राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः शिक्षा में सुधार तो हुआ लेकिन शहर को इनोवेशन की जरूरत

उन्होंने कहा कि हालत यह हैं कि एनजीओ की ओर से बनवाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव नहीं है, ढंग से सफाई तक नहीं होती।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sun, 29 Jul 2018 06:00 AM (IST)
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः शिक्षा में सुधार तो हुआ लेकिन शहर को इनोवेशन की जरूरत

औद्योगिक शहर लुधियाना की बढ़ती आबादी के साथ यहां शिक्षण संस्थानों का भी विस्तार हुआ, लेकिन आज भी शहर की जरूरतों के अनुसार शिक्षा पॉलिसी बनाने की आवश्यकता है। वर्तमान में स्कूलों और कॉलेजों का जो सिस्टम है, उसमें काफी सुधार करना होगा। शिक्षण संस्थानों में इनोवेशन समय की जरूरत है। उक्त बातें दैनिक जागरण की ओर से आयोजित 'माय सिटी, माय प्राइड' मुहिम के तहत शिक्षा से जुड़ी शख्सियतों की राउंडटेबल कांफ्रेंस में सामने आईं।

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कांफ्रेंस का संचालन डॉ. श्रुति शुक्ला (करियर गाइडेंस स्टेट कोआर्डिनेटर, शिक्षा विभाग) ने किया, जबकि इस मौके पर रायन इंटरनेशनल की प्रिंसिपल गुरपाल कौर, क्रिमिका की डायरेक्टर समीरा बैक्टर, पंजाब यूनिवर्सिटी के सीनेट मेंबर हरप्रीत सिंह दुआ, राउंड टेबल इंडिया 188 के चेयरमैन निखिल, पूर्व प्रिंसिपल अनूप पासी, एडवोकेट हरि ओम जिंदल, टीचर संजीव कुमार तनेजा और नरिंदर सिंह उपस्थित रहे।

विशेषज्ञों ने एक स्वर में कहा कि लुधियाना में ज्यादातर स्कूल और कॉलेज कैंपस वाइब्रेंट नहीं हैं। उनमें सुधार की जरूरत है। इसके साथ ही शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने के लिए डिग्री की बजाए क्वालिटी टीचर्स रखने होंगे। ताकि बच्चे परंपरागत शिक्षा प्रणाली से निकल खुद का करियर बनाने के लिए स्टडी करें। यह तभी संभव है, जब टीचर्स के साथ स्टूडेंट्स के अंदर भी कुछ कर गुजारने का पैशन पैदा होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तेजी से शहर का विकास हुआ और आबादी बढ़ी, उतनी तेजी से स्तरीय स्कूलों की संख्या नहीं बढ़ी। कुछ बड़े निजी स्कूलों में टीचर और स्टूडेंट्स का अनुपात मेन्टेन किया जाता है, लेकिन ज्यादातर में कहीं यह अनुपात बरकरार नहीं रहता। निजी स्कूलों में जहां एक क्लास में लगभग 40 बच्चे होते हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में यह संख्या कहीं ज्यादा तो कहीं कम होती है। कुछ सरकारी स्कूलों में बच्चा एक और टीचर तीन भी देखे गए हैं। उनका मानना था कि प्रत्येक कक्षा में टीचर-स्टूडेंट अनुपात 24-40 के बीच ही होना चाहिए। इस सिस्टम को बदलना होगा और यहां ऊपर लेवल से होगा। सरकार के स्तर पर ही सिस्टम गड़बड़ा जाता है।

शहर के ज्यादातर स्कूलों में अपना खेल मैदान ही नहीं है। खासकर प्राइमरी स्कूल में यह सुविधा नहीं के बराबर है, जिसके कारण बच्चों और युवाओं को सही दिशा देने में दिक्कत आ रही है। बिना खेल मैदान वाले स्कूलों को मान्यता ही नहीं दी जानी चाहिए। स्कूलों को नियम कानून पूरी तरह से पालन करने के लिए बाध्य करना होगा।

स्कूलों में शौचालय का बुरा हाल है। एक स्कूल में ढाई हजार बच्चों के पीछे मात्र पांच शौचालय थे। जहां इतनी संख्या पर्याप्त नहीं है, वहीं उसकी सफाई नहीं रखी जा पाती। ज्यादातर स्कूलों में स्वीपर तक नहीं होता। सरकारी स्कूलों में तो स्वीपर का प्रावधान भी नहीं है। स्कूल के बच्चे अपने घर में सफाई रखते हैं, लेकिन स्कूल में नहीं रखते। उनमें यह कल्चर डेवलप करना होगा।

