आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ से 13 खिलाड़ी खेल चुके ओलंपिक
खेलों का महाकुंभ ओलंपिक जिसमें भाग लेना किसी भी खिलाड़ी
मुकेश कुमार सिन्हा, राउरकेला: खेलों का महाकुंभ ओलंपिक जिसमें भाग लेना किसी भी खिलाड़ी का सपना होता है। मगर कुछ ही खिलाड़ी इस सपने को पूरा कर पाते हैं। लेकिन आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले से एक-दो नहीं बल्कि 13 खिलाड़ी ओलंपिक में भाग ले चुके हैं। यह आंकड़ा तब और दिलचस्प हो जाता है जब इसे पूरे ओडिशा के साथ तुलना कर देखें तो अब तक राज्य से 16 खिलाड़ी ओलंपिक में भाग ले पाए हैं इनमें अकेले सुंदरगढ़ से 13 खिलाड़ी शामिल हैं। यह आंकड़े गवाह हैं कि सीमित संसाधन, अभाव व मुफलिसी के बावजूद आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिला खेल के क्षेत्र में कितना आगे हैं। हाकी की नर्सरी के रूप में विख्यात सुंदरगढ़ जिले से यह सभी 13 खिलाड़ी हॉकी व एथलेटिक्स खेल स्पर्धा से हैं।
जिले के वैसेग्रामीण इलाके जो आज भी विकास से कोसों दूर हैं वहां से यह खिलाड़ी निकलकर अपने राज्य व देश का नाम दुनिया में रोशन कर चुके हैं। खेलों पर खास नजर रखने वाले सुशांत बेहरा बताते हैं कि खिलाड़ी हमारे लिए भले ही गौरव लाकर दे रहे हैं। लेकिन सरकार इनके लिए कुछ नहीं कर रही। इस कारण ज्यादा खिलाड़ी देकर भी हम खेलों में पिछड़े हैं। सरकार को जिले में खेल के लिए संसाधन मुहैया कराने होंगे जिससे खेलों की तरक्की हो पाए। वैसे 2020 जापान ओलंपिक में जिले से न्यूनतम 5-6 खिलाड़ी ओलंपिक में खेलेंगे इसकी उम्मीद है।
जिन्होंने ओलंपिक में लिया है भाग: माइकल किडो, पद्मश्री दिलीप तिर्की, इग्नेस तिर्की, लाजारुस बारला, विलियम खालको, वीरेंद्र लकड़ा, दीपग्रेस एक्का, लीलिमा मिज, नमिता टोप्पो, सुनीता लकड़ा, सुदीप चिरमाकु(सभी हाकी) तथा रचिता पंडा, अनुराधा बिश्वाल (एथलेट्किस)
प्रतिभा सुंदरगढ़ में खेल का विकास राजधानी में
सूबे की सरकार खेल के विकास के नाम पर राजधानी भुवनेश्वर में करोड़ों रुपये खर्च कर विभिन्न परियोजनाएं चला रही है। जबकि खेल प्रतिभाओं की नर्सरी सुंदरगढ़ में नियमित रूप से कोई खेल का विकास नहीं हो रहा। यहां के हुक्मरान व जनप्रतिनिधि छोटे-छोटे खेल आयोजन कर अपनी पीठ थपथपाने में लगे रहते हैं। जबकि हॉकी की नर्सरी में बड़े आयोजन के लिए किसी तरह की कोई तैयारी कभी नहीं दिखती। छह माह पहले भुवनेश्वर में हॉकी का विश्व कप का आयोजन किया गया था। लेकिन राउरकेला में राष्ट्रीय स्तर की कोई नामी प्रतियोगिता का आयोजन तक नहीं हो रहा है। राउरकेला में जनप्रतिनिधियों का इस तरफ कोई ध्यान नहीं और वे भुवनेश्वर के आगे नतमस्तक रहते हैं।
केवल राजनीति चमकाने में व्यस्त हैं नेता
सुंदरगढ़ जिले में खेलों के विकास के लिए स्थानीय स्तर पर किसी तरह का प्रयास नहीं होता। उलटे मौजूदा सरकारी संसाधन व संपत्ति को व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए उपलब्ध करा दिया जाता है। खेल के लिए जरुरी मैदानों की शहर में भारी किल्लत है। जो कुछेक मैदान हैं वे भी राउरकेला इस्पात संयंत्र के अधीन हैं। राउरकेला महानगर निगम क्षेत्र की बात करें तो तो यहां बिसरा मैदान व उदितनगर मैदान दो बड़े मैदान है। लेकिन यहां पर खेलों के विकास की कोई योजना नहीं है। यहां खेल पर राजनीति हावी है। इसी तरह ज्यादातर आवासीय कॉलोनियों मसलन कोयलनगर, छेंड व बसंती कॉलोनी में जो खेल मैदान थे उसे पार्क के रूप में विकसित करने के नाम पर ठेकेदारों को सालों भर कमाई का जरिया दे दिया गया है। नतीजतन खिलाड़ियों के नाम पर राजनीति ज्यादा और खेल का विकास कम हो रहा है।
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