Exclusive Interview: राजनीतिक दृष्टिकोण से लिए गए फैसले राज्यों से टकराव की वजह: कपिल सिब्बल
संघीय दायरे का सवाल इसलिए उठ रहा कि दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार की नौकरशाही खासकर गृह मंत्रालय सभी राज्यों के बारे में एक यूनिफार्म गाइडलाइन भेजने का फैसला कर रही है।
कोरोना वैश्विक महामारी से मुकाबले के लिए देश में एकजुटता रही है, वहीं हाल के दिनों में केंद्र और राज्यों के बीच संघीय ढांचे को लेकर भी खींचतान सामने आ रही है। इन्हीं मुद्दों पर पूर्व केंद्रीय मंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत की। पेश है इसके अंश:
लॉकडाउन के जरिये क्या हम कोरोना की चुनौती से उबर जाएंगे?
चुनौतियां कई मोर्चे पर है इसीलिए कहना बड़ा मुश्किल है। इसकी वजह यह है कि लॉकडाउन से पहले केंद्र ने राज्यों से मशविरा नहीं किया। भारत अपने आप में एक महादेश है जिसकी आबादी पूरे यूरोप व अमेरिका से भी अधिक है। ऐसे में राज्यों की साझेदारी केवल गाइडलाइन पालन करने तक रहेगी तो चुनौती बड़ी और लंबी दोनों होगी।
लॉकडाउन के एक महीने बाद अब संघीय दायरे को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच खींचतान क्या महामारी की स्थिति को बिगाड़ नहीं सकता?
इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। मगर संघीय दायरे का सवाल इसलिए उठ रहा कि दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार की नौकरशाही खासकर गृह मंत्रालय सभी राज्यों के बारे में एक यूनिफार्म गाइडलाइन भेजने का फैसला कर रही है। देश के किस कोने में चुनौती कैसी है, उन्हें मालूम नहीं तो फिर कुछ फैसले गलत होंगे। प्रवासी मजदूरों के फंसे होने की समस्या इसका नमूना है। राज्यों से बात कर दो दिन का वक्त दिया जाता तो मजदूर वापस लौट जाते और इस संकट से हम बच जाते।
केंद्र और राज्यों दोनों का एक ही लक्ष्य कोरोना को हराना है, फिर टकराव क्यों?
मतभेद इसलिए आ रहे हैं कि केंद्र ने राष्ट्रीय आपदा कानून के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है। इस कानून के तहत सबकी सलाह से कोरोना वायरस से लड़ने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरीय प्लान बनना चाहिए था। जब प्लॉन नहीं होगा तो ऐसे मुद्दे आएंगे। दूसरी समस्या लॉकडाउन में राज्यों की आय के स्रोत खत्म होना हैं। केंद्र की आय भी घटी है और वह राज्यों को जरूरत के हिसाब से पैसा नहीं दे रहा। राज्य इस विपदा में संसाधन कहां से जुटाएं यह बड़ी भारी समस्या है।
छात्रों को निकाले जाने के बाद कई राज्य प्रवासी मजदूरों को निकालने की मांग उठा रहे हैं, इस हालत में क्या यह व्यवहारिक है?
हम सभी मध्यम वर्ग तो घरों में हैं और मुश्किल ज्यादा नहीं। मगर बड़े शहरों के एक-दो छोटे कमरे के घरों और झुग्गियों में 10 से 20 लोग रहते हैं तो फिर यहां शारीरिक दूरी का पालन कैसे होगा। ब्यूरोक्रेसी ने लॉकडाउन करने में इसका ख्याल नहीं किया। इसी वजह से दिल्ली, मुंबई, सूरत आदि जगहों पर प्रवासी मजदूर सड़कों पर आ गए। राज्यों को स्थिति संभालने का मौका देना चाहिए अकेले केंद्र से यह हल नहीं होगा।
लॉकडाउन की बड़ी आर्थिक ही नहीं मानवीय कीमत भी है ऐसे में यह दोहरा जोखिम ही क्या एकमात्र तरीका है?सबसे अहम सवाल यही है क्योंकि आज जो हम मानवीय और आर्थिक कीमत चुका रहे वह आने वाले दिनों में कहीं ज्यादा गंभीर व परेशान करने वाली होंगी। इस महामारी के मानवीय और इकोनामिक कोस्ट आपस में गहरे जुड़े हैं। उदाहरण सामने है कि कई उद्योगों को सरकार ने 25 फीसद उत्पादन शुरू करने के लिए कहा है। मगर आस-पड़ोस के जिले या राज्य से लॉकडाउन में कच्चा माल आना संभव नहीं तो कंपनी चले कैसे।
कई उद्योगों की समस्या है कि पुराना स्टॉक ही भरा पड़ा है। फिर अनिश्चित मांग और बाजार में वे उत्पादन शुरू कर घाटा बढ़ाने का जोखिम कैसे लें। 25 फीसद उत्पादन करने के लिए भी अपना पूरा सिस्टम चलाना होगा जिसका बोझ उठाना कंपनियों के लिए आसान नहीं। मगर दिक्कत यह है कि यह सरकार अपने राजनीतिक दृष्टिकोण को हमेशा तवज्जो देते हुए फैसले करते ही न कि सामाजिक सरकारों को आगे रखकर। राजनीति को किनारे रखकर फैसले नहीं होगे तो हम चुनौती से नहीं निपट सकते।
लॉकडाउन के खत्म होने के बाद भी सामान्य हालत जल्द नहीं लौटने वाली फिर अर्थव्यवस्था और रोजगार संकट के हल के क्या रास्ते हैं?
बेरोजगारी की स्थिति तो पहले से ही गंभीर थी जो लॉकडाउन के बाद ज्यादा चिंताजनक होगी। कोरोना के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी भारी गिरावट तय है। वस्तुओं की बाजार में मांग बेहद कमजोर होगी तो कंपनियों की चुनौती ही नहीं अर्थव्यवस्था व रोजगार का संकट बढ़ेगा। हमारी चुनौती यह है कि भारत में सब कुछ बंद है जबकि चीन में उद्योग चल रहे हैं।
ब्रिटेन, अमेरिका और बाकी देशों में ऐसा सख्त लॉकडाउन नहीं है। यह तो सरकार ही जाने कि ऐसे सख्त लॉकडाउन की सलाह किसने दी। मौजूदा हालत में कारोबार भारत की कंपनियों के हाथ से निकलने का खतरा है। जैसे टेक्सटाइल सेक्टर में निर्यात आर्डर अगर हमारी कंपनियों ने पूरे नहीं किए तो चीन इन्हें हथिया सकता है और एक बार ग्राहक चला गया तो कंपनियों की मुश्किल चौगुनी होगी।