विशेषज्ञों के अनुसार शिक्षण संस्थानों में वोकेशनल क्लासेज तो है, लेकिन उसका लाभ नहीं मिलता। उन्हें प्रोडक्टिविटी सेंटर के रूप में तैयार करना होगा। इसके लिए लुधियाना के उद्योगों से तालमेल कर उनकी जरूरतों के अनुसार युवाओं को वोकेशनल कोर्स करवाने होंगे, ताकि उनका करियर बन सके।

टीचर्स को मोटिवेट किया जाए तो सुधरेगा सिस्टम
स्कूल सरकारी हों या फिर प्राइवेट। टीचर्स को मोटिवेट करना बेहद जरूरी है। अगर अच्छा काम करने वाले टीचर को मोटिवेट किया जाए तो उनकी क्वालिटी में सुधार होगा। जिसका सीधा फायदा विद्यार्थियों को मिलेगा। यह कहना है शिक्षा विभाग की स्टेट करियर गाइडेंस कोऑर्डिनेटर डॉ. श्रुति शुक्ला का।

डॉ. शुक्ला कहती हैं कि टीचर्स को अच्छा वेतन दिया जाए ताकि टीचर्स बनना यूथ की पसंद हो। वह मानती हैं कि सरकारी स्कूलों के टीचर्स बेहद क्वालिफाइड हैं, लेकिन उन पर काम का इतना बोझ है कि वह अपने मूल कार्य की तरफ पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं। टीचर्स बच्चों के लिए बतौर काउंसलर का काम करें जिससे बच्चों को करियर चुनने में मदद मिल सके। उनका मानना है कि सिस्टम में बदलाव की जरूरत है, क्योंकि कई ऐसे कायदे कानून हैं, जिससे टीचर्स काम नहीं कर पा रहे। उनमें बदलाव की जरूरत है।

स्टूडेंट टीचर अनुपात को बेच रहे हैं स्कूल
पंजाब यूनिवर्सिटी के सीनेट मेंबर और एसोसिएट प्रोफेसर हरप्रीत दुआ कहते हैं कि कभी स्टूडेंट टीचर अनुपात कोई मायने नहीं रखता था। लेकिन अब स्टूडेंट टीचर अनुपात को एजुकेशन पॉलिसी में स्थान दे दिया गया है। शहर में कई ऐसे निजी स्कूल हैं, जो कि इसे बेच रहे हैं। जिस स्कूल में स्टूडेंट टीचर अनुपात कम है वह स्कूल बच्चों से ज्यादा फीस चार्ज कर रहे हैं।

उनका कहना है कि कॉलेज लेवल पर भी टीचर और स्टूडेंट का अनुपात तय है, लेकिन उसे कोई मान नहीं रहा। लुधियाना में एक भी कॉलेज ऐसा नहीं है जो कि शहर की जरूरत के हिसाब से हायर एजुकेशन दे रहा हो। शहर में जिन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर हैं, बच्चों को उसके हिसाब से एजुकेशन नहीं दी जा रही। शहर के कॉलेजों में उन कोर्सेज को शुरू करना होगा जो कि शहर की इंडस्ट्री की जरूरत हो।

पैरेंटस ने क्रिएट कर दिया ट्यूशन कल्चर
बच्चा स्कूल बाद में जाता है और पेरेंट्स उसके लिए ट्यूशन टीचर पहले ढूंढ़ लेते हैं। यहां तक कि नर्सरी कक्षा में दाखिला लेने से पहले भी बच्चे को ट्यूशन भेज देते हैं। पेरेंट्स ने ट्यूशन कल्चर क्रिएट कर दिया। यह कहना है कि क्रिमिका ग्रुप की डायरेक्टर समीरा बैक्टर का। समीरा बैक्टर मानती हैं कि परेंट्स को इससे बाहर निकलना होगा और अपने बच्चों को खुद मॉरल एजुकेशन पर जोर देना होगा।

स्कूलों में बच्चों को किताबों में झोंकने के बजाए उसे प्रैक्टिकल की तरफ ले जाना होगा। बेसिक लेवल पर बच्चों को लाइफ स्किल देने की जरूरत है। उनका मानना है कि बच्चों को जब उनके अधिकारों के बारे में बताया जाता है तो उन्हें उनके कर्तव्यों के बारे में भी बताया जाना चाहिए। ताकि वह समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझे। स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देने की जरूरत है।

