Fatehgarh Sahib History: ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व समेटे है पंजाब का जिला 'फतेहगढ़ साहिब', इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान

दिल्ली-अमृतसर नेशनल हाईवे पर दोनों तरफ बसा हुआ फतेहगढ़ साहिब (Fatehgarh Sahib History) का नाम का अर्थ विजय का शहर है। इस शहर का काफी प्राचीन इतिहास रहा है। इस शहर में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों फतेह सिंह और जोरावर सिंह को दीवार में चिनवाया गया था। तो आइए जानते हैं कि ये शहर कितना ऐतिहासिक और महत्व रखता है।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Thu, 28 Dec 2023 03:55 PM (IST) Updated:Thu, 28 Dec 2023 04:00 PM (IST)
Fatehgarh Sahib History: ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व समेटे है पंजाब का जिला 'फतेहगढ़ साहिब', इतिहास जानकर रह जाएंगे हैरान
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व समेटे है पंजाब का जिला 'फतेहगढ़ साहिब'

डिजिटल डेस्क, फतेहगढ़ साहिब। बैसाखी दिवस और 13 अप्रैल 1992 को अस्तित्व में आए ऐतिहासिक जिला फतेहगढ़ साहिब सिख धर्म के लोगों के लिए काफी महत्व रखता है। गुरु गोबिंद सिंह जी के सबसे छोटे पुत्र साहिबजादा फतेह सिंह के नाम पर रखा गया है। यह उत्तर में लुधियाना और रूपनगर (रोपड़), दक्षिण में पटियाला, पूर्व में एसएएस नगर (मोहाली), रूपनगर (रोपड़) और पटियाला और पश्चिम में लुधियाना और संगरूर से घिरा है। इस शहर का ऐतिहासिक महत्व काफी है।

काफी पुराना रहा है शहर का इतिहास

एक अन्य पांडुलिपि के अनुसार, सरहिंद काबुल के ब्राह्मण राजवंश के साम्राज्य की पूर्वी सीमा थी। ग्यारहवीं शताब्दी में, गजनी के महमूद ने भारत पर आक्रमण किया और 1193 ई. में हिंदू राजाओं की पकड़ समाप्त हो गई। तब सुल्तान आराम शाह ने यहां शासन किया। नासिर-उद-दीन कुबाचा ने 1210 ई. में सरहिंद पर विजय प्राप्त की, लेकिन इल्तुतमिश ने इस क्षेत्र को वापस जीत लिया। बलबन के भतीजे शेर खान ने यहां एक किला बनवाया था। 1526 ई. में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोधी की हार के बाद, यह शहर मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया।

दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल सम्राट औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें राजवंश का क्रोध सहना पड़ा। औरंगजेब के साथ युद्ध के बाद किला श्री आनंदगढ़ साहिब को खाली करने के बाद, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी जब उफनती हुई सिरसा नदी को पार कर रहे थे। इसी दौरान माता गुजरी और दो छोटे साहिबजादे अलग हो गए और उनके साथ गुरु साहिब का रसोइया गंगू भी था, जो एक भरोसेमंद सेवक था, जिसने परिवार को धोखा दिया और उन्हें सौंप दिया।

गुरु गोबिंद सिंह के दो बेटों को चिनवाया गया

माता गुजरी जी और दो छोटे साहिबजादों को वजीर खान में भेजा गया, जहां उन्हें धर्म परिवर्तन करवाने के लिए कई यातनाएं दी गईं। जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो माता गुजरी जी और उनके पोते को वजीर खान के ठंडा बुर्ज में कैद कर दिया गया और बाद में उन्हें दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया। जब माता गुजरी जी को इस बात का पता चला तो वह भी यहीं पर गिर पड़ीं। वह ऐतिहासिक दीवार जहां गुरु गोबिंद सिंह के छोटे पुत्रों को ईंटें दी गई थीं, इस गुरुद्वारे में संरक्षित की गई हैं।

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फतेहगढ़ साहिब में ये खास जगह

आम खास बाग

आम खास बाग का निर्माण जनता के लिए किया गया था। जब शाहजहां अपनी बेगम के साथ लाहौर आते-जाते थे, तब वे यहां आराम करते थे। उनके लिए बाग में महलों का निर्माण भी किया गया था। महलों को देख कर लगता है कि उनमें वातानुकूलन का प्रबंध था। इन्‍हें शरद खाना कहा जाता है। वर्तमान में आमखास बाग में पर्यटक परिसर है जिसे मौलासरी कहा जाता है। एक खूबसूरत बगीचा और नर्सरी की व्‍यवस्‍था भी यहां की गई है।

