शिक्षामित्रों को नहीं मिली राहत, सुप्रीम कोर्ट का मांग पर विचार करने से इन्कार

कोर्ट ने याचिकाकर्ता शिक्षा मित्रों को उचित फोरम के समक्ष अपनी बात रखने की छूट दी है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Sat, 25 Nov 2017 02:36 AM (IST) Updated:Sat, 25 Nov 2017 10:48 AM (IST)
शिक्षामित्रों को नहीं मिली राहत, सुप्रीम कोर्ट का मांग पर विचार करने से इन्कार
शिक्षामित्रों को नहीं मिली राहत, सुप्रीम कोर्ट का मांग पर विचार करने से इन्कार

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सहायक शिक्षक के तौर पर नियमित होने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से निराशा मिली है। कोर्ट ने उनकी सेवानिवृति और पेंशन लाभ दिये जाने की मांग पर विचार करने से शुक्रवार को इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिका समय पूर्व (प्रि मेच्योर) दाखिल की गई है।

न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ व न्यायमूर्ति अमिताव राय की पीठ ने चार शिक्षा मित्रों की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करने से साफ इन्कार करते हुए याचिका को डिसमिस एस विद्ड्रान (वापस लिये जाने के कारण खारिज) करार दिया। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता शिक्षा मित्रों को उचित फोरम के समक्ष अपनी बात रखने की छूट दी है।

इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वह सरकार को आदेश दे कि अगर याचिकाकर्ता शिक्षामित्र दो साल के भीतर जरूरी योग्यता हासिल कर नियमित नियुक्ति पा लेते हैं तो उनकी शिक्षामित्र के तौर पर की गई नौकरी को भी सेवा अवधि में जोड़ा जाए और उन्हें सेवानिवृति के अन्य लाभ व पेंशन लाभ दिये जाएं।

ये लाभ उन लोगों को दिया जाए जो 23 अगस्त 2010 से पहले शिक्षा मित्र या सहायक शिक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं। वकील का यह भी कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने जरूरी अर्हता हासिल करने के लिए दो साल का वक्त दिया है। इस दौरान उन्हें समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत के मुताबिक वेतनमान दिया जाए। कोर्ट ने उनकी दलीलें खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका प्रि मेच्योर है। अभी याचिकाकर्ताओं को परीक्षा पास करनी है ये स्थिति उसके बाद की है। अभी इस मामले पर विचार नहीं हो सकता।

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों के मामले में गत 25 जुलाई को फैसला सुनाते हुए कहा था कि शिक्षा मित्र दो साल के भीतर सहायक शिक्षक बनने की योग्यता हासिल कर नियुक्ति प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं। सरकार उन्हें इसके लिए जरूरी छूट भी दे सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि दो साल तक वे शिक्षा मित्र के रूप में काम करते रहेंगे।

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