प्राइमरी स्तर पर बच्चों को 'कैरेक्टर बिल्डिंग' का पाठ पढ़ाना जरुरी
रायन इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल गुरपाल कौर का कहना है कि प्राइमरी स्तर पर शिक्षा का स्तर कमजोर होने के चलते उनमें जीवन जीने की आदतों में कमी रह जाती है। ऐसे में प्राइमरी स्तर पर ही बच्चों में बेसिक शिक्षा के साथ साथ 'कैरेक्टर बिल्डिंग' का पाठ पढ़ा कर जीवन का मकसद समझाया जा सकता है। इससे बच्चों को यह पता चलेगा कि उनके अधिकार क्या हैं, समाज के प्रति कर्तव्य क्या हैं। मौजूदा शिक्षा सिस्टम पुराना पड़ चुका है। इसमें आधारभूत बदलाव करने होंगे, ताकि बच्चों का सर्वपक्षीय विकास हो सके।

शहर के स्कूलों में इसकी पहल अपने स्तर पर भी की जा सकती है, ताकि बच्चों को सही दिशा में शिक्षा देकर उनको जीवन का मकसद समझाया जा सके। इसके अलावा छोटे बच्चों में से ट्यूशन कल्चर को खत्म करने की भी जरूरत है। स्कूलों में शिक्षा इतनी कारगर हो कि बच्चों को ट्यूशन की जरूरत न पड़े। इस दिशा में बच्चों के साथ साथ माता-पिता को भी जागरूक करना होगा। बच्चों के अलावा अध्यापकों का चुनाव भी सख्ती से करना होगा। उनका स्टेट्स बढ़ाने की कवायद करनी होगी।

नेता जी आते हैं, फोटो खिंचवा कर भूल जाते हैं
प्राइमरी स्तर पर शिक्षा में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। स्वयं सेवी संगठन और कॉरपोरेट सेक्टर अपने सीएसआर से स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवा रहे हैं। उनके उद्घाटन पर नेताजी आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन बाद में सब कुछ भूल जाते हैं। यह कहना है राउंड टेबल इंडिया के चेयरमैन निखिल का।

उन्होंने कहा कि हालत यह हैं कि एनजीओ की ओर से बनवाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव नहीं है, ढंग से सफाई तक नहीं होती। स्थिति बेहद गंभीर है। कुछ दिन पहले ग्यासपुरा के एक सरकारी स्कूल में 14 क्लास रूम और तीन शौचालय बनवाए गए। स्कूल में 1400 बच्चे पढ़ते हैं। एक दिन वैसे ही जाकर मुआयना किया तो देखा कि शौचालय बेहद खराब हालत में थे।

प्रिंसिपल को शिकायत दी तो वे बोले कि सफाई कर्मी नहीं है। बदकिस्मती है कि बच्चों से ही सफाई कराई जाती है। प्राइमरी स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए उनके लिए इनकम मॉडल बनाने की सलाह दी गई, ताकि स्कूलों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बना कर ढांचागत विकास कराया जा सके। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए शिक्षा के पेटर्न में पूर्ण बदलाव करना जरूरी है। फिलहाल पूरा सिस्टम अंग्रेजों के कल्चर पर चल रहा है जोकि बदलते परिवेश में फिट नहीं है।

पारंपरिक की बजाय प्रैक्टिकल पढ़ाई पर हो जोर
एडवोकेट हरी ओम जिंदल कहते हैं कि पारंपरिक की बजाय बच्चों को प्रैक्टिकल पढ़ाई की तरफ लाना समय की मुख्य जरूरत है। बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ उनके हक, उनका समाज के प्रति जिम्मेदारी संबंधी पूरी तरह से जागरूक होना जरूरी है। अच्छी एजुकेशन प्रणाली के लिए अभिभावकों को जागरूक करना भी बेहद जरूरी है। तभी आगे की पीढ़ी अच्छी होगी। बच्चों के लाइफ सटाइल की तरफ भी ध्यान देना बेहद जरूरी है। स्कूल में ही बच्चों को खाने पीने की अच्छी आदत डालना, रहन सहन संबंधी जानकारी देना भी बेहद जरूरी है।

इसके लिए अकेले अध्यापकों को नहीं बल्कि अभिभावकों को भी ध्यान देना होगा। लोगों को अपने फंडामेंटल राइट ही नहीं पता हैं, तो वह कैसे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकते हैं। इसलिए बच्चों के साथ साथ उन्हें भी जागरूक करना जरूरी है। स्कूलों में पढ़ाई का स्तर भी उच्च होना चाहिए।

हर स्ट्रीम का हो स्पेशलिस्ट स्कूल
पूर्व प्रिंसिपल अनूप पासी का कहना है कि लुधियाना जैसे शहर में स्ट्रीम वाइज स्पेशलिस्ट स्कूल होना चाहिए, जिसमें सिर्फ उसी स्ट्रीम की स्टडी होनी चाहिए। स्कूल ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए कि उसमें प्राइवेट स्कूलों से ज्यादा सुविधाएं हों। एक विषय के स्पेशलिस्ट स्कूल में प्रतिभा के अनुसार बच्चे पढ़ेंगे तो अच्छे बिजनेसमैन, अच्छे टीचर और प्रोफेशनल भी निकलकर आएंगे और अपने आप पूरा सिस्टम ठीक हो जाएगा।

