बूढ़ी मिसाइलों को ढोने की मजबूरी

भारतीय सेना जरूरी असलहे की भारी किल्लत से जूझ रही है। आलम यह है कि सेना के मैकेनाइज्ड और इंफेंट्री दस्तों के शस्त्रागार में अब बूढ़ी और पुरानी हो चली टैंकभेदी मिसाइलें भी जरूरत के मुकाबले लगभग आधी हो चली हैं। इनकी भरपाई के लिए बीते तीन साल से चल रही कवायद अब तक अधूरी है।

By Edited By: Publish:Sun, 15 Dec 2013 01:16 PM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2013 02:04 AM (IST)
बूढ़ी मिसाइलों को ढोने की मजबूरी

नई दिल्ली,जागरण ब्यूरो । भारतीय सेना जरूरी असलहे की भारी किल्लत से जूझ रही है। आलम यह है कि सेना के मैकेनाइज्ड और इंफेंट्री दस्तों के शस्त्रागार में अब बूढ़ी और पुरानी हो चली टैंकभेदी मिसाइलें भी जरूरत के मुकाबले लगभग आधी हो चली हैं। इनकी भरपाई के लिए बीते तीन साल से चल रही कवायद अब तक अधूरी है।

भारतीय सेना के शस्त्रागार में मौजूद सभी किस्म की टैंकभेदी मिसाइलें और उनके लांचर दूसरी पीढ़ी के हैं। चीन जैसे पड़ोसी मुल्क तीसरी पीढ़ी की मिसाइलें रखते हैं जिनमें फायर एंड फॉरगेट [दागो और भूल जाओ] जैसी अचूक निशाने वाली सुविधाएं हैं। सैन्य सूत्र मानते हैं कि भारतीय सेना में इस वक्त इस्तेमाल हो रही छह अलग-किस्म की एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलें और उनके लांचर भी जरूरत के मुकाबले साठ फीसद ही हैं। सेना को शस्त्रागार में 81 हजार एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों का निर्धारित कोटा है।

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महत्वपूर्ण है कि टैंकभेदी प्रक्षेपास्त्र के लिए सेना के शस्त्रागार में फ्लेम-1, फ्लेम-2, मिलान, कांकुर्स और कांकुर्स यूनीफाइड जैसी मिसाइलें है। इनमें से सर्वाधिक प्रयोग में आ रही कांकुर्स यूनीफाइड का उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा कंपनी भारत डायनामिक्स लिमिटेड करती है। सूत्रों का कहना है कि शेष पांच का अब उत्पादन ही नहीं हो रहा है। वैसे भारत स्वदेशी नाग प्रक्षेपास्त्र को भी इस इस्तेमाल के लिए विकसित कर रहा है।

इन प्रक्षेपास्त्रों के इस्तेमाल में एक चुनौती इसके लिए काम आने वाले लांचर भी हैं। युद्ध के वक्त दुश्मन की टैंकों को नेस्तनाबूद करने के लिए जरूरी इन प्रक्षेपास्त्रों को दागने के लिए भारतीय सैनिकों को ऐसे लांचर की सुविधा हासिल नहीं है जिसमें वो एक ही लांचर से कई किस्म के टैंकभेदी प्रक्षेपास्त्र दाग सकें। सेना को अपने पैदल दस्तों के लिए कंधे से दागी जाने वाली तीसरी पीढ़ी की मिसाइलों की दरकार है।

इस समस्या पर ध्यान देने के वाबजूद फैसलों की सुस्ती के चलते 2010 में 3जी [तीसरी पीढ़ी] एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों की खरीद की कवायद शुरू हुई थी। सेना मुख्यालय ने इसके लिए आरएफपी [प्रस्ताव का आग्रह] भी जारी किया था। तीन साल पूरे हो रहे हैं लेकिन इस परियोजना के पूरे होने का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है।

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