सबरीमाला मंदिर विवाद मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर 22 को सुनवाई होने की उम्मीद कम

मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधानपीठ की एक न्यायाधीश इंदू मलहोत्रा बीमारी के कारण फिलहाल छुट्टी पर हैं।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Tue, 15 Jan 2019 11:15 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jan 2019 11:15 AM (IST)
सबरीमाला मंदिर विवाद मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर 22 को सुनवाई होने की उम्मीद कम
सबरीमाला मंदिर विवाद मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर 22 को सुनवाई होने की उम्मीद कम

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केरल के सबरीमाला मंदिर में हर आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देने वाले फैसले को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिकाओं पर 22 जनवरी को सुनवाई होने की उम्मीद कम ही है क्योंकि मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधानपीठ की एक न्यायाधीश इंदू मलहोत्रा बीमारी के कारण फिलहाल छुट्टी पर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लंबित पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पहले से ही 22 जनवरी की तिथि तय कर रखी है।

संविधान पीठ की एक न्यायाधीश इंदू मल्होत्रा बीमारी के कारण छुट्टी पर हैं

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह बात तब बताई जब एक वकील ने सबरीमाला मामले में लंबित पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई का सजीव प्रसारण किये जाने की मांग के बारे में कोर्ट में मेंशनिंग की। जस्टिस गोगोई ने कहा कि मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में शामिल जस्टिस इंदू मल्होत्रा स्वास्थ्य कारणों से छुट्टी पर हैं हो सकता है कि 22 जनवरी को मामले की सुनवाई न हो सके। पुनर्विचार याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नारिमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पीठ को सुनवाई करनी है।

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला

पिछले आदेश में कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं को खुली अदालत में 22 जनवरी को लगाने का आदेश दिया था। हालांकि कोर्ट ने सभी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत देने वाले गत 28 सितंबर के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था। फैसले पर रोक न लगने से फिलहाल सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत है।

केरल का सबरीमाला मंदिर अयप्पा भगवान का है। इनके अनुयायियों का कहना है कि यहां विराजमान अयप्पा भगवान ब्रम्हचारी हैं और इसलिए 10 से 50 वर्ष की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं। माना जाता है कि इस आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी उनके मासिक धर्म के कारण है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 28 सितंबर को बहुमत से फैसला सुनाते हुए मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव करार दिया था। जिसका अयप्पा अनुयायी भारी विरोध कर रहे हैं।

मूल फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य जस्टिस दीपक मिश्रा अब सेवानिवृत हो चुके हैं इसलिए अब उनकी जगह नये मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ की अगुवाई कर रहे हैं। 28 सितंबर को संविधानपीठ ने चार- एक के बहुमत से दिये फैसले में रोक के नियम को महिलाओं के साथ भेदभाव और उनके सम्मान व पूजा अर्चना के मौलिक अधिकार का हनन करने वाला कहा था। जबकि पीठ की पांचवी सदस्य न्यायाधीश इंदू मल्होत्रा ने बहुमत से असहमति जताते हुए रोक के नियम को सही ठहराया था।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद केरल राज्य में खूब हंगामा हो रहा है। भाजपा और अन्य विपक्षी पार्टियां मिलकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में नहीं हैं। जबकि केरल की पिनरई विजयन सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करवाने की बात कह रही है। इसी बीच हाल ही में दो रजस्वला महिलाओं ने अलबुसह मंदिर में प्रवेश कर पूजा करने का दावा किया। इनका मंदिर में प्रवेश करते हुए वीडियो भी वायरल हुआ। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले पर पुनर्विचार याचिका दायर की गई है। 

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