फिर सुर्खियों में आई जजों की नियुक्ति प्रक्रिया
सरकार की ओर से उस पर कोई जवाब न आने का मतलब है कि सरकार ने उसे स्वीकार कर लिया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की ओर कुछ दिन पूर्व लिखे गए पत्र में भी इसका जिक्र है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति की नयी व्यवस्था देने वाले एनजेएसी कानून को रद करते समय दिसंबर 2015 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट कोलीजियम व्यवस्था में सुधार पर विचार करने को राजी हो गया था और साथ ही कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया तय करने के लिए सरकार से नया मैमोरेन्डम आफ प्रोसीजर (एमओपी) तैयार करने को कहा था। तब से अभी तक नया एमओपी तैयार होकर लागू नहीं हुआ है।
हालांकि गत वर्ष मार्च में एक मामले की सुनवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा था कि सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम ने एमओपी मंजूर करके सरकार को भेज दिया है। इस बात की पुष्टि चार न्यायाधीशों की ओर से जारी पत्र में भी होती है जिसमें कहा गया है कि कोलीजियम ने मार्च 2017 में एमओपी मंजूर कर लिया था और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने उसे सरकार को भेज दिया था। सरकार की ओर से उस पर कोई जवाब न आने का मतलब है कि सरकार ने उसे स्वीकार कर लिया है।
बताते चलें कि एमओपी को लेकर सरकार और कोलीजियम के बीच करीब डेढ़ साल तक तनातनी रही। सरकार ने दो बार एमओपी मंजूरी के लिए कोलीजियम को भेजा और कोलीजियम ने उस पर आपत्ति उठाते हुए वापस भेज दिया था लेकिन मार्च 2017 में कोलीजियम की ओर से एमओपी मंजूर कर सरकार को भेजा जा चुका है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की पारदर्शी व्यवस्था लागू होने के लिए नये एमओपी का लागू होना जरूरी है। सरकार ने जो एमओपी ड्राफ्ट किया है उसमें कोलीजियम अगर नियुक्ति के लिए किसी का नाम खारिज करती है तो उसे लिखित में उसका कारण दर्ज करना होगा। इससे प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी होगी। इसके अलावा कोलीजियम को मदद करने के लिए एक कमेटी होगी।