विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा- अतीत की तीन 'कमजोरियों' से जूझना पड़ा भारत की विदेश नीति को

देश का बंटवारा आर्थिक सुधारों में देरी और परमाणु विकल्प को अपनाने में विलंब से भारत ने आसानी से विदेश नीति में अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर सका।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 21 Jul 2020 11:05 PM (IST) Updated:Wed, 22 Jul 2020 02:08 AM (IST)
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा- अतीत की तीन 'कमजोरियों' से जूझना पड़ा भारत की विदेश नीति को
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा- अतीत की तीन 'कमजोरियों' से जूझना पड़ा भारत की विदेश नीति को

नई दिल्ली, प्रेट्र। विदेश मंत्री एस. जयशंकर का कहना है कि अतीत के तीन ऐसे बोझ यानी कमजोरियां रही हैं जिनके चलते देश को विदेश नीति के मोर्चे पर अपना प्रभाव जमाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ा। देश का बंटवारा, आर्थिक सुधारों में देरी और परमाणु विकल्प को अपनाने में विलंब नहीं हुआ होता भारत ने आसानी से विदेश नीति में अपना प्रभुत्व कायम कर लिया होता।

जयशंकर की पुस्तक 'द इंडिया वे: स्ट्रेटजीज फॉर एन अनसर्टेन व‌र्ल्ड' का विमोचन 7 सितंबर को होगा

राजनयिक रह चुके जयशंकर ने यह बातें अपनी आने वाली किताब 'द इंडिया वे : स्ट्रेटजीज फॉर एन अनसर्टेन व‌र्ल्ड' में कही हैं। इस पुस्तक का विमोचन सात सितंबर को होना है।

जयशंकर ने वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर कोरोनो तक की चुनौतियों का किया विश्लेषण

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर 2020 में कोरोनो वायरस महामारी तक विश्व व्यवस्था के वास्तविक परिवर्तन को देखते हुए जयशंकर ने भारत के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करने के साथ ही संभावित नीतिगत प्रतिक्रियाओं का भी वर्णन किया है।

जयशंकर ने पुस्तक में लिखा- विश्व व्यवस्था में भारत का प्रभाव बढ़ा

जयशंकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है, जैसा कि विश्व व्यवस्था में भारत का प्रभाव बढ़ा है, उसे न सिर्फ बड़ी स्पष्टता के साथ अपने हितों की कल्पना करनी चाहिए, बल्कि प्रभावी तरीके से उसे व्यक्त भी करना चाहिए।

जयशंकर ने कहा- विदेश नीति अपने कंधे पर अतीत की तीन बड़ी खामियों का बोझ ढो रही

उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति अपने कंधे पर अतीत की तीन बड़ी खामियों का बोझ ढो रही है।

पहली गलती 1947 में देश के बंटवारे की हुई, जिसने देश को जनसांख्यिकी और राजनीतिक रूप से कम कर दिया। इसका अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि एशिया में चीन को अधिक रणनीतिक स्थान मिल गया।

दूसरी गलती आर्थिक सुधारों में देरी हुई, जो चीन से डेढ़ दशक बाद किए गए। 15 साल के इस अंतर ने भारत को बहुत पीछे कर दिया।

तीसरी गलती परमाणु विकल्प को अपनाने में बहुत विलंब करने की हुई। इसके परिणाम स्वरूप भारत को विदेशी नीति के मोर्चे पर अपना प्रभुत्व जमाने में कड़ा संघर्ष करना पड़ा, जो आसानी से किया जा सकता था।

जयशंकर ने कहा- हम घटनाओं का बेहतर पूर्वानुमान लगाएं और उनका विश्लेषण करें

जयशंकर के मुताबिक अंतराराष्ट्रीय संबंधों का मतलब ज्यादातर दूसरे देशों के रुख पर निर्भर करते हैं, लेकिन न तो अलोकप्रियता और न ही उदासीनता से उनके दुष्प्रभाव कम होते हैं। इसलिए बेहतर यही है कि हम घटनाओं का बेहतर पूर्वानुमान लगाएं और उनका विश्लेषण करें, बजाय इसके कि हम उनके घटित होने का इंतजार करते रहें और तब सक्रिय हों जब वे हमारे सामने आ जाएं। जयशंकर शुक्रवार ने एक ट्वीट के जरिये दो साल में किताब पूरी होने और इसके सितंबर में प्रकाशन की सूचना दी थी। 

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