शहीदों के परिवारों को पंडाल से बाहर खड़े रखा

जलियांवाला बाग में पॉलिटिकल ड्रामा शहीदों के परिवारों का गुस्सा फूटाजलियांवाला बाग में पॉलिटिकल ड्रामा शहीदों के परिवारों का गुस्सा फूटाजलियांवाला बाग में पॉलिटिकल ड्रामा शहीदों के परिवारों का गुस्सा फूटाजलियांवाला बाग में पॉलिटिकल ड्रामा शहीदों के परिवारों का गुस्सा फूटाजलियांवाला बाग में पॉलिटिकल ड्रामा शहीदों के परिवारों का गुस्सा फूटा

By JagranEdited By: Publish:Sun, 14 Apr 2019 12:36 AM (IST) Updated:Sun, 14 Apr 2019 06:19 AM (IST)
शहीदों के परिवारों को पंडाल से बाहर खड़े रखा
शहीदों के परिवारों को पंडाल से बाहर खड़े रखा

नितिन धीमान, अमृतसर

'शहीदों की चिताओं पर मेले तो लगे, पर शहीदों के परिवार यहां रह गए अकेले।' जी हां, शहीद स्थली जलियांवाला बाग नरसंहार के शताब्दी समारोह में पहुंचे शहीदों के परिवारों को समारोह स्थल के भीतर जाने की आज्ञा नहीं दी गई। ये परिवार अपने शहीद बुजुर्गों अथवा पूर्वजों की फोटो लेकर समारोह में शामिल होने आए थे, लेकिन कड़ी सुरक्षा की वजह से इन्हें पंडाल में जाने नहीं दिया गया। गुस्साए परिजनों ने आयोजन स्थल के बाहर खड़े होकर वंदेमातरम् और भारत माता की जय के नारे लगाए।

दरअसल, शनिवार दोपहर तकरीबन सवा तीन बजे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पंजाब के राज्यपाल बीपी बदनौर सहित अन्य नेता पंडाल में पहुंचे। इन नेताओं के आगमन से पूर्व ही शहीदों के परिवार भी यहां आ चुके थे। पंडाल के दूसरे हिस्से में लोगों के बैठने के लिए बिछाए गए गद्दे पूरी तरह भर चुके थे। इसी बीच दिल्ली से आए मनीष खन्ना वीवीआइपी पंडाल में जाने लगे, पर सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें रोक दिया। मनीष खन्ना ने बताया कि उनके दादा रामजस मल्ल जलियांवाला बाग नरसंहार में गोलियों का शिकार बने थे, लेकिन सुरक्षा कर्मचारियों ने साफ किया कि उपराष्ट्रपति के पंडाल में केवल वही व्यक्ति जा सकता है जिसका नाम उनकी सूची में है। यह सूची सरकार द्वारा ही तय की गई है। इस पर मनीष खन्ना ने अपना विरोध दर्ज करवाया। उन्होंने 'वंदेमातरम्' और 'भारत माता की जय' के जयघोष लगाए।

यह शहीदों का सम्मान नहीं, राजनीति से प्रेरित ड्रामा है

यह शहीदों का सम्मान नहीं राजनीति से प्रेरित ड्रामा है। मैं दिल्ली से अमृतसर आया हूं। घर जाकर अपने बच्चों को क्या जवाब दूंगा कि मुझे आयोजन स्थल तक जाने ही नहीं दिया गया। कैसे अपने बच्चों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाऊंगा। यह वह धरती है जहां अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिगारी फूटी। इस धरती में राष्ट्रभक्ति का भाव उत्पन्न होता है। दुखद कि सरकारें हमारा गला घोंटना चाहती हैं। ये नेता राष्ट्रभक्ति की बातें करते हैं, पर शहीदों के परिवारों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखतीं।

