सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर सभी पक्षों से मांगा लिखित हलफनामा

सुप्रीम कोर्ट में धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अक्टूबर तक फैसला आने की उम्मीद

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Publish:Tue, 17 Jul 2018 04:35 PM (IST) Updated:Tue, 17 Jul 2018 05:18 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर सभी पक्षों से मांगा लिखित हलफनामा
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर सभी पक्षों से मांगा लिखित हलफनामा

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आइपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मंगलवार को सभी पक्षों से कहा कि वे अपना-अपना लिखित हलफनामा दाखिल कर दें।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में चार दिन तक चली सुनवाई के बाद मंगलवार को आखिरी बहस पूरी हो गई। इसके बाद संविधान पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने सभी पक्षों से 20 जुलाई तक अपने-अपने दावे के समर्थन में लिखित हलफनामा दायर करने का आदेश दिया।

दो अक्टूबर तक आ जाएगा फैसला
इस विवादास्पद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला 2 अक्टूबर से पहले आने की उम्मीद है क्योंकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा उसी दिन रिटायर हो रहे हैं। मालूम हो कि आइपीसी की धारा 377 के तहत दोषी पाए जाने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और दंड का प्रावधान है।

नाज फाउंडेशन ने उठाया था मुद्दा
धारा 377 को खत्म करने का मुद्दा सबसे पहले नाज फाउंडेशन ने 2001 में उठाया था। फाउंडेशन की याचिका पर विचार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 में इस धारा को खत्म करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 2013 में पलट दिया था। इस मामले में दायर रिव्यू पिटीशन को भी शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था। उसके बाद इसमें क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की गई जो लंबित है।

ताजा याचिकाओं पर की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दायर नई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। संविधान पीठ ने शुरुआत में ही कह दिया था कि वह इस मामले में दायर क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई नहीं करेगी। केंद्र सरकार ने नई याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया था लेकिन शीर्ष अदालत ने उसे ठुकरा दिया था।

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