एकल परिवार के मुकाबले संयुक्त परिवारों के बच्चों को मिलते हैं बेहतर संस्कार

पिछले डेढ़ माह से लागूू कर्फ्यू में संयुक्त परिवारों के सदस्यों का समय आसानी से कटा और पारिवारिक सदस्यों ने एक-दूसरे साथ वर्षों बाद तमाम पुरानी यादों को ताजा किया।

By Sat PaulEdited By: Publish:Fri, 15 May 2020 04:14 PM (IST) Updated:Fri, 15 May 2020 04:14 PM (IST)
एकल परिवार के मुकाबले संयुक्त परिवारों के बच्चों को मिलते हैं बेहतर संस्कार
एकल परिवार के मुकाबले संयुक्त परिवारों के बच्चों को मिलते हैं बेहतर संस्कार

जालंधर, जेएनएन। परिवार रिश्तों की डोरी में बंधे एक ऐसे समूह का नाम है, जिसमें अपनेपन की गर्माहट, जिम्मेदारियों का अहसास, संस्कारों की बाध्यता, अनुशासन की मिसाल तथा हर सदस्य के अंदर पूरे परिवार की ताकत के आत्मविश्वास की भावना रहती है। पिछले डेढ़ माह से लागूू कर्फ्यू में संयुक्त परिवारों के सदस्यों का समय आसानी से कटा और पारिवारिक सदस्यों ने एक-दूसरे साथ वर्षों बाद तमाम पुरानी यादों को ताजा किया। इसी की कहानी जानने के लिए दैनिक जागरण ने कुछ संयुक्त परिवारों के साथ संपर्क किया।

मित्तल परिवार: लॉक डाउन में पूरा परिवार इकट्ठा

संयुक्त परिवार सिर्फ साथ रहने से नहीं, बल्कि अपनों के साथ जीने से बनता है। देश-विदेश में जालंधर का नाम रोशन करने वाले लवली ग्रुप ने संयुक्त परिवार की परंपरा को कायम रखा है। उनके परिवार में तीन पीढिय़ों के 22 सदस्य हैं। पिछले डेढ़ महीने से लागू कर्फ्यू में पूरा परिवार एक साथ रहकर यादें ताजा कर रहा है। इन दो महीनों में पांच बर्थडे और पांच मैरिज एनिवर्सरी सेलिब्रेशन हुई। खुशी की बात रही कि इसमें पूरा परिवार शामिल रहा। लवली ग्रुप का अपना बेक स्टूडियो होने के बावजूद परिवार के सदस्यों ने ही घर में केक बनाया। सबकी मनपसंद डिश भी बनीं, जिसमें महिलाओं व पुरुषों दोनों ने कुकिंग की। लवली ग्रुप के डायरेक्टर अमन मित्तल बताते हैं कि पिछले डेढ़ माह से पूरा परिवार इकट्ठा रह रहा है। अभी तक हमने अपने परिवार के संघर्ष की कहानी सुनी थी, लेकिन पूरे विस्तार से नहीं। अब पापा रमेश मित्तल (लवली ग्रुप के चेयरमैन) ने बताया कि कैसे उन्होंने गरीबी देखी। एक दुकान खोली जो नहीं चली, फिर दूसरी दुकान भी नहीं चली। इसके बाद लवली वाशिंग पाउडर की फैक्ट्री खोली, जहां पापा खुद काम करते थे। सामान तैयार होने के बाद टैंपो में वे ही डिलीवरी देने जाते थे। इसके बाद लवली स्वीट्स और लवली यूनिवर्सिटी की शुरआत हुई, तब जाकर लवली ग्रुप खड़ा हुआ। यह तभी संभव हुआ क्योंकि सभी मिलकर रहे और एक दूसरे का हाथ बंटाते रहे।

सप्पल परिवार: हर सदस्य के लिए सुरक्षा का कवच है परिवार

इंडस्ट्रीयल एरिया का सप्पल परिवार आज शहर में किसी पहचान का मोहताज नहीं है। उद्योगपति ओम प्रकाश सप्पल को संयुक्त परिवार के साथ-साथ समाज में अच्छी पैठ रखने के लिए जाना जाता है। बेटे भारत भूषण व संदीप सप्पल के साथ कारोबार व परिवार चला रहे ओम प्रकाश बताते हैं कि वे पिता जीआर सप्पल तथा माता रतनी देवी के मूल मंत्र पर ही परिवार चला रहे हैं। पिता बताते थे कि पारिवारिक सदस्यों में मनमुटाव हो सकता है, लेकिन नफरत का कोई स्थान नहीं है। परिवार का कोई भी सदस्य अकेला नहीं है, बल्कि अकेले-अकेले सदस्य के पीछे पूरा परिवार रहता है। पत्नी पूनम सप्पल ने बहू दीपिका व सिम्मी को बेटियों की तरह रखा है। यह सब परिवारिक समर्पण भाव से ही संपन्न संभव हो सका है। ओम प्रकाश सप्पल बताते हैं कि संयुक्त परिवार का सबसे लाभदायक पहलू है कि बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं। कई बार जीवन उपयोगी तथा ज्ञानवर्धक बातें माता-पिता के साथ ही चाचा-चाची, ताया-ताई व दादा-दादी से मिलती हैं। यही परिवार का मूल मंत्र है।

