शिक्षा लक्ष्य हासिल करने में 50 साल पीछे रहेगा भारत : यूनेस्को

भारत प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को 2050 तक, निम्न माध्यमिक को 2060 और उच्च माध्यमिक के लक्ष्य को 2085 तक हासिल कर पाएगा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Tue, 06 Sep 2016 02:47 AM (IST) Updated:Tue, 06 Sep 2016 07:38 AM (IST)
शिक्षा लक्ष्य हासिल करने में 50 साल पीछे रहेगा भारत : यूनेस्को

नई दिल्ली, प्रेट्र। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान रुझानों के आधार पर वैश्विक शिक्षा लक्ष्यों को हासिल करने में भारत करीब आधी सदी (50 साल) पीछे रहेगा। इसके मुताबिक, अगर भारत 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है तो उसे शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी बदलाव करने होंगे।

यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) की वैश्विक शिक्षा निगरानी (जीईएम) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान रुझानों के आधार पर दक्षिण एशिया प्राथमिक शिक्षा के वैश्विक लक्ष्य को 2051 तक निम्न माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्य को 2062 और उच्च माध्यमिक के लक्ष्य को 2087 तक हासिल कर पाएगा। जबकि, भारत प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को 2050 तक, निम्न माध्यमिक को 2060 और उच्च माध्यमिक के लक्ष्य को 2085 तक हासिल कर पाएगा।

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इसका मतलब यह है कि 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में यह क्षेत्र आधी सदी से भी ज्यादा पिछड़ जाएगा। रिपोर्ट में शिक्षा से जुड़े लोगों के अन्य क्षेत्रों के साथ मिलकर काम करने के विभिन्न फायदे भी गिनाए गए हैं। इनमें स्कूलों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, कृषि उत्पादन में 12 फीसद तक वृद्धि और जनसंख्या वृद्धि दर पर लगाम शामिल हैं।

इसमें एक अन्य रिपोर्ट 'एजुकेशन फॉर पीपुल एंड प्लानेट' का भी जिक्र है। इस रिपोर्ट में शिक्षा व्यवस्था में पर्यावरण चिंताओं पर ध्यान देने के लिए कदम उठाने की वकालत की गई है। रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर देशों में शिक्षा जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता का सबसे अच्छा संकेतक है। लेकिन आधे देशों के पाठ्यक्रम में जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट तौर पर जिक्र नहीं है।

इस मामले में भारत अपवाद है क्योंकि यहां करीब 30 करोड़ स्कूली बच्चों को पर्यावरण से जुड़ी कुछ न कुछ शिक्षा जरूर प्रदान की जाती है। रिपोर्ट में विभिन्न देशों की सरकारों से शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त असमानताओं को गंभीरता से लेने का आह्वान किया गया है। इसके लिए उन्हें सीधे परिवारों से जानकारी जुटाने का सुझाव दिया गया है।

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