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Gurmeet Ram Rahim: जेल में बंद डेरा प्रमुख की इस मामले में अपील पर सात साल बाद हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू

Gurmeet Ram Rahim News साध्वियों के साथ यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की अपील पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने करीब सात साल बाद सुनवाई शुरू की है। बता दें डेरे की दो साध्वियों के साथ यौन शोषण मामले में पंचकूला की CBI कोर्ट ने अगस्त 2017 में डेरा प्रमुख को दोषी करार देते हुए 10-10 साल की सजा दी थी।

By Dayanand Sharma Edited By: Monu Kumar Jha Published: Thu, 02 May 2024 12:21 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2024 12:34 PM (IST)
Haryana News: साध्वियों के यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरा प्रमुख की अपील पर कोर्ट में सुनवाई शुरू

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। ( Gurmeet Ram Rahim 19th Letter Hindi News) साध्वियों के यौन शोषण मामले में सजा काट रहे डेरा मुखी गुरमीत सिंह की सजा के खिलाफ अपील पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने सात साल बाद सुनवाई शुरू कर दी है। हाई कोर्ट के जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर व जस्टिस ललित बतरा की खंडपीठ ने सभी पक्षों को बहस के लिए तैयार होने का आदेश देते हुए सुनवाई 25 सितंबर तक स्थगित कर दी।

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साध्वियों के साथ यौन शोषण मामले में CBI ने दी 10 साल की सजा

डेरे की दो साध्वियों के यौन शोषण मामले में पंचकूला की सीबीआई कोर्ट ने अगस्त 2017 में डेरा मुखी को दोषी करार देते हुए 10-10 साल की सजा सुनाई थी। साथ ही 30 लाख 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। पहले मामले में 10 वर्ष की सजा पूरी होने के बाद दूसरे मामले में 10 वर्ष की सजा शुरू होनी है। सजा को डेरा मुखी ने हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।

वहीं, दोनों पीड़ित साध्वियों ने भी तब हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर डेरा मुखी को उम्रकैद की सजा सुनाई जाने की मांग की थी। तब हाईकोर्ट ने इन अपील को एडमिट कर लिया था। अक्टूबर 2017 में हाई कोर्ट ने डेरा मुखी पर लगाए गए जुर्माने पर रोक लगाते हुए दो महीनों के भीतर जुर्माने की यह राशि सीबीआई कोर्ट (CBI Court) में जमा करवाने के आदेश दिए थे।

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गुरमीत सिंह ने कोर्ट में दायर की थी याचिका

साथ ही जमा करवाई जाने वाली जुर्माने की इस राशि को किसी नेशनलाइज बैंक में एफडी करवाने को कहा था। तब हाई कोर्ट ने इन अपील को एडमिट कर लिया था। गुरमीत सिंह ने हाई कोर्ट में अपील दायर कर कहा, सीबीआई अदालत ने उसे बिना उचित साक्ष्यों और गवाहों के दोषी ठहरा सजा सुना दी है, जो कि तय प्रक्रिया के अनुसार गलत है।

1999 में यौन शोषण, 2005 में बयान दर्ज-CBI

पहले इस मामले में एफआइआर ही दो-तीन वर्षों की देरी से दायर हुई। यह एक गुमनाम शिकायत पर दर्ज की गई, जिसमें शिकायतकर्ता का नाम तक नहीं था। पीड़िता के बयान ही इस केस में सीबीआइ ने छह वर्षों के बाद रिकार्ड किए थे। सीबीआई का कहना था कि साल 1999 में यौन शोषण हुआ था, लेकिन बयान वर्ष 2005 में दर्ज किये गए।

जब सीबीआई ने एफआइआर दर्ज की, तब कोई शिकायतकर्ता ही नहीं था। अपनी अपील में डेरा मुखी ने सवाल उठाया कि यह कहना कि पीड़िताओं पर कोई दबाव नहीं था, गलत है। क्योंकि दोनों पीड़िता सीबीआइ के संरक्षण में थी। ऐसे में प्रासिक्यूशन का उन पर दबाव था। 30 जुलाई 2007 तक बिना किसी शिकायत के जांच की जाती रही और पूरी की गई।

उसके पक्ष के साक्ष्य और गवाहों पर सीबीआई अदालत ने गौर ही नहीं किया। यहां तक कि सीबीआइ ने डेरा मुखी के मेडिकल एग्जामिनेशन तक की जरूरत नहीं समझी कि डेरा मुखी के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वह सही भी हो सकते हैं या नहीं।

लिहाजा इन सभी आधारों को लेकर डेरा मुखी ने अपने खिलाफ सुनाई गई सजा को रद कर उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को खारिज किये जाने की हाई कोर्ट से मांग की है। इस केस का पूरा रिकॉर्ड ट्रायल कोर्ट से हाई कोर्ट पहुंच चुका है।

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