पंजाब में पैर जमाने के लिए बसपा को बदलनी होगी छवि और रणनीति, पार्टी को नए समीकरण की तलाश

Punjab Politics पंजाब में बहुजन समाज पार्टी काे दोबारा अपने हाथी के पैर जमाने के लिए छवि बदलनी होगी। इसके साथ ही पार्टी को अपनी रणनीति भी बदलनी होगी। बसपा पंजाब में 2022 में होनेवाले‍ विधानसभा चुनाव के लिए नए सियासी समीकरण की कोशिश में है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Thu, 10 Jun 2021 06:47 PM (IST) Updated:Thu, 10 Jun 2021 06:47 PM (IST)
पंजाब में पैर जमाने के लिए बसपा को बदलनी होगी छवि और रणनीति, पार्टी को नए समीकरण की तलाश
बसपा प्रमुख मायावती और पार्टी के सैंबल की फाइल फोटो।

चंडीगढ़, जेएनएन। PunJab Politics: पंजाब में राजनी‍तिक पार्टियां दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए तमाम जुगत लगा रही है। ये दल पंजाब में दलित मुख्यमंत्री या दलित उप मुख्यमंत्री का कार्ड खेल रहे हैं। भाजपा दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात कर रही है तो शिरोमणि अकाली दल ने उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है। सत्तारूढ़ कांग्रेस में दलितों को अधिक पावर देने की मांग बढ़ने लगी है। दलितों को लेकर बदलते समीकरण के बीच बहुजन समाज पार्टी भी नई संभावनाएं तलाश रही है। पूरे परिदृश्‍य में बसपा को अपने हाथी का पैर पंजाब में जमाने के लिए छ‍वि और रणनीति बदलनी होगी।

अक्सर पंजाब में अपने दम पर सरकार बनाने का दावा करने वाली बसपा 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गठबंधन के नए समीकरणों की संभावनाएं तलाश रही है। हालांकि बसपा के लिए पंजाब में पुन: अपने पांव जमाने की राह आसान नहीं है। राज्य में बसपा की छवि वोट कटुआ की बनकर रह गई है। इसे उसे बदलना उसके लिए बड़ी चुनौती है। बसपा सुप्रीमो और उत्‍तर प्रदेश की पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती का पंजाब पर खास ध्‍यान रहा है।

तीन दशक पहले 1992 में बहुजन समाज पार्टी ने नौ विधानसभा सीटें जीतकर पंजाब की राजनीति में अपनी दमदार शुरूआत की थी। यह वह दौर था जब बसपा ने पंजाब में दलित राजनीति में पांव जमाने शुरू किए थे लेकिन बसपा अपनी यह परफार्मेंस बरकरार नहीं रख पाई। पांच साल बाद ही बसपा का ग्राफ गिर गया और नौ से एक सीट पर सिमट कर रह गई। 1997 में बसपा अंतिम बार पंजाब विधान सभा की किसी सीट पर जीत दर्ज करवा पाई थी। इसके बाद से बसपा का ग्राफ धीरे-धीरे गिरता ही रहा और बसपा कि छवि अपने सिद्धांतों के साथ समझौता करने वाली पार्टी के रूप में बन गई।

2019 में हुए लोक सभा चुनाव में बसपा ने एक बार फिर पंजाब में अपनी अपनी उपस्थिति का अहसास करवाया। बसपा ने 3.49 फीसदी वोट लेकर सबको चौंका दिया। 2022 के विधान सभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की नजरें बसपा पर टिकी हुई हैं। 2017 की तरह ही 2022 के विधानसभा चुनाव में भी दलित मतदाता एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। इस वजह से दलितों की भूमिका को देखते हुए राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने स्तर पर दलितों को लुभाने की कसरत शुरू कर दी है।

ऐसे में हाथी की चाल पर बहुत कुछ निर्भर हो सकता है कि चुनाव का रुख किस तरफ जाएगा। हालांकि पिछले दो चुनावों के परिणामों को देखे तो बसपा पंजाब में कोई खास चुनावी प्रदर्शन नहीं कर पाई। इन दोनों ही चुनावों में बसपा का वोट शेयर 1.5 से अधिक नहीं जा पाया। 2012 के चुनाव में बसपा ने 4.29 फीसदी वोट शेयर लेकर कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया था।

एक बार फिर राजनीतिक पार्टियों की नजर बसपा पर टिकी हुई है। बसपा के प्रदेश प्रधान जसबीर सिंह गढ़ी का कहना है, यह उनकी पार्टी की उपलब्धि है कि आज सारी पार्टियां दलितों की बात कर रही है। समाज में दलितों के के प्रति एक जागरूकता आई है। 2022 को लेकर जल्द ही आपको सकारात्मक चीजें दिखाई देंगी।

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