मराठी की पुस्तक में शहीद सुखदेव का नाम हटाने पर विवाद, शहीद के वंशज ने पीएम को लिखा पत्र

मराठी में प्रकाशित 8वीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में शहीद सुखदेव का नाम नदारद होने से लाेगाें में महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ राेष है। इस मामले काे पीएम के सामने उठाने की तैयारी चल रही है।

By Vipin KumarEdited By: Publish:Sun, 19 Jul 2020 11:07 AM (IST) Updated:Sun, 19 Jul 2020 11:07 AM (IST)
मराठी की पुस्तक में शहीद सुखदेव का नाम हटाने पर विवाद, शहीद के वंशज ने पीएम को लिखा पत्र
मराठी की पुस्तक में शहीद सुखदेव का नाम हटाने पर विवाद, शहीद के वंशज ने पीएम को लिखा पत्र

लुधियाना, जेएनएन। मराठी भाषा की पुस्तक में शहीद-ए-आजम भगत सिंह और राजगुरु के साथ सुखदेव के नाम की जगह कुर्बान हुसैन के नाम का उल्लेख किए जाने पर शहीद सुखदेव के वंशज अशोक थापर ने एतराज जताया है। यह मामला गरमाने से महाराष्ट्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार लोगों के निशाने पर आ गई है। लाेग इसे शहीदाें का अपमान बता रहे हैं।

अशोक थापर ने कहा कि मराठी भाषा में प्रकाशित 8वीं कक्षा की पाठ्य पुस्तक में शहीद सुखदेव का नाम नदारद होने की जानकारी उन्हें किसी ने दी थी। जब इसकी जांच उन्होंने की तो यह सही पाया गया। पुस्तक में शहीद-ए- आजम भगत सिंह के साथ राजगुरु का जिक्र तो है पर उनके तीसरे साथी सुखदेव का नाम ही नहीं है। सुखदेव की जगह कुर्बान हुसैन का नाम प्रकाशित है जबकि स्वतंत्रता संग्राम में इस नाम का कोई शहीद ही नहीं है।

शहीद के वंशज ने जताया राेष

उन्होंने कहा कि शहीद के वंशज तो इसे गहरी साजिश मान रहे हैं। इसके लिए पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मानव संसाधन विकास मंत्री, महाराष्ट्र सरकार व डीसी लुधियाना को जानकारी दी है। थापर ने कहा कि यह उस महान शहीद का अपमान है। जिसने हंसते हंसते देश की आजादी के लिए फांसी का फंदा चूम लिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार इस भूल में सुधार नहीं करती तो शहीद सुखदेव के वंशज इसके खिलाफ आंदोलन चलाएंगे।

क्या है पूरा विवाद

गाैरतलब है कि यह पूरा विवाद मराठी भाषा की आठवीं कक्षा की किताब बालभारती में छपे एक लेख के कारण हुआ है। किताब में भगत सिंह, राजगुरु के साथ में कुर्बान हुसैन का नाम आया है। जबकि भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव यह तीनों नाम हमेशा से एक साथ में ही आते रहे हैं क्योंकि यह तीनों एक ही दिन शहीद हुए थे। कुर्बान हुसैन सोलापुर के रहने वाले आज़ादी के सिपाही थे।

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