गिल ने भरोसे व आत्मविश्वास से जीती थी आतंकवाद के खिलाफ जंग

केपीएस गिल को उनके साथ काम करने वाले पंजाब के पुलिस अधिकारी कभी भुला नहीं पाएंगे। इन अफसरों में पंजाब के वर्तमान डीजीपी सुरेश अरोड़ा भी शामिल हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sat, 27 May 2017 10:47 AM (IST) Updated:Sat, 27 May 2017 10:47 AM (IST)
गिल ने भरोसे व आत्मविश्वास से जीती थी आतंकवाद के खिलाफ जंग
गिल ने भरोसे व आत्मविश्वास से जीती थी आतंकवाद के खिलाफ जंग

चंडीगढ़, [मनोज त्रिपाठी]। पंजाब के पूर्व डीजीपी सुपरकॉप केपीएस गिल नहीं रहे, लेकिन उनके साथ काम करने वाले पुलिस अफसरों के दिलों में वह हमेशा जीवित रहेंगे। वह आत्मविश्वास से भरे टीम लीडर और बड़ी सोच रखने वाले विभाग प्रमुख थे। उनक साथ काम करने अफसरों का कहना है कि केपीएस ने आत्‍मविश्‍वास और भरोसे के बल पर आतंकवाद से जंग जीती।

अच्छे काम करने वाले अफसरों को खुला समर्थन और युवा टीम में आत्मविश्वास भरने वाली शख्शियत के रूप में पहचान रखने वाले  केपीएस गिल के निधन पर पंजाब सहित देश भर के पुलिस अफसरों में शोक है। उनके साथ काम करने वाले अफसरों की नजरों में गिल जैसा पुलिस अफसर और टीम लीडर आज तक पुलिस फोर्स को नहीं मिला।

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डीजीपी सुरेश अरोड़ा बताते हैं कि गिल हमेशा सोचते रहते थे कि पुलिस को कब और किस प्रकार की जरूरतें हैं। बदलते समय व परिवेश में पुलिस में कैसा बदलाव चाहिए। अरोड़ा कहते हैं दो सप्ताह पहले उनकी जब गिल से मुलाकात हुई तो अंतिम समय में भी उन्होंने इस मुद्दे पर ही बातचीत की देश को अब किस प्रकार की कैसी पुलिस चाहिए। कैसी तकनीक व क्या सुधार होने चाहिए। ऐसी सोच रखने वाला पुलिस अफसर शायद ही दोबारा देश को मिल सके।

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अरोड़ा बताते हैं, होशियारपुर में आतंककियों ने 26 लोगों को हत्या कर दी और 40 को गोली मारकर घायल कर दिया। मैं उस समय वहां एसएसपी था, गिल आए और सारे घटनाक्रम की जानकारी ली। घायलों के इलाज की व्यवस्था करवा कर काउंटर अटैक करने की योजना पर काम शुरू कर दिया। उनका अपनी टीम पर विश्वास और टीम का मनोबल बढ़ाकर खुद फील्ड में काम करना टीम का मनोबल बढ़ाता रहा।

अरोड़ा की गिल के साथ पहली मुलाकात जब हुई थी उस समय गिल आइजी और अरोड़ा एएसपी होते थे। पंजाब व पंजाब पुलिस कभी भी काले दौर के आतंकवाद से लड़ने के लिए तैयार नहीं थी। गिल ने दो एजेंडे तैयार किए कि धार्मिक भावनाओं की कद्र करने के साथ पुलिस को आतंकवाद से लडऩे दोनों एजेंडे पर एक साथ काम किया। धार्मिक स्थलों के संचालकों व हस्तियों तथा पंजाबियों को आतंकवाद से लडऩे के लिए प्रेरित किया।

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अरोड़ा के अनुसार, उस समय बड़ी-बड़ी वारदातें हो रहीं थीं, लेकिन गिल हमेशा शांत रहते थे और प्लानिंग के साथ काउंटर अटैक पर काम करते थे। कुछ ही समय में आतंकवादियों को यह एहसास हो गया था पुलिस अब उनसे लड़ने को तैयार हो चुकी है। इस बीच, गिल ने पंजाब पुलिस की स्कैनिंग करके तकनीक, असलहों तथा बुलेट प्रूफ गाडिय़ों से लैस किया। उसके बाद आतंकवाद के खिलाफ उन्होंने जंग का ऐलान किया, नतीजा निकला कि पंजाब में आमन व शांति बहाल हो सकी।

एडीजीपी इंटेलिजेंस दिनकर गुप्ता ने बताया कि गिल एक-एक गांव की गलियों में खुद टीम के साथ जाते थे। आतंकवाद के सफाए में गिल का यह प्रयोग काफी सफल रहा। आतंकवादियों को भी खौफ लगने लगा था कि न जाने कब कहां रात को उनकी भिड़ंत पुलिस प्रमुख से हो जाए।

1991 में हुए पंजाब में चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा उम्मीदवारों की हत्याएं आतंकियों ने कर दी थीं। उसके बाद पंजाब में दोबारा चुनाव करवाने की बात सोच पाना भी असंभव लग रहा था, लेकिन 1992 में चुनाव हुए और पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने गिल को आतंकवाद के सफाए की कमान सौंपी।

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पुलिस को दिलवाईं असीमित पावर

गिल ने पुलिस विभाग को असीमित पावर दिलवाईं। इसके बाद उनका इस्तेमाल किया। काले दौर में ही पुलिस को मिली असीमित पावर के चलते आए उसी दौर से आइपीएस व एइएएस लाबी में भी एक शीतयुद्ध चल रहा है पावर को लेकर जो आज तक जारी है, लेकिन पुलिस अभी तक इस पावर गेम में आगे चल रही है।
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रिटायर होने के बाद भी नहीं छोड़ा पंजाब पुलिस का साथ

गिल ने पंजाब पुलिस से रिटायर होने के बाद भी पंजाब पुलिस का साथ नहीं छोड़ा था। उन्होंने आतंकवाद के दौर में आतंकियों से लड़ाई के दौरान तमाम पुलिस अफसरों पर हुए केसों को लेकर उनकी पूरी मदद की। अंतिम समय तक उन्होंने पंजाब पुलिस का साथ नहीं छोड़ा।

पुलिस विभाग में तैनात ऐसे तमाम अधिकारी हैं जिनके ऊपर उस समय से केस चल रहे हैं। इन अफसरों का कहना है कि गिल ने हमेशा उनकी हर तरह से मदद की। वह मरते दम तक वह पंजाब पुलिस के इन अफसरों के साथ रहे। राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक में उन्होंने पुलिस सही पुलिस अफसरों की पैरवी की।

 

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