अग्रवाल परिवार: स्व. रवि भूषण ने बंदिश नहीं, प्रेम व सरलता से सींचा परिवार

मकसूदां सब्जी मंडी के वरिष्ठ आढ़ती स्व. रवि भूषण अग्रवाल ने परिवार को किसी बंदिश नहीं, बल्कि अपनेपन तथा सरलता से सींचा है। इसकी झलक चरणजीतपुरा के रहने वाले अग्रवाल परिवार में स्पष्ट दिखती है। भारत भूषण अग्रवाल और कुलभूषण अग्रवाल दोनों भाई बताते हैं कि पिता स्व. रवि भूषण अग्रवाल ने परिवार को समाजिक संगठन की मौलिक इकाई के रूप में विकसित किया। यही कारण था कि शिव भक्तों के लिए पंजाब की सबसे पहली श्री अमरनाथ 'बी' ट्रस्ट का गठन किया। यात्रा शुरू होने पर देश-विदेश से आने वाले शिव भक्त इसी संस्था के बैनर तले श्री अमरनाथ यात्रा पूरी करते थे। इससे अग्रवाल परिवार का नाम देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विख्यात हुआ। दोनों बेटे बताते हैं कि पारिवारिक संस्कृति तथा सिद्धांतों के तराजू में रिश्तों का समन्वय बनाकर रखने वाले पिता के नक्शे कदम पर चल कर परिवार का हर सदस्य प्रेम की माला में मोतियों की तरह बंधा है। तीसरे भाई चंद्रभूषण बताते हैं कि केवल साथ रहने से ही परिवार नहीं बनता, बल्कि रिश्तों की मजबूत डोरी तथा अटूट बंधन का सुमेल ही परिवार की परिभाषा है। संयुक्त परिवार में ही एक-दूसरे की भावनाओं को समझने का हुनर होता है। इसे सामाजिक प्रतिष्ठा स्वयं ही प्राप्त हो जाती है। पिता यही चाहते थे कि परिवार हमेशा इकट्ठा रहे, ये परंपरा उनके निधन के बाद भी बरकरार है।

कपूर परिवार: पॉश कॉलोनी की कोठी में भी बरकरार है रिश्तों की गर्माहट

महेंद्रू मोहल्ले के छोटे से मकान में रहने वाले राम लुभाया कपूर का परिवार संयुक्त परिवार की मिसाल रहा है। उनके निधन के बाद भी उनके दिए हुए संस्कारों की बदौलत कपूर परिवार में अपनेपन की गर्माहट कभी कम नहीं हुई। यही कारण था कि महेंद्रू मोहल्ले के छोटे से मकान से लेकर फ्रेंड्स कॉलोनी की आलीशान कोठी में जाकर भी पारिवारिक सदस्यों में अपनेपन की तनिक भी कमी नहीं आई। खास बात यह है कि परिवार के परंपरागत ढांचे से निकलकर नए स्वरूप में आने के बाद भी परिवार का महत्व कम नहीं हुआ। समय के साथ परिवार का विस्तार हुआ तो इसी कॉलोनी में एक और कोठी खरीद ली, लेकिन स्नेह के धागों में बंधा परिवार यहां भी एक रहा। राम लुभाया के बेटे व परिवार के प्रमुख जतिंदर कपूर बताते हैं कि परिवार में रहकर ही रिश्तों की अहमियत को जाना जा सकता है। पत्नी नीरू कपूर बताती है कि सास-बहू का रिश्ता हो या पति-पत्नी का, सभी में आपसी स्नेह की सहजता है। वह बताती है कि परिवार के बीच रहकर ही रूढ़ीवादी सोच को खत्म करके बहू-बेटियों तथा अगली पीढ़ी को परिवार के साथ जोड़े रखने के संस्कार प्राप्त हुए हैं। परिवार में जितना अधिकार बेटों को है, उतना ही बेटियों व बहुओं को भी है। यहीं से मजबूत होती है पारिवारिक रिश्तों की बुनियाद।

जैन परिवार: शिष्टाचार के साथ मकान को घर का स्वरूप देता है परिवार

लेदर कांप्लेक्स रोड स्थित जैन प्लास्टिक के एमडी तथा आदर्श नगर में रहने वाले सुरेंद्र जैन का मानना है कि परिवार के साथ ही एक मकान को घर का स्वरूप दिया जा सकता है। बात शिष्टाचार की हो, अपनेपन की हो या रिश्‍तों के सुरक्षा कवच की, परिवार में रहकर ही इसकी कल्पना की जा सकती है। समय के साथ समाज में कई परिवर्तन आए, लेकिन परिवार के अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आई। रिश्तों की गरिमा, अनुशासन की परंपरा तथा अपनापन ही परिवार की नींव है। उनकी पत्नी उषा जैन बताती हैं कि बेटे पुनीत जैन और प्रणव जैन ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कार तथा पारिवारिक ढांचे को न सिर्फ पहचाना है, बल्कि वैवाहिक जीवन में भी अपनाया है। यही कारण है कि बहू मनीषा जैन व सान्या जैन भी अब परिवारिक रिश्तों को आपसी स्नेह तथा अपनेपन की माला में पिरो रही हैं। जैन परिवार का हर सदस्य इस संयुक्त संस्था को समर्पित है। विभाजन के दौरान पाकिस्तान के सियालकोट से शहर में आकर बसे इस जैन परिवार का नाम समाज में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। 

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