भीड़ की हिंसा रोकना राज्यों का दायित्व, कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं : SC

भीड़ द्वारा की गई हत्या कानून व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि अपराध है और राज्यों का दायित्व है कि वे ऐसी घटनाओं पर रोक लगाएं।

By Manish NegiEdited By: Publish:Tue, 03 Jul 2018 09:32 PM (IST) Updated:Tue, 03 Jul 2018 09:32 PM (IST)
भीड़ की हिंसा रोकना राज्यों का दायित्व, कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं : SC
भीड़ की हिंसा रोकना राज्यों का दायित्व, कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं : SC

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की बढ़ती हिंसा और हत्या की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि गो रक्षा के नाम हिंसा नहीं होनी चाहिए। भीड़ द्वारा की गई हत्या कानून व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि अपराध है और राज्यों का दायित्व है कि वे ऐसी घटनाओं पर रोक लगाएं। कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता। जाहिर है कि कोर्ट के इस बयान से केंद्र को भी राहत मिलेगी क्योंकि ऐसी घटनाओं को लेकर विपक्ष केंद्र पर हमलावर रहा है।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ये टिप्पणियां गो रक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं का मुद्दा उठाने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते मंगलवार को कीं। कोर्ट ने भीड़ हिंसा पर नियंत्रण लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग पर कहा कि वे इस बारे में विस्तृत आदेश जारी करेंगे।

हालांकि कोर्ट ने भीड़ हिंसा को किसी विशेष श्रेणी में बांटने का विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित होता है उसे किसी श्रेणी में नहीं बांटा जा सकता। व्यक्ति को पहुंची चोट के मुताबिक मुआवजा मिलना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि गो रक्षकों पर कोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद लगातार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। अभी हाल में दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर ऐसा मामला हुआ है। पीठ ने कहा कि इस पर नियंत्रण के लिए केन्द्र को अनुच्छेद 257 के तहत स्कीम बनानी चाहिए। इस पर केन्द्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ने कहा कि ये मामला कानून व्यवस्था से जुड़ा है और इसमे सीधे तौर पर राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए अलग से स्कीम बनाने की जरूरत नहीं है।

इंद्रा जयसिंह ने ये भी कहा कि हिंसा धर्म जाति को निशाना बना कर हो रही है और उसी के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने जयसिंह की दलीलों से असहमति जताते हुए कहा कि पीड़ित-पीड़ित होता है। उसे लगी चोट मुआवजे का आधार होनी चाहिए। जयसिंह ने ये भी कहा कि असमाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ गया है और वे अब बच्चा चोरी के आरोप में कानून अपने हाथ में ले रहे हैं। लोगों की हत्याएं कर रहे हैं। महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं हुई हैं। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अपनाए जाने वाले कदमों के बारे में कोर्ट मे अपने सुझाव दिये।

पिछले साल सितंबर ने सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को गो रक्षा के नाम पर हिंसा रोकने के लिए राज्यों को सख्त कदम उठाने के निर्देश दिये थे। जिसमें वरिष्ठ अधिकारी को नोडल अधिकारी नियुक्त करना और हाईवे पर पैट्रोलिंग शामिल थी।

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