ये हैं राजनीति और नौकरशाही के अंदर की खबरें... कहीं मिट रही दूरियां तो कहीं कॉफी पर बवाल

पंजाब में नेताओं और ब्यूरोक्रेसी के अंदर की कुछ खबरें। यह खबरें मीडिया में सुर्खियां तो नहीं बन पाती लेकिन इनके दूरगामी परिणाम होते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 03 Feb 2020 02:37 PM (IST) Updated:Tue, 04 Feb 2020 10:01 AM (IST)
ये हैं राजनीति और नौकरशाही के अंदर की खबरें... कहीं मिट रही दूरियां तो कहीं कॉफी पर बवाल
ये हैं राजनीति और नौकरशाही के अंदर की खबरें... कहीं मिट रही दूरियां तो कहीं कॉफी पर बवाल

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब कांग्रेस में इन दिनों वह सब कुछ हो रहा है जो पिछले एक दशक में कभी देखने को नहीं मिला था। पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य प्रताप सिंह बाजवा के घर जाते हैं और उनकी सास के निधन पर अफसोस प्रकट करते हैं। चंडीगढ़ में लोकसभा व राज्यसभा सदस्यों के साथ मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बैठक में प्रताप सिंह बाजवा बार-बार यह कहते हैं कि पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ के सवाल का जवाब दिया जाए। बैठक के दौरान ऐसा सात से आठ बार हुआ जब बाजवा ने यह बात कही। राजनीतिक रूप से सुनील जाखड़ और सुखजिंदर सिंह रंधावा तो एक साथ हैं, लेकिन प्रताप सिंह बाजवा से इनकी दूरियां जगजाहिर हैं। अब यह राजनीति की नई करवट है या समय की नजाकत। जो भी हो, आजकल इसकी खूब चर्चा है।

निमंत्रण देने में भी खतरा

2012 बैच की पीसीएस अफसर को कॉफी पर बुलाना आइएएस अफसर को काफी महंगा पड़ा है। उनका विभाग बदल दिया गया है। यह तबादला इतना गुपचुप ढंग से किया गया कि पर्सोनल विभाग ने इसके आदेश तक जारी नहीं किए। अपनी महिला सहयोगी को कॉफी के लिए निमंत्रण देने से अफसरों ने हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं। क्या कॉफी के लिए निमंत्रण देना यौन प्रताड़ना के अधीन आता है? इस पर बहस छिड़ गई है।

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सभी अफसर मजे लेकर एक-दूसरे से यह पूछ रहे हैं। कॉफी के लिए पूछना यौन प्रताड़ना नहीं है, पर यह पूछा किस तरह जा रहा है वह यौन प्रताड़ना है। चूंकि यहां पूछा एक आइएएस अफसर ने था, इसलिए सारी लॉबी उसे बचाने में भी लग गई। खुड्डे लाइन पोस्टिंग पर लगे आइएएस को बदलकर एक अहम महकमे में लगा दिया गया है जहां सबसे ज्यादा यौन प्रताड़ना की शिकायतें आती हैं।

फिसलती जुबान या जानकारी ही नहीं

नेताओं की जुबान अक्सर फिसलती रहती है। अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल के साथ तो यह अक्सर होता है। कभी वह प्रकाश सिंह बादल को अपने पिता समान बता देते हैं तो कभी कुछ और...। पिछले दिनों उन्होंने हद ही कर दी। सीएए पर वह सर्व सांझीवालता में विश्वास की बात कर रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने वाल्मीकि जी का रामतीर्थ मंदिर बनवाने सहित कुरालगढ़ में रविदास जी का मंदिर बनवाया।

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उन्होंने कहा कि सिख गुरु चाहते तो दरबार साहिब की नींव किसी अमृतधारी सिंह से रखवा लेते, लेकिन उन्होंने साईं मियां मीर से रखवाई। सुखबीर इस बात पर टपला खा गए कि अमृतपान की शुरूआत दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी से हुई थी और साईं मियां मीर से नींव पांचवें गुरु गुरु अजरुन देव ने रखवाई थी। सुखबीर जी ध्यान से, आप सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाले शिरोमणि अकाली दल के प्रधान हो...?

सवाल खर्चे पानी का

सरकार अपनी हो तो नेताओं को अपनी जेब से खर्च करने की क्या जरूरत होती है? पार्टियों को यह समझ में आ गया है कि अपनी जेब के बजाय खजाने से पैसा निकालकर वोटों का कैसे जुगाड़ किया जा सकता है? बड़ी-बड़ी घोषणाओं को छोड़िए आजकल पार्टियों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद मीडिया कर्मियों को खिलाए जाने वाले खाने का बिल भी सरकारी खजाने से अदा किया जा रहा है। ऐसा करना आसान है। बस, एक मंत्री को साथ में बिठा दीजिए। यूथ कांग्रेस के प्रधान बरिंदर ढिल्लों ने पिछले दिनों नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की। उनके साथ ग्रामीण विकास मंत्री तृप्त बाजवा भी थे। वह पूरी कांफ्रेंस के दौरान चुप ही रहे। अब आप पूछोगे कि फिर उन्हें बुलाया क्यों गया? उनके आने भर से खर्चे पानी का बिल सरकार ने अदा कर दिया। नहीं तो यह अपनी जेब से भरना पड़ता।

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