मप्र की 24 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं निर्दलीय

अब चुनाव लड़ने की आस में अपनी-अपनी जमीन तैयार कर रहे दोनों दलों के नेता टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में ताल ठोक सकते हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 26 Jun 2020 09:14 PM (IST) Updated:Fri, 26 Jun 2020 09:14 PM (IST)
मप्र की 24 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं निर्दलीय
मप्र की 24 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं निर्दलीय

आनन्द राय, भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव शिवराज सरकार के स्थायित्व और कांग्रेस की नई उम्मीदों से जुड़े हैं। यही वजह है कि एक-एक सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए दोनों दल बिसात बिछा रहे हैं।

टिकट न मिलने पर बागी निर्दलीय के रूप में मैदान में ठोक सकते हैं ताल

टिकट के दावेदारों की रस्साकसी देखकर संकेत मिलने लगा है कि बगावत दोनों तरफ होगी। अगर ऐसी स्थिति में कुछ सीटों पर बागी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतर गए तो भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगड़ सकता है।

कांग्रेस से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए हैं, उन्हें ही टिकट मिलेगा- भाजपा

टिकट न मिलने पर दल से बगावत कर चुनाव लड़ने का चलन बहुत पुराना है। इस बार होने वाले उपचुनाव भी इस घमासान से अछूते नहीं रहेंगे। भाजपा ने तो तय कर दिया है कि जो विधानसभा सदस्यता और कांग्रेस से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए हैं, उन्हें ही टिकट मिलेगा। इसमें एक-दो फेरबदल भले हो जाएं, लेकिन ज्यादातर सीटों के उम्मीदवार तय हैं।

कांग्रेस असंतुष्ट भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है

कांग्रेस असंतुष्ट भाजपा नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही है। ऐसे में वहां भी बहुत से दावेदारों की उम्मीद टूटनी तय है।

भाजपा और कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की रस्साकसी बढ़ी

अब चुनाव लड़ने की आस में अपनी-अपनी जमीन तैयार कर रहे दोनों दलों के नेता टिकट न मिलने पर निर्दलीय मैदान में ताल ठोक सकते हैं। कई दावेदारों ने अपने समर्थकों को तैयारी में लगा भी दिया है।

अग्रवाल के चलते बदनावर में हार गए शेखावत

भाजपा ने पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत को 2018 में धार जिले की बदनावर सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। इस सीट पर राजेश अग्रवाल भी भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लेकिन उनकी अर्जी मंजूर नहीं हुई। अग्रवाल निर्दलीय मैदान में कूद गए। अग्रवाल को 30 हजार से अधिक मत मिले और वह तीसरे नंबर पर रहे। इसका असर यह हुआ कि भंवर सिंह 40 हजार से अधिक मतों से कांग्रेस के राजव‌र्द्धन सिंह से चुनाव हार गए। समीकरण यह बना कि अग्रवाल ने वैश्य समाज समेत भाजपा के बेस वोट को अपने पाले में कर लिया, जबकि क्षत्रिय समाज से होने की वजह से राजव‌र्द्धन और भंवर सिंह आपस में जूझते रहे।

अपने दल को भी फायदा पहुंचा देते हैं बागी

ऐसा नहीं है कि निर्दलीय मैदान में आने वाले बागी सिर्फ विरोधी पार्टी को ही लाभ पहंुचाते हैं। कई बार उनकी मजबूती अपने दल को भी लाभ पहंुचा देती है। पिछले विधानसभा चुनाव में मंदसौर की सुवासरा सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां कांग्रेस ने हरदीप सिंह डंग को टिकट दिया तो पार्टी से बगावत कर ओम सिंह भाटी निर्दलीय चुनाव मैदान में आ गए। यहां भाटी को करीब दस हजार मत मिले। उनके लगातार विरोध के बावजूद हरदीप सिंह डंग ने भाजपा के उम्मीदवार राधेश्याम पाटीदार को करीब साढ़े तीन सौ मतों से हरा दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भाटी मैदान में न होते तो उनको मिलने वाला ज्यादातर वोट पाटीदार को मिलता और डंग चुनाव नहीं जीत पाते।

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