देश की आधी आबादी और सशक्त होकर देश के समग्र उत्थान में भागीदार होगी महिलाएं

Women Empowerment आधी आबादी ने अपने हक के लिए न सिर्फ आवाज बुलंद की है बल्कि अपनी क्षमता और योग्यता से लोगों को चमत्कृत भी किया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 03 Jan 2020 11:07 AM (IST) Updated:Fri, 03 Jan 2020 11:07 AM (IST)
देश की आधी आबादी और सशक्त होकर देश के समग्र उत्थान में भागीदार होगी महिलाएं
देश की आधी आबादी और सशक्त होकर देश के समग्र उत्थान में भागीदार होगी महिलाएं

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Women Empowerment: कभी घरों में रहकर चूल्हे-चौके तक सीमित महिलाएं अब समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुकी हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं हैं, जहां पर महिलाओं ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। आधी आबादी ने अपने हक के लिए न सिर्फ आवाज बुलंद की है बल्कि अपनी क्षमता और योग्यता से लोगों को चमत्कृत भी किया है।

महिलाओं ने खुद को आज जिस सांचे में ढाला है, उसने हर किसी को उन पर गर्व करने का मौका दिया है। शक्तिशाली होते भारत में एक सशक्त जिम्मेदारी महिलाओं की है, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। आज उनके लिए माहौल भी है, मौका भी। वो चाहती है कि बेशक उनकी मदद न की जाए, लेकिन कोई उनका रास्ता न रोके। अपनी जिजीविषा से मुश्किल रास्तों पर चलकर मंजिल पाना उन्हें आता है। नए साल में देश की आधी आबादी और सशक्त होकर देश के समग्र उत्थान में भागीदार होगी। बता रहे हैं अभिषेक पारीक:

देश की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब आधी है लेकिन लैंगिक भेदभाव या परंपरागत दकियानूसी मानसिकता के चलते आज भी कई क्षेत्रों में इनका प्रतिनिधित्व नगण्य हैं। सिर गिनाने के लिए तो इनकी आमद हर जगह है, लेकिन यह इनके अपने हौसले का परिणाम है। सभी क्षेत्रों में इनके प्रतिनिधित्व के लिए सरकार से लेकर समाज को इनके साथ खड़े होना होगा।

श्रम हिस्सेदारी

दुनिया के सबसे बड़े मानव संसाधन संगठन सोसायटी फॉर ह्युमन रिसोर्स मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की श्रम भागीदारी काफी कम है। हालांकि 1990 के बाद इसमें तेजी से वृद्धि हो रही है। नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि शहरों में महिला श्रम भागीदारी 26-28 फीसद पर ठहरी है जबकि 1987 से 2011 के बीच ग्रामीण इलाकों में यही श्रम भागीदारी 57 फीसद से घटकर 44 फीसद रह गई। श्रमशक्ति के साथ इनके बीच वेतन असमानता भी अत्यधिक दिखती है।

गहरी खाई

वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के वैश्विक लैंगिक भेद सूचकांक 2016 में 144 देशों की सूची में हम 87वें पायदान पर हैं। हालांकि 2006 में 98वें स्थान की तुलना में हमारी बढ़त संतोषजनक है फिर वर्तमान स्थिति से खुश नहीं हुआ जा सकता है। हालांकि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में हमें पहली रैंक हासिल है।

संपत्ति का अधिकार

कानून के तहत महिलाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार में बराबरी का अधिकार है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं दिखता। शोध बताते हैं कि गांवों में आज भी 70 फीसद जमीन का मालिकाना हक पुरुषों के पास है।

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