38 प्रतिशत लोग हुए मोबाइल एडिक्ट, बच्चे ज्यादा प्रभावित, जान लें इसके खतरे Chandigarh news

सिटी के 38 प्रतिशत लोग मोबाइल डिएडिक्शन के शिकार हैं। उन्हें हर एक से दो मिनट के भीतर मोबाइल को चेक करना है। इसे चेक करने के दौरान वह अपने दिमाग को चलाना भूल गए हैं।

By Vipin KumarEdited By: Publish:Mon, 17 Jun 2019 03:49 PM (IST) Updated:Mon, 17 Jun 2019 08:26 PM (IST)
38 प्रतिशत लोग हुए मोबाइल एडिक्ट, बच्चे ज्यादा प्रभावित, जान लें इसके खतरे  Chandigarh news
38 प्रतिशत लोग हुए मोबाइल एडिक्ट, बच्चे ज्यादा प्रभावित, जान लें इसके खतरे Chandigarh news

चंडीगढ़, जेएनएन। सिटी ब्‍यूटीफुल के 38 प्रतिशत लोग मोबाइल डि एडिक्शन के शिकार हैं। उन्हें हर एक से दो मिनट के भीतर मोबाइल को चेक करना है। इसे चेक करने के दौरान वह अपने दिमाग को चलाना भूल गए हैं। जिसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है लोग डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। उन्हें एक के बाद एक कई प्रकार की बीमारियों लग रही हैं। यह शब्द सेकेंड इंनिंग एसोसिएशन की तरफ से आयोजित मोबाइल डिएडिक्शन कार्यक्रम के दौरान केशव गर्ग ने कहे। लीकार्बूजिए सेंटर सेक्टर-19 में आयोजित कार्यक्रम में एसोसिएशन के विभिन्न सदस्य मौजूद रहे।

इस मौके पर केशव गर्ग ने कहा कि मोबाइल को हम नहीं चला रहे हैं, बल्कि मोबाइल हमें चला रहा है। हमारे लिए मोबाइल इतना बुरा नहीं है, जितना ही उसमें चलने वाले एप और गेम्स खतरनाक हैं। स्मार्ट फोन पर आने वाली हर नोटिफिकेशन हमारे ध्यान को भंग कर रहे हैं। केशव ने कहा कि यदि 38 प्रतिशत लोगों की बात करें तो उसमें 60 प्रतिशत लोग ऐसे है जो कि किशोर है। मोबाइल का शिकार होने के कारण न तो वह पढ़ाई कर पा रहे है और न ही करियर के बारे में सोच पा रहे है। बच्चे अपना दिमाग चलाने के बजाए हर काम में मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे है।

550 में से 415 मोबाइल टावर है गैर कानूनी

वहीं इस मौके पर आरटीआइ एक्टिविस्ट आरके गर्ग ने बताया कि सिटी में 550 मोबाइल टावर हैं। जिसमें से 415 टॉवर गैर कानूनी हैं। उन्हें लगाने की मान्यता कभी मिली ही नहीं है। उसके बाद भी वह सिटी में धड़ल्ले से चल रहे हैं। इस पर नगर निगम की बैठक में कई बार मुद्दा उठाने की कोशिश की गई, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि मोबाइल की लत लगने का एक कारण प्रशासन का ढीला रवैया है। यदि प्रशासन लगाम लगाए तो इस प्रकार की परेशानी से बचा जा रहा है।

दिमाग पर डालता है बुरा प्रभाव

इस मौके पर मौजूद न्यूरोटिस्ट विनोद मेहता ने बताया कि न्यूरो के सैकड़ों मरीज मेरे पास आते है, लेकिन मोबाइल की लत वाले मरीजों की संख्या पर हम कंट्रोल कर सकते है। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से हमारे सुनने की क्षमता कमजोर हो सकती है। हमें स्लीप डिसऑर्डर, मेंटल डिसऑर्डर, सेक्सुअल प्रॉब्लम बड़ी तेजी से लग रही है। इन सभी पर कंट्रोल करने के लिए जरूरी है कि हम मोबाइल के अधीन नहीं हो बल्कि उसे खुद के कंट्रोल में रखे और जरूरत के अनुसार ही उसका इस्तेमाल करे।

मोबाइल में बिना जेल और जंजीर के हो रहे हैं कैद

पंजाब यूनिवर्सिटी के एनवायरनमेंट सोशोलॉजी के प्रोफेसर विनोद चौधरी ने बताया कि हमारे स्मार्ट फोन पर आने वाली नोटिफकेशन के कारण हम मोबाइल पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इसलिए मोबाइल फोन पर किसी प्रकार का अलर्ट न रखें। जब जरूरत हो तो वह इंटरनेट से खुद उसे खोजें। उन्होंने कहा कि मोबाइल फोन बिना जेल और जंजीर की कैद है। हम बिना किसी कारण से मोबाइल को देखने के लिए मजबूर है। यह चाहे हमारी जरूरत के कारण हुआ हो, ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के चक्कर में हुआ हो या फिर टाइम पास करने के लिए हुआ हो। नुक्सान हमें निजी तौर पर हो रहा है।

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