ये हैं OBOR को लेकर चीन के मंसूबों पर शक करने की असली वजहें

दरअसल, चीन का लोकतंत्रिक स्वांग उस सिंह की तरह है, जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्राणियों का शिकार करने का काम करता है।

By Digpal SinghEdited By: Publish:Thu, 18 May 2017 12:38 PM (IST) Updated:Thu, 18 May 2017 12:46 PM (IST)
ये हैं OBOR को लेकर चीन के मंसूबों पर शक करने की असली वजहें
ये हैं OBOR को लेकर चीन के मंसूबों पर शक करने की असली वजहें

[प्रमोद भार्गव] बड़ी कूटनीतिक चाल चलते हुए चीन ने बीजिंग में वन बेल्ट वन रोड फोरम (ओबीओआर) सम्मेलन आयोजित किया। इसकी शुरुआत करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि ‘सभी देशों को एक-दूसरे की संप्रभुता, गरिमा और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।’ मगर चीन की कथनी और करनी में अंतर है और यही वह चिंताजनक मंसूबा है, जो भारत समेत कुछ देशों में एक किस्म की आशंका पैदा करता है। इस चर्चा में साठ से अधिक देशों ने हिस्सा लिया। इनमें अमेरिका, रूस, तुर्की, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, फिलीपिंस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, लाओस और म्यांमार प्रमुख देश हैं।

चीन ने भारत को भी आमंत्रित किया था, लेकिन जिस ओबीओआर परियोजना के पक्ष में यह सम्मेलन आहूत किया गया हैं, उस परिप्रेक्ष्य में चीन पहले से ही भारत की संप्रभुता और अखंडता पर हमला बोल चुका है। इसलिए भारत सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ। 80 अरब की लागत से निर्माणाधीन चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) उसकी विस्तारवादी नीति का हिस्सा है। इस गलियारे का बड़ा हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजर रहा है, जो कि विवादित हिस्सा है। चीन ने सब कुछ जानते हुए इस आर्थिक गलियारे का निर्माण कर भारत की संप्रभुता को आघात पहुंचाया है। इसके बावजूद भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए इन देशों के बीच अपना पक्ष रखना चाहिए था।

लोकतंत्र का स्वांग करता है चीन 

दरअसल, चीन का लोकतंत्रिक स्वांग उस सिंह की तरह है, जो गाय का मुखौटा ओढ़कर धूर्तता से दूसरे प्राणियों का शिकार करने का काम करता है। इसी का नतीजा है कि चीन 1962 में भारत पर आक्रमण करता है और पूर्वोत्तर सीमा में 40 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लेता है। यही नहीं गूगल अर्थ से होड़ बरतते हुए चीन ने एक ऑनलाइन मानचित्र सेवा शुरू की है। इसमें भारतीय भू-भाग अरुणाचल और अक्साई चिन को चीन ने अपने हिस्से में दर्शाया है। विश्व मानचित्र खंड में इसे चीनी भाषा में दर्शाते हुए अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया गया है, जिस पर चीन का दावा पहले से बना हुआ है।

चीन की कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रमकता दिखा रहा है, इसकी पृष्ठभूमि में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। भारत ने सम्मेलन का बहिष्कार करते हुए कहा है कि जो चीन अंतरराष्ट्रीय नियमों, कानूनों, पारदर्शिता और अनेक देशों की संप्रभुताओं को किनारे रखकर वैश्विक हितों पर कुठाराघात करने में लगा है, ऐसे में वह चीन की उस कोशिश में क्यों मददगार बने, जिसके लिए वह अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने में लगा है? साथ ही भारत ने उन परियोजनाओं के प्रति भी चिंता जताई है, जो कई देशों में चीन ने शुरू तो की, लेकिन जब लाभ होता दिखाई नहीं दिया तो हाथ खींच लिए। ऐसे में कई देश चीन के कर्जे के चंगुल में तो फंसे ही, अधूरी पड़ी परियोजनाओं के कारण पर्यावरण की हानि इन देशो को बेवजह उठानी पड़ी? 

