अपराधी का धर्म नहीं, तो एफआइआर में धर्म-जाति क्यों

एफआइआर में धर्म-जाति के उल्लेख से संबंधित एक याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Mon, 17 Apr 2017 08:01 PM (IST) Updated:Mon, 17 Apr 2017 08:01 PM (IST)
अपराधी का धर्म नहीं, तो एफआइआर में धर्म-जाति क्यों
अपराधी का धर्म नहीं, तो एफआइआर में धर्म-जाति क्यों

जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एफआइआर में धर्म-जाति के उल्लेख से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ को नोटिस जारी करते हुए 25 मई तक जवाब मांगा है। इस मामले में हाईकोर्ट के वकील एचसी अरोड़ा ने याचिका दायर कर हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ को अपने जांच अधिकारियों यह निर्देश देने की मांग कि वो एफआइआर दर्ज करते समय उसमें जाति या धर्म का उल्लेख न करें।

याचिका में एफआइआर में यह कॉलम खत्म करने की मांग की गई है। बहस के दौरान अरोड़ा ने कहा कि हमारा संविधान जातिवाद मुक्त व सभी धर्मों को बराबर का दर्जा देने वाला है, फिर एफआइआर में अपराधी और पीडि़त की जाति क्यों दर्ज की जाती है।

याचिका दाखिल करते हुए अरोड़ा ने कहा कि हमारे संविधान में जातिवाद  विहीन समाज का ध्येय रखा गया है। धर्म निरपेक्ष राज्य की धारणा है। जब भी कोई अपराध होता है और उसके लिए एफआइआर दर्ज की जाती है, तो पीडि़त और आरोपी की जाति दर्ज की जाती है।

याचिका में कहा गया कि पंजाब पुलिस रूल्स-1934 के नियमों में एफआइआर दर्ज करते समय आरोपी और पीडि़त की जाति लिखे जाने का प्रावधान है। यह सीधे तौर पर मानवीयता के विरुद्घ है, क्योंकि अपराधी का कोई धर्म नहीं होता और न ही उसकी कोई जाति होती है। वह केवल अपराधी होता है। आरोपी व शिकायतकर्ता की पहचान जाति या धर्म की जगह अलग माध्यमों व तरीके से भी दर्ज की जा सकती है, जैसे आधार कार्ड, पिता के साथ दादा का नाम, गली, वार्ड आदि।

इस प्रकार जाति धर्म को अंकित करना गुरुबाणी के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। गुरुबाणी के शब्द मानस की जात सबे एको पहचान, यह सब याची की दलीलों के समर्थन में है। याची ने इस जनहित याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट  से अपील की कि संविधान के मूल ध्येय व पर्याय की रक्षा के लिए एफआइआर में जाति व धर्म को अंकित करने पर रोक लगाई जाए।

शिमला हाईकोर्ट दे चुका है पहले ही ऐसा आदेश

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि पिछले साल सितंबर में शिमला हाईकोर्ट ने भी पुलिस रूल्स के तहत विभिन्न फार्म में से जाति के कॉलम को खत्म करने के निर्देश दिए थे।  लिहाजा अरोड़ा ने हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में मांग की है कि, हाईकोर्ट पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़  को भी एफआइआर में आरोपी व पीडि़त की जाति न लिखे जाने के निर्देश दें।

जेल के रिकॉर्ड में भी जाति व धर्म

याचिका में नेशनल क्राइम ब्यूरो के प्रिजन स्टेटिटिक्स-2000 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है की जेलों में 68.9 प्रतिशत हिंदू, 17.7 फीसद मुस्लिम और बाकी कैदी अन्य धर्मों को मानने वाले हैं। 30 फीसद ओबीसी, 35 फीसद सामान्य और 21.9 फीसद कैदी अनुसूचित जाति वर्ग के हैं। याचिकाकर्ता ने कहा यह आंकड़े भी जातिवादी भावना के  चलते ही तैयार किए गए हैं।

कोर्ट का सवाल, आप नाम के पीछे जाति क्यों लगाते हो

सुनवाई के दौरान दिलचस्प बात यह हुई कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता एच सी अरोड़ा से ही पूछ लिया कि, अगर आप जाति प्रथा के खिलाफ हैं, तो आप क्यों अपने नाम के पीछे अपनी जाति क्यों लिखते हैं। इस पर अरोड़ा ने कहा की वो हाईकोर्ट के इस सुझाव पर गंभीरता से गौर करेंगे।

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