Budget 2020: राजनीतिक दबाव से जुदा मोदी बजट, लोकलुभावन के बजाय जनता को साथ लेकर चलने की कोशिश

Budget 2020 नरेंद्र मोदी सरकार की यही खूबी है वह कभी दबाव में नहीं आती है और जो कहा सुना जा रहा है उससे जुदा करती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sat, 01 Feb 2020 10:38 PM (IST) Updated:Sun, 02 Feb 2020 03:51 PM (IST)
Budget 2020: राजनीतिक दबाव से जुदा मोदी बजट, लोकलुभावन के बजाय जनता को साथ लेकर चलने की कोशिश
Budget 2020: राजनीतिक दबाव से जुदा मोदी बजट, लोकलुभावन के बजाय जनता को साथ लेकर चलने की कोशिश

 आशुतोष झा, नई दिल्ली। Budget 2020: नरेंद्र मोदी सरकार की यही खूबी है, वह कभी दबाव में नहीं आती है और जो कहा सुना जा रहा है, उससे जुदा करती है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, निवेश में सुस्ती जैसे मुद्दों के बीच यही आशा की जा रही थी कि इस बार सरकार ऐसा कुछ करेगी कि एकबारगी देश में उत्साह का संचार हो जाए और विपक्ष खाली हाथ हो जाए। कुछ ऐसा जो धरातल पर प्रभावी होने के साथ ही जोरदार ढंग से सुनाई भी दे। शुक्रवार को मोदी सरकार-2 के दूसरे बजट में ऐसा कुछ नहीं हुआ। वर्तमान में हर सेक्टर को सहलाते हुए ध्यान भविष्य पर केंद्रित रहा, जब मोदी को न्यू इंडिया के वादों को भी पूरा करना है और राजनीतिक चुनौतियों से भी रूबरू होना है।

 भारी भरकम आर्थिक सुधारों के साथ साथ जन कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान

यह मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल है। पहले कार्यकाल में उन्होंने भारी भरकम आर्थिक सुधारों के साथ साथ जन कल्याणकारी योजनाओं पर ही ध्यान रखा था। सामाजिक कल्याण की दिशा में बड़ा बदलाव हो चुका है और उसके क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है। निम्न मध्यम वर्ग के लिए पिछली बार ही आयकर में भी बड़ी छूट की घोषणा हुई ही। फिलहाल सरकार पर राजनीतिक दबाव नहीं है। दिल्ली का चुनाव अगले कुछ दिनों में खत्म होने वाला है और दूसरा चुनाव साल के अंत में बिहार में है जहां विपक्ष बिखरा हुआ है।

चुनावी राजनीतिक चुनौती 2021 में शुरू होगी। वहीं सरकार का खजाना इसकी अनुमति नहीं देता है कि किसी दबाव में उसे पूरी तरह खोल दिया जाए। लिहाजा रोजगार, कुछ हद तक आयकर और उसके सरलीकरण तथा मुख्य रूप से महिला सशक्तिकरण के काम को आगे बढ़ाकर संतुलित कदम रखा गया है। महिला सशक्तिकरण आर्थिक व राजनीतिक दोनों रूप से सरकार के लिए सुखद है। वैसे सभी को कुछ दिया गया है और बहुत कुछ पाने की उम्मीद जगाकर छोड़ा गया है। दरअसल, सरकार को अहसास है कि फाइव ट्रिलियन इकोनोमी और ऐसे न्यू इंडिया की सोच जिसमें अंतिम आदमी तक सभी मूलभूत सुविधा हो, पाना आसान नहीं है। फिलहाल जोखिम उठाना बेवकूफी है और लक्ष्य पाने के लिए धैर्य और लगन की जरूरत है।

बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती, सुरक्षा की कसौटी

जहां तक राजनीति की बात है तो सरकार यह स्थापित करने में बिल्कुल नहीं चूक रही है कि वह उन्हीं रास्तों पर चल रही है जो हमारे पूर्वजों ने सिखाया है या आशा की है। सीएए जैसे मुद्दे पर सरकार महात्मा गांधी को सामने रखकर बता चुकी है वह वही कर रही है जो महात्मा चाहते थे। बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती, सुरक्षा जैसी कसौटी पर सरकार ने जहां खुद को तिरुवल्लुवर की कसौटी पर खरा बताया। वहीं आयकर के मामले में कालीदास रचित रघुवंशम को उद्धृत कर यह भी बताने की कोशिश की कि जो भगवान राम के पूर्वज इक्छवाकु के समय में हो रहा था। आयकर दाताओं को इसकी याद भी दिलाई गई कि जिस तरह सूरज बूंदों से वाष्प खींचकर वापस जमीन को ही लौटाता है वैसा ही सरकार करती है। संकेत साफ है कि बड़े जनमत के साथ लौटी सरकार अब बड़ी घोषणाओं की बजाय क्रियान्वयन पर जोर देगी। जनता को लुभाने की बजाय उसे सहमत कर साथ लेकर चलने की कोशिश होगी। यह तभी हो सकता है जब सरकार का खुद पर अटल भरोसा हो।

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