वन बेल्ट, वन रोड में छिपी है चीन की बर्बादी, जानें क्यों
वन बेल्ट, वन रोड के जरिए चीन सुपर पावर बनने का ख्वाब पाले हुए है। लेकिन जानकारों का कहना है कि ये प्रोजेक्ट चीन के लिए घातक होगा।
नई दिल्ली[स्पेशल डेस्क] । वन बेल्ट, वन रोड के जरिए अफ्रीका से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक चीन अपनी बादशाहत कायम करना चाहता है। बीजिंग में 69 देशों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा कि हम एक ऐसे समिट में शामिल हुए हैं जिस पर पूरी दुनिया की निगाह टिकी है। ये समिट अब भले ही इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी लेकिन एक सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा रही है। लेकिन वन बेल्ट, वन रोड के जरिए चीन जहां भविष्य के सपने बुन रहा है वो उसके लिये तबाही का सबब बन सकता है।
चीन को होगा ज्यादा नुकसान
चीन में कर्ज देने वाले दो प्रमुख बैंक चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना हैं। दोनों बैंक एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीकी देशों को 200 अरब डॉलर का कर्ज दे चुके हैं। बीजिंग सम्मेलन के दौरान ही चीन ने सैकड़ों अरब डॉलर कर्ज देने का ऐलान किया। ऐसे में एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना चाहता है कि कर्ज लेने वाले देशों के लिए कर्ज की राशि निर्धारित किया जाए। बैंक के उप गवर्नर सुन पिंग ने कहा कि यदि कुछ देशों को बहुत ज्यादा कर्ज दिया गया तो लोन की स्थिरता पर सवाल उठेंगे। फिलहाल चीन के पास पैसे की कमी नहीं है। लेकिन जब परियोजनाएं जमीन पर उतरेंगी तो व्यवहारिक दिक्कतें सामने आएंगी।
1676 परियोजनाओं को चीन की सरकारी कंपनियां धन मुहैया करा रही हैं। अकेले चीन कम्युनिकेशन कंस्ट्रक्शन ग्रुप को 10,320 किमी लंबी सड़कें, 95 बड़े बंदरगाह, 10 हवाई अड्डे और 2080 रेलवे परियोजनाओं को पूरा करना है। चीन के सेंट्रल बैंक के गवर्नर झोउ शियानचुआन ने कहा कि जोखिम और समस्याओं को लेकर सरकार को चेताया है। उनका कहना है कि कहीं वेनेजुएला जैसा संकट न आ जाए। वेनेजुएला में चीन के 65 अरब डॉलर फंस चुके हैं। शंघाई में फिच रेटिंग एजेंसी के समीक्षक जैक युआन ने कहा कि ऐसे देशों को कर्ज मुहैया कराया गया है जब उन देशों को पश्चिम देशों के बैंकों से कर्ज नहीं मिल पा रहा था।
जानकार की राय
रक्षा मामलों के जानकार अनिल कौल ने जागरण.कॉम को बताया कि भारत की बढ़ती हुई शक्ति और विश्व बिरादरी में पहचान मिलने से चीन चिंतित है। चीनी रणनीतिकारों को लगता है कि वन बेल्ट, वन रोड के जरिए वो भारत को घेरने में कामयाब होंगे। लेकिन सीपीइसी हो या दूसरे आर्थिक गलियारे वो भविष्य में चीन के लिए चिंता की परेशानी बन सकते हैं।
चीनी बैंकों की राय सरकार से जुदा
चीन के बड़े व्यवसायिक बैंकों का कहना है कि वे रियायती कर्ज मुहैया नहीं कराना चाहते हैं। दूसरी ओर कर्ज लेने वाले देशों का कहना है कि उनके पास और कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। पाकिस्तान की युनाइटेड बैंक की सीमा कामिल का कहना है कि ये कहना आसान है कि कर्जा बहुत ही ज्यादा होगा। लेकिन उनके पास और कोई विकल्प भी तो नहीं मौजूद है।
चीन की महत्वाकांक्षा में डूब जाएंगे गरीब देश
वन बेल्ट, वन रोड पर जानकारों का कहना है कि जैसे जैसे ये परियोजना आगे बढ़ेगी बैंक, लेनदारों और देनदारों के बीच खतरा बढ़ जाएगा। इस परियोजना में गरीब देशों को चीन अरबों डॉलर का कर्ज देगा। इस कर्ज से गरीब देश अपने यहां सड़कें, पुल, हवाईअड्डा और बंदरगाह बनाएंगे। सबसे दिलचस्प बात ये है कि इनके ठेके चीनी कंपनियों को मिलेंगे। कर्ज लेने वाले देश चीनी कंपनियों का बिल चुकाएंगे। इसके अलावा चीन को सूद समेत कर्ज भी चुकाएंगे। अगर कमजोर मुल्क चीनी कर्ज को चुकाने में नाकाम रहे तो उनकी स्वतंत्रता और संप्रभुता खतरे में पड़ जाएगी।
यूरोपीय देशों को इन्कार
वन बेल्ट, वन रोड समिट में यूरोप के कई देशों ने हिस्सा लिया। चीन इन देशों के साथ सिल्क रोज प्रोजेक्ट में समझौता करना चाहता था। लेकिन उन्होंने चीन के साथ समझौता करने से इन्कार कर दिया। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, ग्रीस और पुर्तगाल ने कहा कि वो जल्दबाजी में किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे। कोई भी समझौता जल्दबाजी में या भेदभावपूर्ण होना चाहिए।
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