World cycle day 2019: साइकिल से तय किया कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर

हजारों लाखों रुपये कीमत की साइकिल के युग में आपको अजीब लग सकता है कि छह दशक पहले सामान्य साइकिल की कीमत महज 10 या 12 रुपये थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 03 Jun 2019 09:50 AM (IST) Updated:Mon, 03 Jun 2019 09:53 AM (IST)
World cycle day 2019: साइकिल से तय किया कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर
World cycle day 2019: साइकिल से तय किया कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर

कुलदीप सिंह, आगरा। ‘लाला चलाइबे लगे साइकिल्ल, एक हाथ हैंडिल पर रक्खौ, एक पैर पैंडिल्ल...।’ पहले ब्रज में रामलीला, नौटंकी के बीच विदूषकों द्वारा गाया जाने वाला यह गाना उस कालखंड में लोगों के सामाजिक स्तर और साइकिल के प्रति दीवानगी का आइना था। यह वह दौर था, जब शादी में सामान्य साइकिल मिलना चर्चा का विषय होता था। विज्ञान वरदान बना तो वक्त मोटरसाइकिल और कार पर सवार हो तेजी से दौड़ चला।

पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए लोग अब फिर से साइकिल को पसंद करने लगे हैं। इस तरह से विदूषक का गीत फिर सामयिक हो गया है। साइकिल उद्योग तीन दशक पुराने फिल्मी गाने, चांदी की साइकिल, सोने की सीट...तक भले ही न पहुंच सका हो। लेकिन, आकर्षक साइकिल ने बाजार पर कब्जा जमा लिया है। हजारों, लाखों रुपये कीमत की साइकिल के युग में आपको अजीब लग सकता है कि छह दशक पहले सामान्य साइकिल की कीमत महज 10 या 12 रुपये थी।

साइकिल देखने दूर से आते थे लोग
लोहामंडी स्थित गुप्ता साइकिल के स्वामी मनोहर लाल बताते हैं कि कम आमदनी के चलते लोग पिताजी की दुकान पर किस्तों पर साइकिल खरीदने दूर-दूर से आते थे। दयालबाग निवाली प्रबल प्रताप ने बताया कि उनके पिता राजेंद्र सिंह ने 1952 में 10 रुपये में साइकिल खरीदी थी। जानकारी होने पर उत्सुकतावश लोग दूर-दूर से साइकिल सिर्फ देखने आते थे।

10 पैसे में एक घंटा साइकिल की सवारी
विजय नगर में साइकिल मरम्मत करने वाले जफर बताते हैं कि चार दशक पहले महज 10 पैसे प्रति घंटा की दर पर साइकिल किराए पर मिलती थी। जरूरतमंदों के साथ बच्चों की दुकानों पर भीड़ लगती थी। ताजमहल, किला जैसे स्मारक घूमने आने वाले विदेशी सैलानी भी सामान्य सी दिखने वाली किराए की साइकिल पर शहर में घूमते दिखते थे।

अब 10 लाख रुपये की भी साइकिल
ग्रेटर नोएडा में लगे ऑटो एक्सपो में ताईवान की कंपनी जियांट ने 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली साइकिल पेश की। प्रोफेशनल साइक्लिस्ट के लिए तैयार महज 5 किग्रा की साइकिल की खासियत है कि पैरों से निकलने वाली ऊर्जा को यह इलेक्ट्रिक में तब्दील कर देती है। गियर बदलने को इसमें सेंसर लगे हैं। प्रोपेल नाम की इस साइकिल की कीमत 10.65 लाख है।

फिटनेस के लिए साइकिल क्लब
तमाम शहरों में साइकिल क्लब बन गए हैं। आगरा साइकिलिस्ट क्लब में 200 से अधिक सदस्य हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक, उद्यमी और सैन्य अधिकारी क्लब से जुड़े हैं। वे प्रतिदिन 30 किमी की यात्रा साइकिल से करते हैं। क्लब के सदस्य मनोज बताते हैं कि लोग खुद को फिट रखने के लिए क्लब से जुड़ रहे हैं। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।

कभी चार पहियों की थी साइकिल
1418 में जिओवानी फोंटाना नामक एक इटली के इंजीनियर ने चार पहिया वाहन जैसा कुछ बनाया था। जिसे पहली साइकिल माना गया। 1813 में एक जर्मन अविष्कारक ने साइकिल बनाने का जिम्मा लिया। उसके द्वारा 1870 में बनाई साइकिल का फ्रेम धातु और टायर रबर के थे। 1870 से 1880 तक इस तरह की साइकिल को पैनी फार्थिंग कहा जाता था जिसको अमेरिका में बहुत लोकप्रियता मिली।

साइकिल से तय किया कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर 2016 में आगरा के मधुनगर निवासी मनोज शर्मा ने साइकिल से कन्याकुमारी से लद्दाख के पांच हजार किमी का सफर 50 दिन में पूरा किया। 2017 में उन्होंने गोल्डन ट्रायंगल दिल्लीआगरा-जयपुर का 750 किमी का सफर तीन दिनों में तय किया। विश्व साइकिल दिवस पर फिर गोल्डन ट्रायंगल की यात्रा पर निकलेंगे। उन्होंने इस यात्रा को देश के सैनिकों को समर्पित किया है। मनोज की बहन अर्चना पिछले वर्ष हुए एमटीवी हिमालया में भाग लेने वाली एकमात्र भारतीय महिला प्रतिभागी रहीं।

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