बेलग्रेड-बुडापेस्ट रेल मार्ग को लेकर शिकायत

श्रीलंका में चीन की आर्थिक मदद से हम्बंटोटा बंदरगाह बन रहा था, लेकिन चीन ने काम पूरा नहीं किया। इस वजह से श्रीलंका आठ अरब डॉलर के नुकसान में आ गया है। अफ्रीकी देशों में भी ऐसी कई परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं, जिनमें चीन ने पूंजी निवेश किया था। इन देशों में पर्यावरण की तो बड़ी मात्र में हानि हुई ही, जो लोग पहले से ही वंचित थे, उन्हें और संकट में डाल दिया। लाओस और म्यांमार ने कुछ साझा परियोजना पर फिर से विचार करने के लिए आग्रह किया है। चीन द्वारा बेलग्रेड और बुडापेस्ट के बीच रेल मार्ग बनाया जा रहा है। इसमें बड़े पैमाने पर हुई शिकायत की जांच यूरोपीय संघ कर रहा है। यही हश्र पाकिस्तान का भी हो सकता है। चीन के साथ पाक जो आर्थिक गलियारा बना रहा है, वह इसी वन बेल्ट, वन रोड का हिस्सा है।

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पाकिस्तान ने 1963 में पाक अधिकृत कश्मीर का 5,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन को भेंट कर दिया था। तब से चीन पाक का मददगार हो गया। चीन ने इस क्षेत्र में कुछ सालों के भीतर ही 80 अरब डॉलर का पूंजी निवेश किया है। चीन की पीओके में शुरू हुई गतिविधियां सामाजिक दृष्टि से चीन के लिए हितकारी हैं। यहां से वह अरब सागर पहुंचने की जुगाड़ में जुट गया है। इसी क्षेत्र में चीन ने सीधे इस्लामाबाद पहुंचने के लिए काराकोरम सड़क मार्ग भी तैयार कर लिया है। इस दखल के बाद चीन ने पीओके क्षेत्र को पाकिस्तान का हिस्सा भी मानना शुरू कर दिया है। यही नहीं चीन ने भारत की सीमा पर हाइवे बनाने की राह में आखिरी बाधा भी पार कर ली है। चीन ने समुद्र तल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढके गैलोंग्ला पर्वत पर 33 किमी लंबी सुरंग बनाकर इस बाधा को दूर कर दिया है। यह सड़क सामारिक नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि तिब्बत में मोशुओ काउंटी भारत के अरुणाचल का अंतिम छोर है। अभी तक यहां कोई सड़क मार्ग नहीं था।

श्रीलंका में बनाया अहम अड्डा

1999 में चीन ने मालदीव के मराओ द्वीप को गोपनीय ढ़ंग से लीज पर ले लिया था। चीन इसका उपयोग निगरानी अड्डे के रूप में गुपचुप करता रहा। 2001 में चीन के प्रधानमंत्री झू रांन्गजी ने मालदीव की यात्र की तब दुनिया इस जानकारी से वाकिफ हुई कि चीन ने मराओ द्वीप लीज पर ले रखा है और वह इसका इस्तेमाल निगरानी अड्डे के रूप में कर रहा है। इसी तरह चीन ने दक्षिणी श्रीलंका के हम्बंटोटा बंदरगाह पर एक डीप वाटर पोर्ट बना रखा है। यह क्षेत्र श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महेंद्र राजपक्षे के चुनावी क्षेत्र का हिस्सा है। भारतीय रणनीतिक क्षेत्र के हिसाब से यह बंदरगाह बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से भारत के व्यापारिक और नौसैनिक पोतों की अवाजाही बनी रहती है।

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बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह के विस्तार के लिए चीन करीब 46,675 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। इस बंदरगाह से बांग्लादेश का 90 प्रतिशत व्यापार होता है। यहां चीनी युद्धपोतों की मौजदूगी भी बनी रहती है। म्यांमार के बंदरगाह का निर्माण किया तो भारतीय कंपनी ने था, लेकिन इसका फायदा चीन उठा रहा है। चीन यहां पर एक तेल और गैस पाइपलाइन बिछा रहा है, जो सितवे गैस क्षेत्र से चीन तक तेल व गैस पहुंचाने का काम करेगी।

भारत को लगता है कि वन बेल्ट वन रोड परियोजना की उपेक्षा कर वह इसके इस इलाके पर पड़ने वाले विशाल प्रभाव को रोक सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि अगर भारत ज्यादा से ज्यादा सावधानी वाला रवैया अपनाते हुए भी इस परियोजना को अपना सहयोग देता तो उसे और इस समूचे इलाके को अहम फायदे होते। बहरहाल, यदि यह सम्मेलन सफल रहता है तो यूरोप, एशिया और अफ्रीका में नए आर्थिक तंत्र की व्यवस्था का द्वार खुल सकता है। ऐसे में भारत को अपने आर्थिक एवं सामरिक हितों की दृष्टि से बहुत सचेत रहना होगा।

(लेखक स्वतंत्र कार हैं)

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