सावधान, कहीं आपके बच्‍चे को भी तो नहीं है मोबाइल की 'लत'

यदि आपका बच्‍चा मोबाइल फोन से चिपका रहता है तो सावधान हो जाएं। आज इंटरनेट डिपेंडेंट साइकोसिस की बीमारी बच्चों व युवाओं को तेजी से अपनी चपेट में ले रही है। स्‍कूली बच्‍चों में भी यह समस्‍या बढ़ रही है। ऐसा ही एक मामला यहां सामने आया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sun, 13 Sep 2015 06:19 PM (IST) Updated:Mon, 14 Sep 2015 10:04 AM (IST)
सावधान, कहीं आपके बच्‍चे को भी तो नहीं है मोबाइल की 'लत'

जागरण संवाददाता, पठानकोट। यदि आपका बच्चा मोबाइल फोन से चिपका रहता है तो सावधान हो जाएं। आज इंटरनेट डिपेंडेंट साइकोसिस की बीमारी बच्चों व युवाओं को तेजी से अपनी चपेट में ले रही है। स्कूली बच्चों में भी यह समस्या बढ़ रही है। ऐसा ही एक मामला यहां सामने आया है। मोबाइल की दीवानगी में एक स्कूली छात्र ने स्कूल छोड़ दिया है। मोबाइल लाने से मना करने पर पांचवीं के इस बच्चे ने स्कूल जाने से मना कर दिया। अब, उसके माता-पिता उसकी काउंसिंलिंग करा रहे हैं।

मोबाइल लाने से मना किया तो पांचवीं के छात्र ने स्कूल जाना छोड़ा

पठानकोट के मोहल्ला खानपुर का 10 साल का यह बालक पांचवीं में पढ़ता है। परिजनों के मुताबिक, देर-देर तक इंटरनेट गेम के अतिरिक्त सांग-वीडियो की डाउन लोडिंग ने उसे बेबस बना दिया है। परिजनों ने सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डाक्टर सोनिया मिश्र से उसका चेकअप करवाया। डा. सोनिया ने शनिवार आैर रविवार को बच्चे की कांउसलिंग की।

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उसकी मां ने बताया कि उसकी जिद है कि परिजन या टीचर उससे मोबाइल न छीनें। वह मोबाइल पर देर-देर तक कैंडी क्रश गेम खेलता रहता है। उसने अपनी अध्यापिका से भी साफ कहा कि यदि वह स्कूल आएगा तो मोबाइल साथ लेकर आएगा। अध्यापिका ने स्कूल में मोबाइल लाने की इजाजत न होने की बात कही तो उसने स्कूल जाना छोड़ दिया। काफी समझाने के बाद भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा है।

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मां ने बताया कि सुबह उठते ही वह दूध नहीं बल्कि मोबाइल मांगता है। पहले पिता का मोबाइल प्रयोग करता था, अब उनका मोबाइल प्रयोग करने लगा है। नेट पैक खत्म हो जाने पर रिचार्ज नहीं करवाने तक विद्रोही रुख अपना लेता है। बालक शहर के लमीनी स्थित एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है। उसकी माता अध्यापिका हैं और पिता बिजनेसमैन।

अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिव डिसआर्डर का शिकार है बच्चा : डा. सोनिया

डा. सोनिया मिश्रा।

बच्चे का उपचार कर रही मनोरोग विशेषज्ञ डा. सोनिया मिश्र ने इसे अटेंशन डेफिसिट हाईपर एक्टिव डिसआर्डर की बीमारी बताया है। उन्होंने बताया कि वह एक जगह पर टिक कर नहीं रह सकता। इस समस्या के कारण बच्चे में दिमागी शिथिलता भी आती जाती है। इसके लिए उपचार व काउंसलिंग की आवश्यकता है।

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डा. मिश्रा ने रविवार को दूसरे दिन भी बच्चे की लगभग पौना घंटा तक काउंसलिंग की। उनके अनुसार, इसका उसके दिमाग पर असर होना शुरू हो गया है, लेकिन उसे नार्मल बनाने के लिए जहां दवा का उपयोग होगा वहीं उसकी कांउसलिंग भी समय-समय पर करनी होगी।

डा. सोनिया के अनुसार, बच्चे के माता-पिता सुबह अपने काम पर चले जाते थे। ऐसे में वह स्कूल से आने के बाद खुद को अकेला महसूस करता था। अकेलेपन को दूर करने के लिए वह मोबाइल पर गेम खेलने लगा और बाद में इसका पूरी तरह से आदी हो गया। आज स्थिति ऐसी हो चुकी है कि वह खाना न खाए, स्कूल जाए न जाए लेकिन मोबाइल के बिना नहीं रह सकता।

'स्कूल-कालेजों में काउंसिलिंग हो जरूरी'

डा. मिश्रा का कहना है कि इंटरनेट एडिक्शन के ग्राफ को देखते हुए स्कूलों व कालेजों में इस विषय पर काउंसलिंग जरुरी करनी चाहिए। इसके बिना यह समस्या स्कूल व कालेज के बच्चाें को अपनी चपेट में ले रही है।

शहर के रमा चोपड़ा महाविद्यालय की प्रिंसिपल डा. सतिंद्र काहलों का भी कहना है कि प्रत्येक स्कूल व कालेज में इस बारे में काउंसलिंग होनी चाहिए। काउंसलिंग को जरूरी विषय के रूप में लागू कर किया जाना उचित होगा। इस संबंध में अभिभावकों की भी काउंसलिंग हो और उन्हें जागरूक किया जाए।

डा. सतिंद्र काहलों।

इंटरनेट डिपेंडेंट साइकोसिस से ऐसे करें बचाव बचाव

विशेषज्ञों के अनुसार कुछ बातों का ध्यान रखकर अभिभावक अपने बच्चे को इस समस्या से बचा सकते हैं।

- माता-पिता बच्चों पर ध्यान दें।
- बच्चों को योग, मेडिटेशन के लिए प्रेरित करें।
-जरूरत से पहले बच्चों को मोबाइल फोन न थमाएं।
-उनकी सोशल साईट के प्रति एक्टिविटियों को रोज चेक करें,कहीं वे इसका गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहे।
-पढ़ाई में उसकी प्राेग्रेस क्या है,इसकी अनदेखी कभी न करें।
- माता-पिता बच्चों के सामने मोबाइल का कम से कम प्रयोग करें।
-सबसे जरूरी बात, परिजन बच्चों के सामने वॉटसएप हो या अन्य सोशल साइट्स इनका प्रयोग बंद करें
-बच्चे की पढ़ाई का टाइम टेबल तय करें और उसे रोजाना चेक करें।
-उन्हें अकेला न छोड़ें और यह ध्यान रखें कि आपका बच्चा अकेलापन तो नहीं महसूस कर रहा। अपने को बड़ा मानने की बजाए बच्चों से दोस्त जैसा व्यवहार करें।

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