फाजिल्का पर कब्जे के नापाक मंसूबे हुए थे नाकाम

जागरण संवाददाता, फाजिल्का फाजिल्का सेक्टर में 1971 का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध था। तब तीन आसाम बटा

By Edited By: Publish:Fri, 09 Dec 2016 03:02 AM (IST) Updated:Fri, 09 Dec 2016 03:02 AM (IST)
फाजिल्का पर कब्जे के नापाक मंसूबे हुए थे नाकाम

जागरण संवाददाता, फाजिल्का

फाजिल्का सेक्टर में 1971 का युद्ध सबसे बड़ा युद्ध था। तब तीन आसाम बटालियन और 15 राजपूत रेजीमेंट के जवानों ने अपनी शहादत देकर फाजिल्का पर कब्जा करने के करीब पहुंच चुके पाकिस्तानी सैनिकों को वापस भागने पर मजबूर किया।

बात तीन दिसंबर 1971 की है। जब पाकिस्तान ने एकदम से भारी पर हमले का दुस्साहस करते हुए फाजिल्का सेक्टर में चढ़ाई कर दी। पाक रेंजरों ने गांव बेरीवाला के पुल पर कब्जा कर लिया। दुश्मन जब फाजिल्का की तरफ बढ़ा तो 4 जाट बटालियन के जवानों ने दुश्मन पर हमला करके कई इलाके छीन लिए, लेकिन बेरीवाला पुल काबू में नहीं आ सका। बेरीवाला पुल पर भारी युद्ध हुआ। आखिर 17 दिसंबर की रात आठ बजे युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी गई। 18 दिसंबर सुबह सात बजे से लेकर सांय तीन बजे तक शहीदों के शवों को आसफवाला में एकत्रित करके संयुक्त दाह संस्कार किया गया। इस युद्ध में पाक रेंजरों से छीने 6 पाउंडर गन, गिलगिट जीप, शेरमन टैंक छीन लिए थे।

भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में भारी तबाही हुई। इस युद्ध में भारत के 206 जवानों ने अपने प्राणों की कुर्बानी दी।

दूसरी बार दुस्साहस का चखाया मजा: वसावा राम

फाजिल्का: सीमावर्ती गांव कादरबख्श के रहने वाले बुजुर्ग वसावा राम ने बताया कि 1965 और 1971 के युद्ध में काफी फर्क था। 1971 में भारतीय सेना पाकिस्तान की चालों को समझ चुकी थी और सतर्क थी और हमले का पाकिस्तान को माकूल जवाब दिया। 3 दिसंबर 1971 में पाकिस्तान ने हमला किया तो उससे एक माह पहले ही खुफिया एजेंसियां सेना व सीमावर्ती इलाके के लोगों को सतर्क कर चुकी थीं। हजारों लोगों ने बमबारी से बचने के लिए घरों में भूमिगत मोर्चे बना रखे थे।

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