बड़े व्यापार केंद्रों का उतार-चढ़ाव

16वीं सदी लालसागर से होकर भारतीय सामानों को यूरोप ले जाकर अरब व्यापारियों द्वारा बेचे जाने के समय भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की आय में 24.5 फीसदी हिस्सेदारी थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था।

By Edited By: Publish:Sat, 20 Oct 2012 11:00 AM (IST) Updated:Sat, 20 Oct 2012 11:39 AM (IST)
बड़े व्यापार केंद्रों का उतार-चढ़ाव

16वीं सदी

लालसागर से होकर भारतीय सामानों को यूरोप ले जाकर अरब व्यापारियों द्वारा बेचे जाने के समय भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की आय में 24.5 फीसदी हिस्सेदारी थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था। टेक्सटाइल्स, चीनी, मसाले, आम, कारपेट इत्यादि बेचकर यह सोना और चांदी खरीदकर अपना व्यापार संतुलन बनाए रखता था।

चीन: यूरोप और चीन के बीच सीधा समुद्री कारोबार पुर्तगालियों के साथ शुरू हुआ। इसके बाद अन्य यूरोपीय देशों ने भी इसका अनुसरण किया।

17वीं सदी

भारत: सदी के अंत तक भारत के मुगलों की सालाना आय (17.5 करोड़ पौंड) ब्रिटिश बजट से अधिक हो चुकी थी। शाहजहां के शासनकाल में आयात से अधिक निर्यात किया जाने लगा था।

चीन: लगातार वैश्विक कारोबार के एक चौथाई पर इसका अधिपत्य कायम रहा। 1637 में कैंटोन में अंग्रेजों ने एक व्यापार चौकी भी स्थापित की। 1680 के दशक में समुद्री व्यापार में क्विंग शासक द्वारा छूट देने के बाद इसमें उत्तरोत्तर विकास होता गया। अब तक ताईवान क्विंग साम्राज्य के अधीन हो चुका था।

18वीं सदी

भारत: मुगल शासक औरंगजेब के समय देश का विश्व की आय में 24.4 फीसदी हिस्सा था। मुगल ताकत के क्षीण होते ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के दुनिया से कारोबारी संबंधों को तहस-नहस कर दिया।

चीन: 1760 में वैश्विक कारोबार में इसकी हिस्सेदारी भी घटने लगी। सरकार ने व्यापार के लिए आने वाले विदेशियों और विदेशी जहाजों के लिए कई सख्त नियम-कानून बना दिए। यहां आने वाले विदेशी व्यापारियों के लिए केवल एक बंदरगाह कैंटोन को इस नियम कानून से मुक्त रखा गया। 1776 में आजादी की लड़ाई के बाद अमेरिकियों ने चीन से व्यापार करना शुरू किया। ब्रिटेन के लिए यह एक बड़ा झटका था।

19वीं सदी

भारत: मुगल शासक औरंगजेब के समय देश का विश्व की आय में 24.4 फीसदी हिस्सा था। मुगल ताकत के क्षीण होते ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के दुनिया से कारोबारी संबंधों को तहस-नहस कर दिया

चीन: 1760 में वैश्विक कारोबार में इसकी हिस्सेदारी भी घटने लगी। सरकार ने व्यापार के लिए आने वाले विदेशियों और विदेशी जहाजों के लिए कई सख्त नियम-कानून बना दिए। यहां आने वाले विदेशी व्यापारियों के लिए केवल एक बंदरगाह कैंटोन को इस नियम कानून से मुक्त रखा गया। 1776 में आजादी की लड़ाई के बाद अमेरिकियों ने चीन से व्यापार करना शुरू किया। ब्रिटेन के लिए यह एक बड़ा झटका था।

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