ईधन की 'राजनीति' में डूबीं तेल कंपनियां

ईधन पर 'राजनीति' देश की तेल मार्केटिंग कंपनियों को ले डूबी। चालू वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन [आइओसी] को 22,451 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। देश के इतिहास में किसी सूचीबद्ध कंपनी को हुआ यह अब तक सबसे बड़ा घाटा है। इसी तरह हिंदुस्तान पेट्रोलियम [एचपीसीएल] को इस अवधि

By Edited By: Publish:Thu, 09 Aug 2012 10:04 PM (IST) Updated:Fri, 10 Aug 2012 12:24 AM (IST)
ईधन की 'राजनीति' में डूबीं तेल कंपनियां

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। ईधन पर 'राजनीति' देश की तेल मार्केटिंग कंपनियों को ले डूबी। चालू वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन [आइओसी] को 22,451 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। देश के इतिहास में किसी सूचीबद्ध कंपनी को हुआ यह अब तक सबसे बड़ा घाटा है। इसी तरह हिंदुस्तान पेट्रोलियम [एचपीसीएल] को इस अवधि में 9,249 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। एक अन्य तेल मार्केटिंग कंपनी भारत पेट्रोलियम [बीपीसीएल] को भी इस दौरान 9,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की हानि होने के आसार हैं। यह घाटा मुख्य तौर पर लागत से कम मूल्य पर डीजल, रसोई गैस और केरोसीन की कीमत तय नहीं करने की वजह से हुई है।

दरअसल, इन कंपनियों के इस घाटे के लिए बहुत हद तक सरकार का 'नीतिगत अनिर्णय' जिम्मेदार है। तेल कंपनियों को खुदरा कीमत बढ़ाने की इजाजत मिल नहीं रही। ऊपर से सरकार उनके घाटे की भरपाई के लिए भी कोई फैसला भी नहीं कर पा रही। इस साल अप्रैल-जून की अवधि बीते हुए पांच हफ्ते हो जाने के बावजूद सरकार की तरफ से तेल कंपनियों को बांड वगैरह देने का एलान नहीं किया गया है। रही सही कसर रुपये की कीमत में गिरावट ने निकाल दी है।

तेल कंपनियां इस समय डीजल 12.13 रुपये और केरोसीन 28.53 रुपये प्रति लीटर के घाटे पर बेच रही हैं। रसोई गैस पर भी इन्हें 231 रुपये प्रति सिलेंडर का नुकसान हो रहा है। इन्हें पेट्रोल की खुदरा कीमत बढ़ाने की आजादी है, लेकिन उसे भी सरकार पूरी तरह से लागू नहीं होने देती। ऐसे में चालू वित्त वर्ष 2012-13 में सरकारी क्षेत्र की इन तीनों तेल मार्केटिंग कंपनियों को 1,78,000 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है। जून व जुलाई, 2012 में क्रूड की कीमत थोड़ी कम हुई थी, लेकिन यह एक बार फिर 110 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। इससे कंपनियों का भविष्य और खराब दिख रहा है।

इंडियन ऑयल के सीएमडी आरएस बुटोला ने बताया कि वह सरकार से बात कर रहे हैं कि डीजल, रसोई गैस व केरोसीन की तरह पेट्रोल को भी नियंत्रित पेट्रो उत्पादों की श्रेणी में डाल दिया जाए। वजह यह है कि एक तो उन्हें पेट्रोल की खुदरा कीमत तय करने की असली आजादी नहीं है और साथ ही नियंत्रित उत्पादों को मिलने वाली सरकारी सब्सिडी भी नहीं प्राप्त हो रही है।

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