संघोल

यह हड़प्‍पा संस्‍कृति से संबंधित प्राचीन क्षेत्र है जिसकी देखरेख भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग करता है। इस स्‍थान पर पर्यटक परिसर का निर्माण कार्य भी शुरु किया जा रहा है। संघोल लुधियाना-चंडीगढ़ रोड़ पर स्थित है। संघोल संग्रहालय का उद्घाटन 1990 में किया गया था इस संग्रहालय में अनेक महत्‍वपूर्ण प्राचीन अवशेषों को रखा गया है जिनसे पंजाब की सांस्‍कृतिक धरोहरों समेत अनेक प्रकार की जानकारियां मिलती हैं।

उस्‍ताद दी मजार

कहा जाता है कि यह मकबरा मशहूर वास्‍तुकार उस्‍ताद सयैद खान की याद में बनाया गया था। उस्‍ताद का यह मकबरा रौजा शरीफ से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

शागिर्द दी मजार

उस्‍ताद की मजार के कुछ ही दूरी पर एक और खूबसूरत मजार है। यह मजार ख्‍वाजा खान की है जो उस्‍ताद सयैद खान के शागिर्द थे। उन्‍हें भी भवन निर्माण में महारत हासिल थी। इन दोनों मजारों के वास्‍तुशिल्‍प में अंतर है। इस अंतर के अलावा शागिर्द की मजार पर खूबसूरत चित्रकारी भी की गई है जिनमें से कुछ को अभी भी देखा जा सकता है। ये दोनों मकबरे वास्‍तुशिल्‍प की मुस्लिम शैली को दर्शाते हैं। एक तरह से ये दिल्‍ली के हुमायूं के मकबरे की याद दिलाते हैं।

गुरुद्वारा बेर साहिब

फतेहगढ़ साहिब के बहेर गांव में स्थित गुरुद्वारा बहेर साहिब पंजाब के प्रसिद्ध गुरुद्वारों में से एक है। इसका संबंध सिक्‍खों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि अपनी दादु माजरा-भगराना की यात्रा के दौरान गुरु तेग बहादुर यहां रुके थे और इस दौरान अनेक चमत्‍कार किए थे। उन्‍होंने ही इस गांव का नाम बहेर रखा था। बड़ी संख्‍या में सिक्‍ख श्रद्धालु इस गुरुद्वारे की ओर रुख करते हैं।

गुरुद्वारा नौलखा साहिब

गुरुद्वारा नौलखा साहिब सरहिंद से 15 किलोमीटर दूर नौलखा गांव में स्थित है। भक्‍त मानते हैं कि मालवा जाते समय गुरु तेग बहादुर यहां आए थे। कहा जाता है कि एक सिक्‍ख श्रद्धालु लखी शाह बंजारा का सांड खो गया। उसके गुरु तेग बहादुर जी से कहा कि अगर वे उसका सांड ढ़ूंढ देंगे तो वह उन्‍हें नौ रूपये देगा। गुरुजी के सांड ढूंढ निकालने पर लखी शाह ने नौ रूपये गुरुजी को दिए। गुरु ने ये पैसे अपने गरीब अनुयायियों को बांट दिए और कहा कि ये नौ रूपये नौ लाख के बराबर हैं। इस घटना के बाद गांव का नाम नौलखा पड़ गया।

हवेली टोडर मल

जहाज हवेली के नाम से मशहूर हवेली टोडर मल फतेहगढ़ साहिब से केवल एक किलोमीटर दूर है। सरहिंदी ईंटों से बनी यह खूबसूरत हवेली दीवान टोडर मल का निवास स्‍थान था। युवा साहिबजादे के 300वें शहीदी दिवस के सम्‍मान में पंजाब विरासत ट्रस्ट ने इस हवेली की मौलिक शान को बनाए रखने का फैसला किया है।

शहीदी जोड़ मेला

शहीदी जोड़ मेला सरसा नदी के किनारे गुरुद्वारा परिवार विछोड़ा में मनाया जाने वाला वार्षिकोत्‍सव है। यह दिसंबर के चौथे सप्ताह में शुरु होता है और तीनों तक चलता है। यह मेला गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे बच्‍चों को श्रद्धांजली देने के लिए मनाया जाता है जिनका अंतिम संस्‍कार फतेहगढ़ साहिब में किया गया था।

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