-मनीष खन्ना, गोलीकांड में घायल हुए रामजस मल्ल के पौत्र

हम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे, आज अपनों के : टेकचंद

राजनीतिज्ञों को अंदर जाने दिया जा रहा है और शहीदों के परिवारों को इधर से उधर भगाया जा रहा है। पुलिस के पास जाते हैं तो वे एसडीएम से बात करने को कहती है। एसडीएम के पास जाते हैं तो वो पुलिस के पास भेज देते हैं। आज जलियांवाला बाग में हमारा जो तिरस्कार हुआ, उससे साफ है कि ताकत वालों की मर्जी चलती है। कमजोरों को अपमान का घूंट पीना पड़ता है। प्रशासन वीआइपी ड्यूटी बजा रहा है और सरकार राजनीतिक ड्रामा रच रही है। हम पहले अंग्रेजों के गुलाम थे और आज अपनों के।

-टेकचंद, नरसंहार में शहीद हुए खुशीराम के पौत्र

हमने समारोह के बाद दी अपनों को श्रद्धांजलि : बहल

हम इस समारोह का बायकाट करते हैं। जलियांवाला बाग हमारे पूर्वजों के खून से सिचित है। इसका कण-कण बलिदान की गाथा का वर्णन करता है। हमने उपराष्ट्रपति के जाने के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि दी क्योंकि चारों तरफ सुरक्षा कर्मचारी थे। शहीदों के परिवारों के लिए न कुर्सियां हैं और न ही पानी की व्यवस्था। हम सुबह से जलियांवाला बाग में अपने बुजुर्गों को नमन करने आए हैं।

-ननिश बहल, नरसंहार में शहीद हुए रहिराम बहल के पौत्र मेरे परदादा का दो दिन बाद मिला था शव

मेरे परदादा ताराचंद कपूर को जलियांवाला बाग में गोलियां लगी थीं। उनका पार्थिव शव दो दिन बाद शहीदी कुएं के पीछे मिला था। आज इस उम्मीद से जलियांवाला बाग आए कि सरकार शताब्दी समारोह मना रही है और हमारी बात भी सुनेगी, पर हमारा यह अनुमान गलत निकला। 13 अप्रैल 1919 को हुई इस घटना के बाद सरकार ने मेरी परदादी बीबी जागीर कौर को प्लॉट देने की बात कही थी, पर दादी ने यह कहकर इंकार कर दिया था कि हम खून नहीं बेचते। मेरे पति ने हंसते-हंसते प्राणों की आहूति दी है। देश की आजादी के लिए वो मर मिटे। मेरे लिए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या हो सकता है।

-नरिदर कपूर, शहीद हुए ताराचंद के पड़पौते फूट-फूट कर रोई रचना, चिल्लाती रही-साहब मेरी बात सुन लें

स्वतंत्रता सेनानी चुन्नीलाल झंडेवाला की बेटी रचना भी जलियांवाला बाग पहुंची थीं। जैसे ही आयोजन खत्म हुआ, रचना ने जोर से चिल्लाकर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को रुकने को कहा। रचना ने कहा-साहब एक बार मेरी बात सुन लीजिए। हालांकि सुरक्षा कर्मचारी बड़ी तेजी से उपराष्ट्रपति को आयोजन स्थल से बाहर ले जा चुके थे। अमृतसर के छेहरटा में रहने वाली रचना फूट-फूट कर रोने लगी। उसने बताया कि पिताजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। एक साल जेल भी काटी। इसके बाद वे भयानक रूप से बीमार पड़ गए। दस साल तक उनका इलाज चला और अंतत: उन्होंने दम तोड़ दिया। पिताजी की मृत्यु के पश्चात हमारा परिवार मुफलिसी में जिदगी जीता रहा। मैं उपराष्ट्रपति से यह मांग करना चाहती थी कि उसे या उसके पारिवारिक सदस्य को नौकरी पर लगवा दें, पर मेरी सुनी नहीं गई। इसी बीच पूर्व स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी ने रचना के पास आकर उसकी बात सुनी। आश्वासन दिया कि वह परिवार के लिए कुछ जरूर करेंगे।

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