नीतिगत अनिर्णय से अर्थव्यवस्था हुई सुस्त

सरकार के नीतिगत अनिर्णय ने घरेलू निवेश को इस कदर प्रभावित किया कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार ही धीमी होती चली गई। भारतीय रिजर्व बैंक [आरबीआइ] ने कहा है कि इस सुस्त रफ्तार की वजह से ही पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की दर नौ वर्ष के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई है। आरबीआइ के मुताबिक नीतिगत अनिर्णय के चलते निवेश में

By Edited By: Publish:Sun, 26 Aug 2012 08:41 PM (IST) Updated:Mon, 27 Aug 2012 12:37 AM (IST)
नीतिगत अनिर्णय से अर्थव्यवस्था हुई सुस्त

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकार के नीतिगत अनिर्णय ने घरेलू निवेश को इस कदर प्रभावित किया कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार ही धीमी होती चली गई। भारतीय रिजर्व बैंक [आरबीआइ] ने कहा है कि इस सुस्त रफ्तार की वजह से ही पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की दर नौ वर्ष के न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई है। आरबीआइ के मुताबिक नीतिगत अनिर्णय के चलते निवेश में करीब 50 प्रतिशत की कमी आई है।

अपनी सालाना रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है कि सरकार के निर्णय लेने की रफ्तार धीमी पड़ने का असर यह हुआ कि कंपनियों ने नई बड़ी परियोजनाओं में निवेश रोक दिया। जबकि इन परियोजनाओं को वित्त वर्ष 2011-2012 में ही वित्तीय मदद को स्वीकृति मिल चुकी थी। घरेलू परियोजनाओं में 2010-11 में 39 हजार करोड़ रुपये का निवेश हुआ था। मगर बीते वित्त वर्ष में यह गिरकर 21 हजार करोड़ रुपये रह गया।

रिजर्व बैंक के मुताबिक बुनियादी ढांचा और धातु क्षेत्र में निवेश तेजी से घटा है। बुनियादी क्षेत्र में होने वाले निवेश में 52 प्रतिशत की कमी आई है। यह 22 हजार करोड़ रुपये से घटकर 10 हजार करोड़ रुपये पर आ गया है। इनमें भी सबसे ज्यादा कमी बिजली और दूरसंचार क्षेत्र में आई है। इतना ही नहीं सड़क, बंदरगाह और एयरपोर्ट क्षेत्र में भी निवेश कम हो रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल 2012 तक बुनियादी क्षेत्र को बैंकों से कुल 62 हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया है। इन क्षेत्रों के लिए बैंक कर्ज का प्रवाह भी धीमा रहा है। ऊंची ब्याज दरों और नीतिगत सुस्ती के चलते इसमें देरी हुई। आंकड़ों के मुताबिक बैंकों के कुल कर्ज में वित्त वर्ष 2011-12 में 14 प्रतिशत की कमी आई। इसके विपरीत 2010-11 में इसमें 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। रिजर्व बैंक का मानना है कि उद्योगों के कर्ज और कंपनियों की परियोजनाओं की रफ्तार धीमी होने के पीछे मुख्य वजह अर्थव्यवस्था की सुस्ती है। भारी मशीनरी बनाने वाली कंपनियों के ऑर्डर भी घटे हैं। आयात में वृद्धि के चलते उनकी बाजार में हिस्सेदारी भी कम हो गई।

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