जग्गा जासूसः काम आए या न आए, यस बॉस कहना आना बहुत जरूरी है...

जालंधर पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी पिछले सप्ताह किन चुटीली नुकीली खबरों को लेकर सुर्खियों में रहे आइए डालते हैं एक नजर।

By Pankaj DwivediEdited By: Publish:Fri, 03 Jan 2020 04:52 PM (IST) Updated:Fri, 03 Jan 2020 04:52 PM (IST)
जग्गा जासूसः काम आए या न आए, यस बॉस कहना आना बहुत जरूरी है...
जग्गा जासूसः काम आए या न आए, यस बॉस कहना आना बहुत जरूरी है...

जालंधर, जेएनएन। जालंधर पुलिस कभी मुस्तैदी तो कभी अपनी सुस्ती के कारण सुर्खियों में रहती है। आइए डालते हैं इस सप्ताह के दौरान घटित पुलिस विभाग से जुड़े कुछ मजेदार वाकयों पर। इन्हें चुटीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं दैनिक जागरण के रिपोर्टर सुक्रांत-

यह बॉस

शहर में पुलिस का भी अजीब सिस्टम है। काम आए न आए, यस बॉस कहना आना बहुत जरूरी है। कई पुलिस वाले तो ऐसे हैं जो अपने काम से अफसरों के दिल में जगह बनाना चाहते हैं लेकिन कई केवल यस बॉस कह कर अपना काम चला रहे हैं। हाल में शहर के एक मलाईदार थाने के प्रभारी बनने वाले साहब को यस बॉस कहने में महारत ही काम आई। महारत भी ऐसी कि सबसे बड़े अफसर को छोड़ कर किसी अफसर के सामने ऐसे खड़े होते हैं जैसे पुलिस विभाग के दामाद हों। लोगों की बात तो सुनना दूर की बात है। कुछ दिन पहले किसी विवाद में फंसे तो उनको लाइन में भेज दिया गया। लेकिन यस बॉस कहने की महारत यहां पर भी काम आ गई। दो चार दिन में ही लाइन से बाहर आए और फिर से एक मलाईदार थाने में तैनात हो गए। तैनात होते ही मूंछों पर ऐसा ताव दिया जैसे कह रहे हों, काम आ गई न यस बॉस कहने की कला।

ठंड में जाम

शहर में इस समय पड़ रही ठंड ने पुलिसवालों को भी खासा परेशान कर रखा है। शुक्रवार को शहर के एक व्यस्त इलाके के चौराहे पर शाम ढलते ही रोज की तरह जाम लग गया। जाम भी ऐसा लगा कि वाहन चलने की बजाए रेंगने लगे। इस दौरान वहां पर खड़े पुलिस कर्मी जेबों में हाथ डाल कर बस यह कहते जा रहे थे कि ‘लंघो अग्गे, बाई जाम न लाओ’। इस बीच वहां एक चाय वाला तीन चार कप चाय ले आया तो जाम खुलवाने के लिए जेब से हाथ बाहर न निकालने वाले पुलिस मुलाजिमों ने चाय के गिलास पकड़ लिए। चाय की चुस्की लेते हुए लोगों को कोसने लगे ‘वेखो लोकां दी अक्ल, किदां इक दूजे तो अग्गे लंघन लई जाम लाई जा रहे ने’। उनकी बात सुन कर किसी ने कहा कि जनाव जाम तो खुलवाओ। यह सुन पुलिम मुलाजिमों ने मुंह फेर लिया और एक दूसरे से बोलने लगे कि ‘अज्ज तां ठंड ही बोहत ए’।

वगार ही पैणी..

दो दिन पहले ही शहर के एक थाने के साहब छुट्टी पर गए तो दूसरे साहब को बड़ी कुर्सी मिल गई। ऐसे में दूसरे नंबर के अधिकारी का रौब सातवें आसमान को भी पार कर रहा था। वहां जाकर देखा तो अचानक उनके सरकारी मोबाइल की घंटी बजी तो जनाब ने नाम देखा और मुंह बना कर बोले ‘छड्डो यार, कुर्सी ते बैठे ही हां कि आ गया नेता जी दा फोन, नई चुकणा यार, वगार ही पैणी ए’। यह कह कर उन्होंने फोन रख दिया। दो तीन बार फोन बजा लेकिन उन्होंने नहीं उठाया तो अचानक उनके दफ्तर का दरवाजा खुला और अंदर आए शख्स को देखते ही दूसरे नंबर के अफसर के चेहरे का रंग देखने लायक था। सामने वही नेता जी थे जो फोन कर रहे थे। साहब ने नेता जी के लिए चाय पानी का इंतजाम कर बड़ी मेहनत से उनको शांत करवा कर भेजा।

वर्दियां-बदलियां

पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में यूं तो हर तरफ वर्दी वाले ही नजर आते हैं लेकिन थानों में दिखने वाली वर्दियां बड़ी तादाद में जब कमिश्नर दफ्तर में नजर आने लगें तो समझ लेना चाहिए कि बदलियों का दौर शुरू हो गया है। बड़े साहब थानों की कुर्सियों पर उन लोगों को देखना चाहते हैं जो काम करें लेकिन काम से ज्यादा आराम फरमाने वाले अपनी मर्जी की कुर्सियां पाने के लिए बड़े साहब के साथ घूमने वाले दूसरे साहब के दफ्तरों में डेरा डाल कर बैठे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि थाने की बड़ी कुर्सी के साथ छोटी कुर्सी पर हक जमाने के लिए लोग भी बड़े साहब से छोटे वाले पद पर आसीन अफसरों के दफ्तरों में पहुंच रहे हैं। इनमें अधिकतर वे हैं जो कुछ समय पहले पुलिस लाइन भेजे गए हैं। उनको उम्मीद है कि साहब ने हाल ही में कुछ पुलिस लाइन वालों पर मेहरबानी की है तो उनपर भी साहब की नजरसानी हो जाए।

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