इसका उदाहरण मेरिटोरियस स्कूल हैं, सरकार ने चाहा तो इनका स्टैंडर्ड सेट हो गया। अगर सरकार की नीयत ठीक हो तो इस तरह के स्कूल स्थापित किए जा सकते हैं। लुधियाना में तो काफी जमीन पड़ी है जिनमें यह स्कूल खोले जा सकते हैं। स्कूलों में स्किल डेवलपमेंट के साथ साथ वोकेशनल विषयों संबंधी पढ़ाई के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर देना जरूरी है। अभी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं। वोकेशनल स्ट्रीम में न तो कच्चा माल मिलता है और न ही मशीनें हैं। इन्हें इंडस्ट्री के साथ जोड़ा जाए और ट्रेनिंग के साथ वहां पर प्रोडक्टिविटी पर काम हो।

अध्यापकों को खुद से ही करनी होगी शुरुआत
अध्यापक नरिंदर सिंह के अनुसार किसी भी अच्छे काम की शुरुआत व्यक्ति को खुद से करनी चाहिए। हम बच्चों में संस्कार तभी दे पाएंगे, जब हम इसकी शुरुआत खुद से करेंगे। ऐसे में स्कूल को स्वच्छ रखने और सिस्टम को बेहतर बनाने में पहले अध्यापक खुद से शुरुआत करें और बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें। शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए प्रयास हो रहें हैं, लेकिन इसके इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए प्रयास होने बेहद जरूरी हैं।

सिंह ने कहा कि हम बात ओवरॉल ग्रोथ की कर रहें है, लेकिन खेलकूद के लिए हमारे स्कूलों में मैदान तक नहीं हैं। ऐसे में फिजिकल एजुकेशन का कांसेप्ट कैसे क्लीयर हो पाएगा। स्पोर्टस पॉलिसी तो बन गई है, लेकिन इसे लागू कर पाना आसान नहीं। बात अनुपात की करें, तो शहर के स्कूलों में बच्चे अधिक और अध्यापक कम है। इसमें सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ज्यादा गड़बड़ा गई है। अध्यापकों को समय समय पर अपग्रेड किए जाने की जरुरत है।

इसके साथ ही हमें अच्छे एजुकेशन के लिए बच्चों से कंफर्ट को बढ़ाना होगा, ताकि वे अध्यापकों से बात करने में हिचकिचाएं ना। इसके लिए टीचर ट्रेनिंग बहुत जरुरी है और बदलते दौर में अध्यापकों को भी ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

पॉलिसी को सख्ती से लागू करवाने पर होना चाहिए काम
अध्यापक संजीव कुमार तनेजा कहते हैं कि नियम तो बनते हैं, लेकिन इसे लागू करना और इसे सिस्टम का हिस्सा बनाना सबसे अहम है। इसके लिए हमारे सिस्टम को इतना मजबूत और पॉलिसी को सख्त होना चाहिए कि इस पर अमल हर किसी के लिए जरूरी हो। किसी भी फील्ड में अगर महारत हासिल करनी है, तो इसके लिए हमें इसके एक्सपर्ट तैयार करने होंगे। सरकारी स्कूलों के एजुकेशन सिस्टम में मल्टीपर्पज अध्यापकों की नियुक्ति की जा रही है। जो बच्चों के किसी एक फील्ड में बतौर एक्सपर्ट तैयार नहीं कर पाते। वहीं प्राइवेट स्कूलों में सबजेक्ट एक्सपर्ट टीचर्स रखे जाते हैं।

उन्होंने कहा कि सभी स्कूलों में टीचर-स्टूडेंट अनुपात को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को एफीलिएशन रद्द करने तक की सजा का प्रावधान होना चाहिए। इसके साथ ही अच्छा काम करने वाली सरकारी और गैर सरकारी अध्यापकों को एप्रीशिएट भी करना चाहिए।

वहीं अध्यापकों को इतना वेतन देना चाहिए कि वे ट्यूशन कांसेप्ट पर फोकस करने की बजाए बच्चों की ओवरऑल ग्रोथ पर काम करें। बच्चों में अच्छे संस्कार और ओवरऑल ग्रोथ के लिए उनके साथ टीचर्स और अभिभावकों को फ्रेंडली टॉक करनी चाहिए। इससे बच्चों का ओवरआल विकास होगा और वे अध्यापकों को सम्मान देने के साथ-साथ उनकी बातों को अपने जीवन में लागू करेंगे।

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