasthan: गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ा कर दिया जीवन, एम्स जोधपुर में हुआ राजस्थान का पहला इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन

जोधपुर, संवाद सूत्र। AIIMS Jodhpur: गर्भस्थ शिशु को मां के पेट से खून चढ़ाकर नई जिंदगी देने की सफल चिकित्सा जोधपुर एम्स में की गई है। मेडिकल में इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन कहलाने वाले इस प्रोसीजर में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिये गर्भाशय में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है। राजस्थान में सरकारी स्तर पर पहली बार अत्यधिक कुशल चिकित्सकों के द्वारा जोधपुर एम्स के स्त्री और प्रसूति रोग विभाग के तहत संपूर्ण चिकित्सा प्रक्रिया को पूरा किया गया है। इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन के बाद नवजात शिशु और प्रसूता दोनों स्वस्थ हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जोधपुर में स्त्री व प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. प्रतिभा सिंह ने बताया कि जोधपुर में भी विभाग भ्रूण चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवा रहा है और हमने आरएच-आईसोइम्युनाइजड गर्भावस्था के उपचार में सफलता प्राप्त की है।

विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनु गोयल द्वारा इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन किया गया है। जिसके बाद जच्चा-बच्चा को चौदह दिनों के लिए नियोनेटेलॉजी विभाग के प्रो. अरूण सिंह और अतिरिक्त आचार्य नीरज गुप्ता की देखरेख में रखा गया। नवजात के स्वास्थ में लगातार सुधार और स्थिर स्थिति के मद्देनजर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन की पूरी प्रकिया से उपचार करने वाली चिकित्सक डॉ मनु गोयल ने बताया कि 29 वर्षीय प्रसूता को छह माह के गर्भवती होने पर खून की कमी की जांच के लिए जोधपुर एम्स लाया गया था। जिसकी केस हिस्ट्री स्टडी करने पर सामने आया कि प्रसूता पूर्व में भी दो बार गर्भवती हुई थी, लेकिन भूर्ण में खून की कमी से विगत दोनों मामलों में भी भूर्ण की मौत हो चुकी थी। इस बार भी सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसूता के भूर्ण में खून की कमी पाई गई थी, जिसके बाद इंट्रायूट्रियन ट्रांसफ्युजन सुविधा से नवजात को भूर्ण में खून चढ़ाने की प्रकिया कर आठ वे महीने में प्रसव करवाया गया।

मां-बाप के ब्लड आरएच विपरीत होने पर बनती है ये स्थिति

नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड आरएच पॉजिटिव होने के कारण ये स्थिति बनती है। डॉ मनु गोयल के अनुसार, इस विपरीत रक्त समूह के कारण, भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है और मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं और ये एंटीबॉडी प्लेसेंटा को पार करते हैं। भ्रूण के आरबीसी को खत्म करने लगते हैं। धीरे धीरे ये भ्रूण में एनीमिया का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है , जिसे चिकित्सा विज्ञान में हाइड्रोप्स फिटेलिस कहा जाता है। ऐसे मामलों में  गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। अमूमन हजार से बारह सौ प्रसूताओं में किसी एक को इसका गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्युजन मैथर्ड से इसको रोका जा सकता है।

जानें, क्या होता है इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन

आम बोलचाल की भाषा मे प्रसूता में खून की कमी होने पर उसके प्रसव पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसके कारण गर्भाशय के भीतर ही रक्त की कमी होने से गर्भस्त शिशु की मौत हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई का उपयोग करके भ्रूण को गर्भाशय में ही आंवल नलिका से रक्त चढ़ाया जाता है। ऐसी पद्दति से खून सीधा भ्रूण तक पहुंचता है, जिससे उसका गर्भ में संपूर्ण विकास हो पाता है।

जानें, किसने क्या कहा भ्रूण चिकित्सा के क्षेत्र में एम्स जोधपुर ने नए क्षितिज को छुआ है, क्योंकि यहां पहली बार इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन प्रक्रिया शुरू की गई है। जो कि समूचे राजस्थान में सरकारी अस्पताल में पहली बार हुई है।

-प्रो संजीव मिश्रा निदेशक, एम्स, जोधपुर।

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गर्भावस्था के छठे महीने से हर हफ्ते खून चढ़ाया गया। कुल छह इंट्रायूट्रिन ट्रांसफ्यूजन किए गए। आठवें महीने सीजेरियन सेक्शन द्वारा शिशु का जन्म हुआ, जिसको दो सप्ताह तक नर्सरी में ही ऑब्जर्वेशन में रखा गया, जिसके बाद छुट्टी दे दी गई। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।

-डॉ मनु गोयल, एसोसिएट प्रोफेसर, एम्स, जोधपुर।

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