अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में यथास्थिति कायम है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 22 Nov 2018 12:23 AM (IST) Updated:Thu, 22 Nov 2018 08:20 AM (IST)
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल हुई है। याचिका में राम जन्मभूमि विवाद से संबंधित लंबित सभी अपीलों पर जल्द तय सयम में सुनवाई किये जाने की मांग की गई है। साथ ही मांग है कि कोर्ट दिशानिर्देश तय करे कि जिन मामलों में सुनवाई स्थगित होगी या मामला खारिज होगा तो उसके आदेश में कारण दर्ज किया जाएगा।

जल्द सुनवाई की मांग

यह याचिका वकील हरिनाथ राम ने दाखिल की है। याचिका को डायरी नंबर मिल चुका है, लेकिन अभी विधिवत केस नंबर आवंटित होना बाकी है। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने गत 29 अक्टूबर को राम जन्मभूमि मामले में लंबित अपीलों को जनवरी के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया था। उस दिन कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और भगवान रामलला के वकीलों का जल्दी सुनवाई का आग्रह ठुकरा दिया था। इसके बाद गत 12 नवंबर को अखिल भारत हिन्दू महासभा की ओर से जल्द सुनवाई की अर्जी दाखिल करने का जिक्र करते हुए कोर्ट से जल्द सुनवाई मांगी गई थी लेकिन लेकिन कोर्ट ने मांग ठुकराते हुए कहा था कि इस बारे में आदेश दिया जा चुका है। मांग मौखिक थी और कोर्ट का इन्कार भी मौखिक था।

अब इस मामले में यह नयी रिट याचिका दाखिल हुई है जिसमें अयोध्या केस की जल्द सुनवाई मांगी गई है। कहा गया है कि इस विवाद का लोकतंत्र और भाईचारे पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। केस का जल्द निपटारा ज्यादातर जनसंख्या के लिए फायदेमंद होगा। मामले के निपटारे को लेकर लोगों में अनिश्चितता है। ऐसे में हर दिन विरोध प्रदर्शन और साम्प्रदायिक हिंसा का खतरा मंडराता रहता है जो कि देश की कानून व्यवस्था के लिए खतरा है।

हरिनाथ राम का कहना है कि उसने अयोध्या मामले की जल्द और समयबद्ध सुनवाई की सीमित मांग के लिए ही यह जनहित याचिका दाखिल की है। उसके पास इसके अलावा कोई और उपाय नहीं था। राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई में देरी त्वरित न्याय के मौलिक अधिकार का हनन के साथ ही लाखों लोगो के पूजा अर्चना के अधिकार का उल्लंघन है।

लोगों का न्याय प्रदान प्रणाली से मोहभंग होने से पहले इस मामले की तत्काल और अगर संभव हो तो रोजाना सुनवाई की जाए। इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई टलने से केस के स्थगन की तार्किकता और कारणों पर पूरे देश में चर्चा हो रही है।

कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह जानते हुए मामला लंबित रखा है कि यह केस 1950 से लंबित है और निचली अदालत ने इसे निपटाने में पांच दशक से ज्यादा का समय लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट में भी ये 2011 से लंबित है। इसका जल्द निपटारा जरूरी है क्योंकि इस केस से लाखों लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं।

संविधान में त्वरित न्याय की गारंटी दी गई है। याचिका में संमलैंगिक संबंध, आधार जैसे महत्वपूर्ण मामलों में दिए गए हालिया फैसलों का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि इस कोर्ट ने ऐसे कई महत्वपूर्ण मामलों को जल्दी निपटाया है। कोर्ट ने कई बार साबित किया है कि न्याय के हाथ जरूरतमंदों तक पहुंचते हैं। कोर्ट आम लोगों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों की जल्द सुनवाई की परंपरा को कायम रखे क्योंकि आमजनता त्वरित न्याय के लिए इसी अदालत की ओर देखती है।

क्या है अयोध्या विवाद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को भगवान रामलला विराजमान के साथ ही सभी हिन्दू मस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट मे अपील दाखिल कर चुनौती दे रखी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।

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